Sunday, 15 May 2016

पुरूषमन व्याकुल सदा...

पुरूषमन व्याकुल सदा...

(पुरूष मन अधिकांशतः इस उहापोह में घूमता रहताहै जब तक अवेयरनेस और क्लैरिटी के बिंदु को क्रमशः छूं ना पाए...कुछ ऐसा ही नारी मन में होता होगा रचना अपेक्षित है,,,,,इसे विशुद्ध मनोविज्ञान के रूप में लिया जाय, जिसे जस का तस पेश करने की कोशिश है.)
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असमंजस निशिदिव
अनुकूलन अतीव
प्रश्न किन्तु सजीव
पुरूषमन व्याकुल सदा,,,,,

सहगामिनी अनुगामिनी
शिथिल या सौदामिनी
अनुयायिनी या मानिनी
अभिशांत या कलहासिनी
विलग या अभिसारिणी
मूक या मृदुभाषिणी,
चित्र विभिन्न
शंकित मन
सुस्पष्टता घटित यदा कदा,,,,,,

प्रतिरोधिनी या वाहिनी
योगिनी या वियोगिनी
सामान्य हो या विलक्षिणी
राधिका या रुक्मिणी
अथवा मीरा सम समर्पिणी
विकल्प अनेक सोचे प्रत्येक
चित्त में बसाए कामिनी
अंतर्दर्शन जब हो विलुप्त
प्रत्याख्यात ग्रहण प्रत्युत
बाह्य दृष्टि सर्वदा,,,,,,,

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