रुकमण रे मनड़े री बात....
(होळी री धमाळ)
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हे........
कहवे रुकमण
मनड़ री बातलड़ी रे
कान्हा सुणज्यो जी....
गौरी शंकर कहवे रे कान्हा
सीता राम कुहावे रे
लिछमी निरायण नाम जाप
तिरभुवन में हुवे रे
कान्हा सुणज्यो जी.....
राधे श्याम कहवे रे कान्हा
रुक्मण श्याम ना कोई रे
परणी भूल और स्यूं जोड़े
लीला काईं रे
कान्हा सुणज्यो जी.....
जोड़ायत हूँ म्हें तो थारी
चाँद सूरज आ साखी रे
राणी बणा तू पाट बिठाई
कसर ना राखी रे
कान्हा सुणज्यो जी...
हिवडे सदा बसाई कान्हा
मान घणो ही दिन्यो रे
राधा ज्यूँ दुलराई कोन्या
इस्यो काईं किन्यो रे
कान्हा सुणज्यो जी....
कोल बचन स पूरा करिया
हिंवस घणो लुटायो रे
दुःख सुख दोनूं में साथ दियो तूं
थिरचक पायो रे
कान्हा सुणज्योजी...
प्रेम सदा ही करयो म्हे थांसू
दूजो कोई न भायो रे
सगळा जाणे स्याम सुन्दर
तू अंतर जामी रे
कान्हा सुणज्योजी....
नैणा आंसू बरसे रे कान्हा
बात समझ ना आवे रे
द्वारका रा धीश किशनजी
परणी बिसरावे रे
कान्हा सुणज्यो जी....
राधा रो दीवानो रे कान्हा
मीरा रो परमेसर है
गोप्यां रो तू बाळ सखो
म्हारो तो वर है रे
कान्हा सुणज्यो जी....
मीरा राधा रूप है म्हारो
नांव म्हारो बिसरायो रे
मरजादा रे मांय रहण रो
तोहफो पायो रे
कान्हा सुणज्यो जी....
अगला शब्द : प्रेम
(थिरचक=स्थिर, कोल बचन = प्रतिज्ञाएँ/commitments, हिंवस=ह्रदय की गर्माहट, सगळा=सब, परणी=ब्याहता, मरजादा=मर्यादा, हिंवड़ा=हिया, ह्रदय,
तोहफो=इनाम)
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