Monday 25 February 2019

निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय : विजया


निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय....
++++++++++++++++++++

हुआ करते हैं हम 
जब साथ साथ अपने 
संग अनुभव होता हर कोई 
जागृत हैं खुली आँखों से 
या देखते हैं सपने,
दुराव स्वयं से स्वयं का 
करता है दूर सब को 
भविष्य से होकर बौझिल 
तोड़ देता विगत 'अब' को....

छाया है हर्ष चहुँ दिशि 
मिल रहा सुख अपार है 
तन मन पुलकित अपना 
आनंदित निखिल संसार है, 
पा रहा है मानव 
सामीप्य स्व के रंग से 
बिंबित  है समत्व 
अंतरंग और बहिरंग से,
प्रत्युत्तर इन्हीं स्पंदनों का 
मिल जाता साँझ सवेरे 
सहभागिता,सम अनुभूति, स्वार्थ 
कारण इसके बहुतेरे, 
नहीं सकेगा नकार कोई 
तथ्यजनित प्रतीकात्मकता को 
प्रत्यक्ष करे आकर्षित 
सकारात्मकता सकारात्मकता को.....

छाये है घन दुखों के 
गरजे विद्युत विपदाओं की 
बरस रही है झड़ी अनवरत 
कष्ट और आपदाओं की,
घिरा है मनोमस्तिष्क 
नकारात्मकता की धुँध से 
ग्रसित है अस्तित्व 
दुर्बलता संवेदन अतिकुन्द से,
बढ़ रहा है अंतर अपना 
स्वयं ही के अंग प्रत्यंग में 
घटित है विखंडन 
अंतरंग और बहिरंग में,
भाग रहे हैं स्वयं हम 
दूर दूर स्वयं से 
नहीं होता अनुभूत किंचित 
समीप स्व हृदय के,
नकारतमकता लगी सताने
कंपनों में पल पनप कर 
डुबो रहा है कोई मानो  
अश्रु में छलक छलक कर,
देखने लगता है मनुज 
हर वस्तु एनक चढ़ा कर 
निकट आता है क्यों ना कोई 
हाथ अपना बढ़ा बढ़ा कर,
दुखड़े हमारे अपने 
उठाने हैं हंस कर रो कर 
क्यों देखें हम औरों को 
लाचार याचक हो कर,
क्यों ना निज मन की व्यथा 
मन ही राखो गोय 
सुख में हैं सब साथी 
दुःख में ना होता कोय....





सुख के सब साथी दुःख में ना कोय,,,,,



'सुख के सब साथी दुःख में ना कोय'
###################
होती है अनुभूतियाँ 
बिम्ब मनस्थितियों की 
निरपेक्ष समझ लेते हम 
बातें परिस्थितियों की,,,

समीप हो स्वयं के 
हम समीप सब को पाते 
आपे में ना हो ख़ुद जब 
सब दूर ही नज़र आते,,,

उत्साह का है उत्सव 
पर्व है प्रसन्नता का 
तन मन अति मुदित से 
प्रसरण हमारी निजता का,,,

सुख की इस घड़ी में 
विधेय है स्पंदन 
है घटित प्रेम मन में 
अभिवृद्धित है आकर्षण,,,

सहभागिता सम अनुभूति 
संग सब का है बढ़ाती 
सहज सरल जीवन पर 
रंग चटक से चढ़ाती,,,

खिलते हैं पुष्प जैसे 
हम स्वयं मैत्री प्रांगण में 
झूमते हैं हम स्वयं ही 
भीड़ के नृत्यांगन में,,,

घन दुःख के हैं आच्छादित 
गरजे तड़ित भयानक 
दूर जब हम निज स्व से  
पास आये क्यों कोई यकायक,,,

विपदाओं से हो अंतराल
होता है लक्ष्य हमारा 
वांछित हैं साथ सबका 
किया स्वयं से है किनारा,,,

कुछ भी नहीं बिन मूल्य 
इस आदान प्रदान संस्कृति में 
संगी स्मित के सारे 
नहीं साथ खिन्न आकृति में,,,

होकर तटस्थ हम देखें
भुला अनुकूलन के दीर्घ क्रम को  
'सुख के सब साथी दुःख में ना कोय'
कर सकेंगे दूर तब इस भ्रम को,,,

















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Friday 15 February 2019

शाश्वत है प्रेम मेरा : विजया



शाश्वत है प्रेम मेरा....
+++++++++++
शाश्वत है प्रेम मेरा, दिन की हो क्या अपेक्षा
रूत हो चाहे कोई, सम गहन इसकी प्रेक्षा.....

