शून्यता और पूर्णता
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सरिता प्रवाह-मान
सागर में
किंतु
सागर नहीं
भरता कभी
और
ना ही
सरिता होती
खाली कभी.
समस्त प्रवाह
जल का सरिता से………
नही करता
शून्य उसको,
कहाँ है
शून्यता
देने से.
सरिता जल-शून्य
हो कर भी
क्या पूर सकेगी
सागर को,
जो कहलाता
परिपूर्ण किंतु
लेने को तत्पर
निशि दिन.
देय सरिता का
शून्यता में,
प्राप्य सागर का
पूर्णता में,
कैसी है यह
क्रीड़ा
संपादित निरंतर .
प्राप्ति है
शून्यता भी
पूर्णता भी
एवं
प्रतिदान भी है
पूर्णता भी
शून्यता भी.
नर और नारी
प्रवाहित है
एक दूजे में
उनकी प्राप्ति
है एक दूजे में
प्रश्न है अनूठा,
कितना समझे
हम
शून्यता को,
कितना जाने
हम
पूर्णता को?????.
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