Monday 11 August 2014

भिक्खु (साधु) : धम्मपद से--(नायेदाजी)

भिक्खु -साधु : धम्मपद  से

# # # #
लता त्यागती
शुष्क 
पुष्पों को,
रहित हो
आसक्ति एवं 
स्वामित्व 
भावों से.

त्यागो
तुम भी
कामनाओं,
घृणाओं 
अहंकार
आसक्ति और 
आकांक्षाओं के
भावों को,
हे भिक्खुओं  !



(भिक्खु , साधु या sage  होने का अर्थ यह नहीं है कि  हम संसार का परित्याग करें और वेश परिवर्तन करें. साधु-स्वभाव मनुष्य  अपने परिवेश, समूह, स्थिति , प्रकृति,संसार, सृष्टि तथा ब्रह्माण्ड  का अनिवार्य एवं पूरक अंश  होता है. उसके पास सब होने पर भी कुछ  नहीं होता और  कुछ  ना होने पर भी सब कुछ  होता है.)

Inspiring Sootr From Dhammpad :

Vassikaa Piya Puppani, Maddavaani Pamunchati,
Evam Raagancha Dosancha,Vippamucheda Bhikkavo !
-------Gautam Budha

No comments:

Post a Comment