Sunday 19 January 2020

क़िस्सा ए मुल्ला की चीनी फ़ेस बुक फ़्रेंड,,,,,




क़िस्सा-ए-मुल्ला की चीनी फ़ेसबुक फ़्रेंड,,,
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भाषा की शिक्षा पा कर आया मुल्ला नसरुदींन का कुत्ता मोती यह आप सब ने विजया जी के पोस्ट में पढ़ लिया होगा.

मैं ने  इस पर रीसर्च की और मुल्ला की एक दुखती रग का पता चला.

मुल्ला ने फ़ेस बुक पर हर मुल्क के फ़्रेंड बनाए थे....नर और नारी सभी. एक चीनी फ़्रेंड नेपाल विज़िट पर थी कि बीमार हो गयी. चूँकि यहाँ सब फ़ेस बुक किंग्स और क्वींज़. मुल्ला ने अपने स्टैट्स में डाला था "At Motihari Visiting In/Out Laws"  और चीनी युवती चियांग ने comments में डाला "Admitted in Royal Hospital Kathmandu...can you come over." मुल्ला पहुँच गए.....अस्पताल पहुँचे....चियांग चिल्ला चिल्ला कर कह रही थी, "चिन यू यान" "चिन यू यान".....मुल्ला कि आश्वस्त किए जाए "Get Well Soon" "Get Well Soon"......
कुछ देर बाद चियांग अल्लाह को प्यारी हो गयी.

बाद में मालूम हुआ, "चिन यू यान" के मायने हिंदुस्तानी में हैं : "तुम ऑक्सिजन पाइप पर खड़े हो !"😀😀😀

मुल्ला का कुत्ता : विजया


मुल्ला का कुत्ता
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मुल्ला नसरुद्दीन को दूसरों के फट्टे में टांग अड़ाने की यानी ज्ञान देने की आदत थी....सलाह देते और फोलो अप भी ख़ूब तगड़ा होता उनका....मुआमला चाहे उनके कुत्ते मोती का भी क्यों ना हो.

मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने कुत्ते मोती से एक दिन कहा कि अब ऐसे न चलेगा, उच्च शिक्षा ज़रूरी है इस प्रतिस्पर्द्धा के युग में. अगर तुम्हें एक सफल कुत्ता बनना है तो तू किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में दाख़िला ले ले. बिना लिखे पढ़े अब कुछ भी नहीं होता. पढ़ोगे—लिखोगे, तो बनोगे नवाब.....इधर उधर आवारगर्दी करोगे तो हो जाओगे बर्बाद.

कुत्ते को भी समझ में आया....भला नवाब कौन न होना चाहे, कुत्ता भी होना चाहेगा. जब पढ़—लिख कर कुत्ता वापिस लौटा बाहर से, दो साल बाद, तो मुल्ला ने पूछा, क्या—क्या सीखा?

मोती कुत्ते ने कहा कि सुनो, इतिहास में मुझे कोई रुचि नहीं आई....क्योंकि इंसानों के इतिहास में कुत्ते की क्या रुचि....कुत्तों का कोई ज़िक्र तक नहीं...कुत्ता बोला.

कैसे तुम्हारे इतिहास पुरुष/महिला सिकंदर, अकबर, प्रताप, महारानी लक्ष्मी बाई,चर्चिल हिटलर आदि ,ऐसे हमारे भी बड़े-बड़े कुत्ते हो चुके हैं लेकिन हमारे इतिहास का कोई उल्लेख नहीं. इतिहास में मुझे कुछ रस न आया. जिसमें मेरा और मेरी जाति का उल्लेख न हो, उसमें मुझे क्या रस ?

भूगोल में मेरी थोड़ी उत्सुकता थी—उतनी ही जितनी कि कुत्तों की होती है, हो सकती है......पोस्ट आफिस का बंबा हो या बिजली का खंभा, क्योंकि वे हमारे वाशरूम्स हैं; इससे ज्यादा भूगोल में मुझे कुछ रस नहीं आया.

मुल्ला थोड़ा हैरान होने लगा....उसने कहा, और गणित ? कुत्ते ने कहा, गणित का हम क्या करेंगे? गणित से हमारा कोई मतलब नहीं. धन-संपत्ति तो हमें कोई इकट्ठी नहीं करनी... हम तो पल पल
जीने वाले प्राणी है.....यहाँ और अभी में जीते हैं हम कुत्ते... कल की हमें कोई फिक्र नहीं.  जो बीता कल है, वह गया; जो आने वाला कल है, आया नहीं-हिसाब करना किसको है ?  लेना-देना क्या है ? कोई खाता-बही रखना है ?
मुल्ला ने कहा, दो साल सब फिजूल गए ? नहीं, उस कुत्ते ने कहा, सब फिजूल नहीं गये. मैं चार विदेशी भाषाओं  में पारंगत हो कर लौटा हूं. मुल्ला खुश हुआ. उसने कहा, चलो कुछ तो किया मोती ने..... चलो मास्टर को कह कर..विदेश विभाग में नौकरी लगवा देंगे....अगर भाग्य साथ दिया तो राजदूत हो जाओगे......मुल्ला ने तुरंत कुत्ते के केरियर कार्पेट को बिछा दिया.

