Friday 9 March 2018

दुर्बलता : विजया


दुर्बलता
++++
कहा जाता है मानव को
पुतला कमज़ोरियों का
किन्तु बन सकता है वह
भगवान् तुल्य  भी
पहचान कर
देख कर
समझ कर
गिराकर
दृढ संकल्प के साथ
अपनी सहज
किन्तु तज्य् दुर्बलताओं को,
कुछ भी तो नहीं है साश्वत
इस संसार में
अतएव
कमज़ोरियाँ भी तो है नश्वर....

वृहत अहम्,
लघु कालीन लोभ,
इच्छा शक्ति का अभाव
आत्म मुग्धता
दिखावे से अर्जित सम्मान
कुंठाएं और हीन भाव
बना देते है
कमजोरियों को
हमारा औढ़ा हुआ स्वभाव
और चालाक बुद्धि
कर देती है
कुछ को कुछ भी साबित
शाब्दिक तर्क़ों के सहारे,
गवाह है इतिहास कि
कर सकते हैं
हमारे निरंतर प्रयास
हम मानवों में
होशमंदता का आविर्भाव
यदि हो हम में
कुछ कर पाने की
स्वयं को निखारने की
अंतर्मन की चाह....

रुकमण रे मनड़े री बात : विजया



रुकमण रे मनड़े री बात....
(होळी री धमाळ)

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हे........
कहवे रुकमण
मनड़ री बातलड़ी रे
कान्हा सुणज्यो जी....

गौरी शंकर कहवे रे कान्हा
सीता राम कुहावे रे
लिछमी निरायण नाम जाप
तिरभुवन में हुवे रे
कान्हा सुणज्यो जी.....

राधे श्याम कहवे रे कान्हा
रुक्मण श्याम ना कोई रे
परणी भूल और स्यूं जोड़े
लीला काईं रे
कान्हा सुणज्यो जी.....

जोड़ायत हूँ म्हें तो थारी
चाँद सूरज आ साखी रे
राणी बणा तू पाट बिठाई
कसर ना राखी रे
कान्हा सुणज्यो जी...

हिवडे सदा बसाई कान्हा
मान घणो ही दिन्यो रे
राधा ज्यूँ दुलराई कोन्या
इस्यो काईं किन्यो रे
कान्हा सुणज्यो जी....

कोल बचन स पूरा करिया
हिंवस घणो  लुटायो रे
दुःख सुख दोनूं में साथ दियो तूं
थिरचक पायो रे
कान्हा सुणज्योजी...

प्रेम सदा ही करयो म्हे थांसू
दूजो कोई न भायो रे
सगळा जाणे स्याम सुन्दर
तू अंतर जामी रे
कान्हा सुणज्योजी....

नैणा आंसू बरसे रे कान्हा
बात समझ ना आवे रे
द्वारका रा धीश किशनजी
परणी बिसरावे रे
कान्हा सुणज्यो जी....

राधा रो दीवानो रे कान्हा
मीरा रो परमेसर है
गोप्यां रो तू बाळ सखो
म्हारो तो वर है रे
कान्हा सुणज्यो जी....

मीरा राधा रूप है म्हारो
नांव म्हारो बिसरायो रे
मरजादा रे मांय रहण रो
तोहफो पायो रे
कान्हा सुणज्यो जी....

अगला शब्द : प्रेम

(थिरचक=स्थिर, कोल बचन = प्रतिज्ञाएँ/commitments, हिंवस=ह्रदय की गर्माहट, सगळा=सब, परणी=ब्याहता, मरजादा=मर्यादा, हिंवड़ा=हिया, ह्रदय,
तोहफो=इनाम)

मानवों के कितने प्रकार : विजया

मानवों के कितने प्रकार
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हे प्रभु !
बना दिए तुम ने
हम मानवों के कितने प्रकार
आकार एक से
मगर अलग अलग व्यवहार
जिव्हा पर मधु
नयन अश्रुपूरित
किन्तु करते रहते हैं
भौतिकता का व्यापार.....

वसीयत : विजया


वसीयत....(😂)
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करती हूं
वसीयत
तेरे संग
मरण के वरण की,
अपील है
तेरे चाहने वालों से
करे तो सही
दस्तखत
दस्तावेज़-ए-मोहब्बत पर....

(कल जब सुना कि सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु और मौत की वसीयत की इजाज़त दे दी है, सोच आया कि साथ जीने और मरने के अहद को कानूनन अमली जामा पहना दिया जाय 😜. इज़हारे एहसास है इश्क़ के, तफसील में क़ानूनदां लोग जाएं 😊😊😊)