Friday, 10 January 2020

हमारा और तुम्हारा : विजया


हमारा और तुम्हारा....
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अजीब है ना क़ानून
मिल जाये गर दबा सहन में
पुराना सोना चाँदी और तेल
हो जायेगा वह सरकार का,
गर मिल जाये
अस्लिह: ओ ड्रग्स का ज़ख़ीरा
कहलायेगा वह मकानदार का,
कुछ ऐसा ही तो हाल है
इंसानी रिश्तों का
जो मुआफ़िक़ हो वह हमारा
जो ग़ैर मुआफ़िक़ वह तुम्हारा,
हो गया क्या इश्क़ भी
मौज़ू रिवाज और क़ायदों का
वहाँ भी तो है यह हमारा वह तुम्हारा....

अस्लिह: =हथियार, ज़ख़ीरा=संग्रह

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