Thursday 7 August 2014

खार और गुलाब : बात नज़रिये की ---(अंकितजी)

खार और गुलाब : बात नज़रिये की 

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हुई थी बहस 
हज़ारों खारों 
और 
एक नन्ही सी,
गुलाब की 
पंखुड़ी को लेकर,
ज्यादा थी 
तादाद काँटों की 
इस वास्ते 
वोट भी उनके थे 
ज्यादह..

मगर एहसासों 
जज्बातों,
और सोचों,
की बुलंदी,
नहीं हो सकती
वोटों से 
उन्हें तो 
रूह से होता है,
महसूस करना...

किसी ने 
महसूस किया,
दिल की गहराई से:
छोटी सी पंखुड़ी,
गुलाब की,
अपने में एक मोजिज़ा है,
कुदरत का 
एक करिश्मा है 
नूर है 
परवरदीगर का.. 

हज़ारों काँटों का 
इकठ्ठा होना 
नहीं रखता
कोई दिलकशी.
नहीं करता 
साबित कुछ भी 

महज इसके कि 
कितनी हैरांकुन  है,
यह दुनियाँ,
जहाँ इतने तीखे खार है,
वहाँ भी रेशम से
नर्म गुलाब 
हो सकते हैं पैदा 
और खिला भी 
करते हैं..

होता है 
इन्हिस्सार 
इन बातों का 
नज़र और नज़रिये पर.


(मोज़्ज़ा=चमत्कार . हैरांकुन=अद्भुत,दिलकशी=आकर्षण . इन्हिस्सार=निर्भर . नज़रिया=दृष्टिकोण) 

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