रुक जाए तो मुल्ला क्या ?...आगे बोला मुल्ला, अगर प्रभु की कृपा रही तो विदेश मंत्री हो जाओगे...कुछ न कुछ बहुत बेहतरीन हो जाएगा.... चलो इतना ही बहुत.

मेरे सुख के लिए थोड़ी सी वे विदेशी भाषाएं बोलो तो ज़रा बतौर मिसाल. कुत्ते ने कौन पढ़ाई की थी विदेश जाकर. मौज की थी....विदेशी स्वान सुंदरियों से प्यार मोहब्बत की थी और भी बहुत कुछ किया था जिसे साफ़ कहा नहीं जा सकता....पाठकों की कल्पना शक्ति को यह बात समर्पित.

कुत्ते ने आंखें बंद की, अपने को बिलकुल योगी की तरह साधा.बड़े अभ्यास से, बड़ी मुश्किल से एक एक शब्द उससे निकले.
उसने कहा : 'भाऊँ"
मुल्ला बोला, "दूसरी ?"
कुत्ता बोला, "आऊँ"
मुल्ला ने कहा, "तीसरी ?"
कुत्ता बोला, "जाऊँ"
मुल्ला ने कहा, "चौथी और आख़री....इस बार दो शब्द"
कुत्ता बोला, "म्याऊँ" "खाऊँ"

मुल्ला ने सिर ठोंक लिया....मगर कुत्ते को प्रोमोट करते हुए खुद को प्रोमोट करना ज़रूरी था. शहर के पाँच सितारा होटल में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया. राजनीति, कोरपोरेट, मीडिया, धर्म, प्रशासन, बुद्धिजीवी, फ़िल्म आदि सभी हलकों से मेहमान थे...खाने पीने... मिलने जुलने के बीच कुत्ते की वही चार भाषा वाली रिपीट पेरफ़ोरमेंस हुई...कुत्ता सिलेब्रिटी हो गया...टीवी, अख़बार और सोसल मीडिया पर भारत के सर्वाधिक शिक्षित कुत्ते के रूप में छा गया. हर हल्का कुत्ते को अपने फ़ोल्ड में लेकर उसे आगे बढ़ाने के लिए होड़ करने लगा था....... मुल्ला की चल निकली.

दिमाग़ और दिल : विजया



दिमाग़ और दिल
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दिमाग़ है
सोचने के लिए
दिल है
एहसासात को महसूस करने के लिए
मज़बूत है
ख़्वाहिशें दिमाग़ की
आज़ाद है
तमन्नाएँ दिल की...

दिमाग़ है
क़सूर दिल का
दिल तो है
बद-तरीन संगी दिमाग़ का
दिमाग़ है
बद-तरीन दुश्मन प्यार का
प्यार है
बेहतरीन दोस्त दिल का...

दिमाग़ कहे -
" हाँ "
जब दिल कहे-
"ना"
जब कहे दिमाग़ :
"रुको !"
तो कहे दिल :
"चलते रहो !"

सोचने के लिए है
दिमाग़
महसूस करने के लिए है
दिल
सख़्त है
खवाहिशें  दिमाग़ की
तोड़ देता है मगर दिल
तिकडमें दिमाग़ की....

Saturday 11 January 2020

दीवानगी उसकी या उलझे धागे : "हट" नामा



दीवानगी उसकी या उलझे धागे : "हट" नामा 
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वर्णों के मिलन से 
जन्मते हैं शब्द निरंतर 
कभी होता है आशय आरम्भ से 
कभी पा जाते हैं अर्थ अनंतर,
कहने का लहजा 
करता है शब्दों में प्राण प्रतिष्ठा,
तब होती है व्यक्त शब्दों से ही 
निष्ठा प्रतिष्ठा और अनिष्ठा,,,

ख़ुशगवार बातें 'उसकी'
जब जब कानों की राह 
'उनके' दिलो ज़ेहन तक पहुँची 
विभोर था रोम रोम 'उनका'
छलक रही थी ख़ुशी वो सच्ची 
कह कर प्यार से लबरेज़ "हट !"
कर दी थी ज़ाहिर उन्होंने
दीवानगी अपनी,,,

ले ली थी चुटकी 'उसने'
छेड़ कर सब तार उनके...
भाव सिक्त बातें 
प्यार ओ अभिसार की 
'उनके' वजूद को गुदगुदाकर 
खिला रही थी लाली 
उनके हसीन रुखसार की,
लहराकर बाँके चितवन 
"गंदी बात -गंदी बात !"
चाहा था कहना प्रकट अप्रकट 
कह दिया था वही उन्होंने 
बुदबुदाकर होले से  "हट !"