करूँ प्रेम तुम से मैं यूं धूप के दिनों में
आलोकित हो धरा जब जाजवल्य सूर्य से,
करूँ प्रेम सर्वदा तुम से 'वर्षाकाले' निशिदिन
बरसते हों जब मोती मनोरम गगन से,
करूँ प्रेम तुम से प्रत्येक प्रात: मैं
रश्मियाँ हो रही हो जब विकीर्ण वातायन  से,
करूँ प्रेम तुम से में रजनी के सानिध्य में
मगन हो समस्त तारे जब शशांक की लोरी से.....

मैं करूँ प्यार तुम से ऊष्ण ग्रीष्म की ऋतु में
धमकाती जब पाँव लहरें जलधि के सूने तट पर,
करूँ प्यार तुम से मैं रे मादक रितु बसंत में
स्वागत क़ोंपलों का करे पाखी उन्मुक्त गा  कर,
करूँ प्यार तुम को प्रियतम पतझड़ की झड़ झड़ी में
डोलते हो विभ्रु* पत्र** जब पृथ्वी को चूम चूम कर,
करूँ प्यार तुम को साथी सुशीतल रितु शिशिर में
जब छाये आनन्द अनूठा चाय की प्यालियों पर.....

*भूरे रंग के **पत्ते

दरिया में बहते बहते,,,,,,

स्वांत: सुखाय
========

दरिया में बहते बहते,,,,,,
#########
ऐ मेरे दोस्त
पतझड़ के सूखे पत्ते !
सुन लो ना आज
कुछ दिल मन की बातें,,,,

मेरे यार पतझड़ के सूखे पत्ते !
गिर जाना तुम्हारा
अंधकार में भटकते हुए
फिर बिछ जाना बीच राह
होता है सचमुच
प्रतीक परिवर्तन का
देते हुए
एक चेतावनी आने वाले
ठिठुराहट भरे दिनों की,,,,

जानते हो क्या तुम भोले !
हो कर आकर्षित
तुम्हारी ओर
बहुतेरे आशान्वित हृदय
पाते हैं मार्गदर्शन नेतृत्व और साथ
करने को यात्रा
एक अज्ञात किंतु बहुत ही
आनन्दमय लोक की,,,,

यह भी एक सच है
कुछ लोग
भरे हुए उदासी और दुख से,
करते हैं जद्दो जहद
रखने को साथ तुम को
निरुदेश्य भटकाने को
मगर खिसक जाते हो तुम झटक कर
दूर दूर उन से
नहीं खोते तुम अपना वेग ,ऊर्जा और क्षमता
कुछ बेहतर के लिए
दौड़-भाग करने को,,,,,,

जानता हूँ मैं ऐ दोस्त !
होता है कितना दुखद
तुम्हारे लिए
पलट कर लौट आना
अपनी यात्रा से
मगर लगता है मुझे सुखद
तुम्हारा किसी से भी
मुँह नहीं छुपाना
करना सामना
हर शै  का
बावजूद चोटों और ज़ख़्मों के
जो मिले होते हैं तुम को
वक़्त के दरिया में बहते बहते,,,,,,

एक बात तो है मेरे दोस्त !
जीना शिद्दत से
भरपूर ज़िंदगी को
हुआ करता है सुंदर हमेशा
चाहे बिताए जाते हों दिन
निहायत ख़स्ता हाल में,
सच कहता हूँ
मेरे प्यारे पतझड़ के पत्ते !
तुम ही तो हो संदेशवाहक
मेरी इसी
अबोली बात के,,,,,

सपने का फूल बसंत का,,,,,

थीम सृजन : वन उपवन में छाया बसंत
====================

सपने का फूल बसंत का,,,,
#############
ऐ मेरे दोस्त
पतझड़ के सूखे पत्ते !
आओ ना कर लें
कुछ और दिल मन की बातें,,,,

