Friday, 8 August 2014

करता हूँ या होता है : (अंकितजी)

करता हूँ या होता है
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सोचता हूँ,
होता है,
या, 
करता हूँ मैं  ?

प्रश्न : 'करता हूँ'
या: 'होता है' का नहीं,
उस सत्य का है,
'जो होता है'
वा इस अ -प्रश्न  का,
मौन सा उत्तर है.

सब की तरह,
में भी इस भ्रम में,
पला  बढ़ा हूँ,
"मैं करता हूँ."

महज इसीलिए,
नहीं मंज़ूर करता,
चाँद का आना जाना,
तारों का टिमटिमाना,
सूरज का चमकना,
फूलों का खिलाना,
हवाओं का छू  जाना,
पहली सांस का रोना,
अंधेरे और उजाले का खेल,
और वो सब कुछ ,
जो सहज स्वाभाविक हो रहा है.

गढ़  लेता हूँ,
एक अमूर्त मूर्ति,
'कर्ता ' की,
और खुद को उलझा,
जग को भर-मा,
चला देता हूँ शृंखला,
उन अंधेरों  की,
जिनमें हम देखते जाते है,
दीप बन-कर,
खुद को जला कर,
बस दूसरों को,
और भूल जातें है,
उस परम अस्तित्व को,
जो समाया है,
हमारे 'स्वयं' मैं.

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