घास दूब और ईर्ष्या
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रमणीक भव्य उद्यान-प्रांगण
एक भाग आच्छादित
सुकोमल घास से
जहाँ बैठ
नर-नारी पाएँ विश्राम
हो कर स्फूर्त
हास और परिहास से.
वहीं कुछ स्थान था
दूर्वा से आच्छादित
जिसके तृणों को
सादर ले नर-नारी
अर्पित करते देवालय में,
हो कर नत -मस्तक
भाव-विभोर आभारी .
दूर्वा थी अत्यंत दयालु
किंतु घास कुंठित ईर्ष्यालु
देख दूब को प्रभु चरणों में
क्रोधित होती थी घास
स्वयं खींच लेती
समस्त जल को वह द्वेषी
अब कैसे बुझे दूब की प्यास.
पीतवर्ण हुई दूब थी
क्योंकि नीर ना पाती थी
दुखी देख उस निरीह को
घास बहुत इतराती थी
माली ने देखा दूब को
मरणासन्न स्थिति को
तोड़ उखाड़ पुन: पालन कर
संवार दिया दूर्वा-नियती को
समस्त ध्यान रहा माली का
मात्र दूब की ओर
उपेक्षित हो गयी घास द्वेषी
शुष्क हुए ओर व छोर .
दूर्वा पुन: पल्लवित हो गयी
घास बनी पशुओं का चारा
ईर्ष्या-द्वेष कहाँ पहुँचाए
यह परिणाम कतई ना विचारा
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