माना कि
तुम्हारे अनायास साथी
पतझड़ के फूलों की पंखुड़िया
किरमची सी हुई
मानो दिखाती है बार बार
अक्स अपना मौत जैसा,
रोने लगती है ना मिट्टी
गिरने से उनके और
संग उनके तुम्हारे भी,
नतीजन ना जाने क्यों
मुरझा जाते हो फिर तुम
पतझड़ के गुलाबों की तरह,,,,

मत भूलो
महत्वपूर्ण यह है कि
बने रहते हुए ही ख़ुद के लिए
बदल सकते हैं हम ख़ुद को
अपने और दूसरों के भले के लिए
हो सकते है हम आलोक सब का
बन कर सपने का फूल बसंत का,,,,,,

हो जाओ ना मेरे यार तुम
सूरजमुखी की पंखुड़ियों जैसे
जो वक़्त आने पर छोड़ देती है सब कुछ
अगली पीढ़ी के लिए
या सिंहपर्णी फूल की तरह
जो मिटा कर ख़ुद को
बिखेर देता है बीज अपना
नई पौध होने के लिए,
रहोगे ना तुम तब भी
किसी ना किसी रूप और स्वरूप में,,,,

चलो छोड़ो ये सब,
और धुँधले से अंधेरे में
करो ना एक मस्त नाच संग में मेरे
यारां, कुछ भी तो नहीं रहा है
होने को ग़मज़दा अब,
समझ गए होंगे अब तक
कि विदा हुए हर एक चेहरे की
होती है अंतिम निष्पति
बस भुला दिया जाना,,,,,,

कह ही डालते हैं बेझिझक
आज अपनी बात एक दूजे को
बिखर कर
नील निरभ्र नभ में
गाते हुए कई गीत
और कर लेते हैं एक नयी शुरुआत बसंत की ...

Sunday 10 February 2019

नई शुरुआत : विजया

थीम सृजन : वन उपवन में छाया बसंत
******************************
नई शुरुआत....
+++++++
कितना सहज है तुम्हारे लिए
सब कुछ
ख़ुद ब ख़ुद होने देना
जब तक कि
सब कुछ उतर ना जाय...

क्या है यह
गिरा देना सब कुछ कुदरतन
बिना किसी परवाह के ?
क्या है यह
ढाँप लेना ख़ुद को
एक ख़ाली ख़ाली
ठंडी सी पट्टी से ?

सीखाओ ना मुझे भी
जाने देना पुरातन को,
बना लेना जगह
नए रंगों के ख़ातिर,
काट फेंकना
जो भी बढ़ जाता है
ज़रूरत से ज़्यादा....

बताओ ना
क्या किया करते हो अफ़सोस
हर उस पत्ते के लिए
जो हो जाता है जुदा तुम से,
वक़्त के साथ
बहुत  कुछ बदल जाने का भी,
या तुम करते हो 'रेलिश'
हल्का हो जाने में
क्यों कि इस तरह हो जाते हो तुम
और नज़दीक
अपनी मंज़िले मकसूद के....

बता भी दो
क्या करते हो महसूस तुम
ख़ाली ख़ाली ख़ुद को
उस रूत में
जब होती है ये कायनात
महरूम दमकते हुए रंगों से
या तुम देख पाते हो ऐसे में
और ज़्यादा बेहतर
ख़ुद के असल अक्स को,
बदल पाते हो ख़ुद को
और बेहतरी के लिए...

अच्छा एक आख़री सवाल
क्या किया करते हो तुम याद
उन लमहों को
जब हुआ करते थे तुम
भरे पूरे ख़ुद  में
बिलकुल ही जुदा
आवाज़ों,गुहारों और रंगों से
यहाँ तक कि अपने इस वजूद से,
या उठा रहे हो लुत्फ़ तुम
अपने अकेलेपन का
हो कर तैय्यारी में
अपनी अगली शुरुआत की
बसंत के इंतज़ार में.....

Friday 8 February 2019

सपना है मेरा सपना

शब्द सृजन : ख़ुशियाँ
===========

सपना है मेरा सपना,,,,,
##########
दूर जा रहा हूँ ऐ दोस्त आज तुम से,
करूँ नाम रोशन, ये सपना सुहाना...
रखूँ तुझ को हर पल मैं ख़ुद में बसा के
रहनुमा ! ये मेरे दिल की है तमन्ना...

