Sunday 15 May 2016

मुळको थे म्हारा साजना....(राजस्थानी) : विजया

मुळको थे म्हारा साजना....(राजस्थानी)

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घट ने मरघट क्यूं क़रयो रे
क्यूं मारयो हरख उल्लास
मुळको थे म्हारा साजना ।।स्थायी।।

जीणे खातर मिली जिनगी
मरण जीयो क्यूं जाय
हंसी ख़ुशी बिताल्यो दिनड़ा
रात काळी क्यूं आय

छोड़ उदासी रहवो थे हँसता
ओ जीणे रो मंतर खास
मुळको थे म्हारा साजना.....।।१।।

उलटी पुलटी बात्यां सोच्यां
उलटो ही हुँवतो जाय
बीजो जे बंवलियो भाया
आम कठे स्यूं पाय

पार पड़ी रे पीथीया ! जाया जीवण दास
बायी तो ही बाजरी सा उग आयगी घास
मुळको थे म्हारा साजना.....।।२।।

संगत चोखी बैठ भायला
दूध पीयो के चाय
गलत लोकां रो साथ भायला
खुद ही ने तो खाय

आरे म्हारा सपनम पाट
म्हे तने चाटूं तू म्हने चाट
मुळको जी म्हारा साजना.....।।३।।

अगला शब्द : उल्लास

मुळको= मुस्कुराओ, साजना= यहाँ सज्जनों को संबोधित करने के लिए प्रयोग हुआ है, भायला=मित्र, बंवलियो=बबूल, बीजो=बीज बोना, बायी=बोयी,

पुरूषमन व्याकुल सदा...

पुरूषमन व्याकुल सदा...

(पुरूष मन अधिकांशतः इस उहापोह में घूमता रहताहै जब तक अवेयरनेस और क्लैरिटी के बिंदु को क्रमशः छूं ना पाए...कुछ ऐसा ही नारी मन में होता होगा रचना अपेक्षित है,,,,,इसे विशुद्ध मनोविज्ञान के रूप में लिया जाय, जिसे जस का तस पेश करने की कोशिश है.)
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असमंजस निशिदिव
अनुकूलन अतीव
प्रश्न किन्तु सजीव
पुरूषमन व्याकुल सदा,,,,,

सहगामिनी अनुगामिनी
शिथिल या सौदामिनी
अनुयायिनी या मानिनी
अभिशांत या कलहासिनी
विलग या अभिसारिणी
मूक या मृदुभाषिणी,
चित्र विभिन्न
शंकित मन
सुस्पष्टता घटित यदा कदा,,,,,,

प्रतिरोधिनी या वाहिनी
योगिनी या वियोगिनी
सामान्य हो या विलक्षिणी
राधिका या रुक्मिणी
अथवा मीरा सम समर्पिणी
विकल्प अनेक सोचे प्रत्येक
चित्त में बसाए कामिनी
अंतर्दर्शन जब हो विलुप्त
प्रत्याख्यात ग्रहण प्रत्युत
बाह्य दृष्टि सर्वदा,,,,,,,

सौतन री चुगली... : विजया

सौतन री चुगली...

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गहरी नींद
ठंडी ठरियोड़ी रात
रुत रो कीं लेनो देनो कोणी हो
करियो धरियो हो
चुपचाप श्यान्त रहण हाले
नुवें मॉडल रे एयर कंडीशन रो
जीको मारवाड़ी लुगाई ज्यूँ
मांय मांय बोलतो रहवे
पण बाहरने बोलो रहवे,
कंवलो मेमोरी फोम रो
स्प्रिन्गदार गिदरो
चायनीज़ साटण री चादर
लीले नाईट लैंप रो उजास
सुयोड़ी ही जाणे रंग मेहल में....
खुलगी चाणचुकी
म्हारी आन्खड़ली
कांई देखूं हूँ
म्हारा जोड़ी दार
हिन्व्ड़े रा हार
छैल भंवरसा
हथेली में आई फोन लियां
मुलक रिया हां
मन ही मन,
मोबाइल री स्क्रीन माथे
यूँ निरख रिया हां
जियान टाबर केडबरी ने देखे
निजरां स्यूं ललचावे
के गर्ल फ्रेंड ड्यूटी फ्री शॉप में
विलायती रंग रोगन री जिन्स्याँ
देखने इतरावे....
लाग्योड़ा हां सजनसा
हथाई में
व्हाटसप के फेसबुक पर,
पंजाब सिंध गुजरात मराठा
द्रविड़ उत्कल बंग री भायल्यां स्यूं,
राजपूताने री संस्कृति री
लच्छेदार बात्यां कर कर ने
रीझ्या रह्या हां
भारत और बिलायत में फैली
रंग रगीली
छैल छबीली
कामणगारी पदमणयां ने
और सबदां री जादूगरणयां
कबूतरयां (कवियत्रियाँ)
म्हारे भोले शम्भू रे
गहरे हीये में पेंसिल हील सेती
उतरयाँ जावे ही...
म्हाने चेत आया
म्हारा डिस्टेंट रिलेशनशिप रा दिन रात
पढने रे नांव
फेर चाकरी रे नांव
ए दिसवारां फिरता
हर म्हे मरवण सी
मरुधर में ऊँचे डागले
चान री शीतल च्याननी में
धोला उजला बिछावणा माथे
पसवाड़ा फेरती
दिन में डाकिये री अडीक में
गढ़ री ड्योढ़ीयाँ झांकती
टेलेफोन रो हूणों अणहूणों एक हो
बात बस दाता जीसा स्यूं बिण री कोई
छटे छमास हो ज्याती,
चूड़ीबाजे माथे
सुपनो, पीन्पली, पिनिहारी
कुरज्यां, सुण ने दिन बदित हुन्वता
ओल्युं हर अडीक रो
अबडो समन्ध निभावन्ता
ना जाणे कितरो टेम
हंस ने हर रो ने गुजारियो....
म्हारा भी 'अच्छा दिन' आय पुग्या
म्हारो चौबीस घंटा रो साथ
डोकरी री किरपा स्यूं
साकार हुग्यो
एक ज्यान दो डील री बात
साँची साबत हुगी
म्हारा माथे रा बोरला
म्हारा नौलखा हार
म्हारा ढोला लसकरिया
म्हारे सांसा रा सिरताज
म्हांरे सागे रहण लाग्यो
मिलजुल सुणता
अल्लारखी बाई रो
पधारो म्हारे देश के
देशानी री चिरज्यां
के म्हारे जाट धरम भाई को
भेंट करियोड़ो तेजो,
सुणता सुणाता
गान्वतां बजातां
चोखा दिन रात लग गया हां
बदीत हुणा के
सौत बणने आय पुग्यो
औ स्मार्ट फोन
म्हारी तो यारां सिली सिली रात सी
ज्यूँ जळण लागगी,
कोयला भई ना राख...
अगला शब्द : राख
(कुछ फोंट्स को key board की सीमाओं के कारण सही रुप से नहीं प्रस्तुत कर पायी हूँ..पाठकगण कृपया निज विवेक से राजस्थानी उच्चारण में पढ़ें.)