चुहल 'उसकी'
भर गयी थी गमक रोम रोम में 
स्पंदन और कम्पन जगा गए थे
अनजाना अनछुआ 'उनमें'
कह कर लजीला सा "हट"
जता दिया था प्यार उन्होंने अपना 
"धत्त शर्म नहीं आती !" 
कहना चाहा था कुछ ऐसा ही ना,,,,

राहें मगर 'उसकी'थी 
ज़रा जग लीक से हट कर 
हुआ था मंज़ूर 'उनको'
उन पर चलना जो डट कर
हो जाती थी चर्चायें शायद 
कभी मन की कभी बेमन की 
लगती थी छद्म दूरियाँ 
आत्मा और तन बदन की 
बाधित हुआ था विचरण
बेतरतीब मग में उनका 
बिन कहे वही "हट !" जताते थे 
अवांछित हो जाना 'उसका' ?

उलझे हुए धागों को 
सुलझाना ज़रूरी था 
भेद कर 'हट' की माया 
असमंजस को हटाना ज़रूरी था 
अफ़साना जिसे अंजाम तक 
लाना हो नामुमकिन 
उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ देकर 
छोड़ देना ज़रूरी था,,,

ख़याल आयी थी गोकुल की 
सिर जल घट लिए ब्रज बाला या 
कुंज गलिन में दधि छाछ लिए 
आती जाती गुजरिया 
राह रोके खड़े थे मानो हठी छलिया
"हट कान्हा हट ना  !" की ध्वनि 'उनकी'
हुई थी जब जब गुंजरित 
झुँझलाहट थी....
लज्जा थी या 'कुछ और" ?
प्रश्न लघु यह रहेगा सदा अनुत्तरित,,,

ध्यान आया था 
कुरु सभा में अपमानित 
द्रौपदी की पुकार का 
कुरुक्षेत्र में पार्थ की हताशा 
और कृष्ण की ललकार का 
अव्युक्त अनिरुद्ध  का सुमार्ग से 'ना हटना'
रणछोड़ का समरांगण से स्वेच्छायुक्त 'हटना'
आई थे पुकार अंतरंग से 
फिर एक बार "हट जा !"
बहुत डूबा तैरा है तू जलधि में 
परिवर्तन ! अब तो तनिक " तट जा !"

कुछ तुम से कुछ मुझ से कहला दे...: विजया



कुछ तुम से कुछ मुझ से कहला दे...
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शिकवा है ना तुम्हें
नहीं बैठती मैं
अब पास तुम्हारे पहले की तरह,
नहीं करती गपशप
नहीं पूछती हाले दिल ???
हाँ ! सही है
जी हाँ ! बिलकुल सही है
तुम्हारा यूँ महसूस करना
हम्म ! दरअसल बात यह है
ज़िंदगी की भागमभाग में
रिश्तों की ऊहापोह लिये
कब बैठ पाती हूँ मैं
ख़ुद के पास भी...

सुनो ! देख कर आस पास
लगता है
बहुत कुछ बदलता
ठंडी आग सा जलता
गरम बर्फ़ सा पिघलता
नश्तर सा चुभता
फिर भी मरहम सा लगता,
कभी चाँदनी में नहाये
सुनहरी 'धोरों' सा
ऊँचा और फैला फैला
चढ़ते सूरज के असर से
थार की बालू सा तपता
और कभी बंद मुट्ठी से
रेत सा फिसलता फिसलता...

छोड़ों इन सब को !
चलो पी लें फिर से
उसी चाय खाने में लौंग वाली चाय
बैठ कर साथ साथ,
जो तेरी 'हूँ' 'हाँ' 'अच्छा' से 'हट' कर
कुछ तुम से 
कुछ मुझ से 
कहला दे !!!

Friday 10 January 2020

हमारा और तुम्हारा : विजया


हमारा और तुम्हारा....
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अजीब है ना क़ानून
मिल जाये गर दबा सहन में
पुराना सोना चाँदी और तेल
हो जायेगा वह सरकार का,
गर मिल जाये
अस्लिह: ओ ड्रग्स का ज़ख़ीरा
कहलायेगा वह मकानदार का,
कुछ ऐसा ही तो हाल है
इंसानी रिश्तों का
जो मुआफ़िक़ हो वह हमारा
जो ग़ैर मुआफ़िक़ वह तुम्हारा,
हो गया क्या इश्क़ भी
मौज़ू रिवाज और क़ायदों का
वहाँ भी तो है यह हमारा वह तुम्हारा....

अस्लिह: =हथियार, ज़ख़ीरा=संग्रह