ग़ज़ब है ये सपना
करूँ सच इसको बना कर के अपना
सपना है मेरा सपना
कितना हसीन सपना,,,,,,,

आया था मैं तुम तक, पहले पहल जब
दिल में मची मेरे, हलचल सी थी तब...
कैसे ये मेरा नाज़ुक मन था घबराया
हैरां था मैं, हुआ बेचैन जब तब...

सीखा है सब कुछ, तुम ही से तो मिल कर
वो अनजाने चेहरों का दोसती में ढलना
सपना है मेरा सपना
कितना हसीन सपना,,,,,,

वो समझना परखना, सुनना सुनाना
वो ख़ुशियों को गाना, मस्तियाँ गुनगुनाना...
वक़्त की पाबंदी , वो सजना सजाना
खेल और पढ़ाई , वो ख़ुद को बनाना....

पाया है हमने ये ज़िंदगी का ख़ज़ाना
गा लें बजा लें हम,मीठा सा ये तराना
सपना है मेरा सपना
कितना हसीन सपना,,,,,,

********************************************

(शिवम् western electric music में है, London School of Music का स्टूडेंट है, गिटार और ड्रम्स में ट्रेनिंग ले रहा है. यहाँ उसकी स्कूल का HS का बैच विदा लेगा अगले महीना और शिवम् को उस पर आयोजित प्रोग्राम का music सम्भालना है...बड़ा कठिन था मेरे लिए उसकी पीढ़ी के संगीत के लिए lyrics लिख पाना.....कोशिश की, उसे पसंद आयी ये पेशकश ...अपने अनुसार फ़ाइन ट्यूनिंग कर लेगा.....share कर रहा हूँ. शुक्रिया विजयाजी और मुदिताजी का जिन्होंने सार्थक सुझाव दिए इस रचना में....सुझाव हो तो बेझिझक दें अच्छा होने की बहुत गुंजायिस है 😊)

विद्रोह और क्रांति

शब्द सृजन : विद्रोही आदि
==============

विद्रोह और क्रांति,,,,(With English Translation)
#########
कहे और अनकहे भाव 'होने' में
मानो हो
रुंधी रुंधी सीप से
प्रकट
सच्चे मोती,
परिपक्व एवं चमकीले,
सूक्ष्मतम एवं शोभामय,
परिपूर्ण मेधा से...
क्यों ना जीएँ हम संग उनके,,,,

हुये थे तुम व्यथित
मान कर
अवमानना
हुई स्वयं की
कहा था जब मैं ने
आना बाकी है
ज्वार का अभी भी
यद्यपि हो तुम सवार
निश्चित ही इस पल
उन्मत लहरों पर
और
फेंका भी है दूर
तुम को
इन्ही लहरों ने ...

आँखों में लिए अश्रु
लेटे हुए थे तुम
उदास
नितांत अकेले
दरिया किनारे
जब आया था मैं पास तुम्हारे
और
पोंछ कर आंसू तुम्हारे
बोला था
मंद सुकोमल स्वर में
तुम्हारे कानों में
'चरैवेति ..चरैवेति ..!

हुई थी
अनुभूति तुम को
घोर पीड़ा की,
जैसे नहीं थामा था
मैं ने तुम्हारा हाथ
चलने को संग और
होने को अग्रसर,
और छोड़ दिया था
तुम को एकाकी
लड़ने के लिए दुनिया से,
यद्यपि मैं था सदैव
तब और वहाँ
अभी और यहाँ,,,,,,

क्या समझ पाए हो तुम
मेरे सरोकार को कि
तुम करके आत्मसात अपने सारतत्व को
करके क्षमा खुद को,
पाकर विजय
स्वयं के विरुद्ध स्वयं के युद्ध में ,
कर पाओगे हस्ताक्षर
दुनिया के साथ समर-संधि पर ,
जानते हुए अर्थ
विद्रोह,
क्रांति,
अनुशासन ,
स्वतंत्रता ,
उत्तरदायित्व ,
अस्मिता,
प्रेमपात्रता
और
जीवन योग्यता के,,,,,

अंग्रेज़ी रूपांतरण :
==========

Rebellion And Revolution,,,
# # # # #
Said and Unsaid feels in being
Emerges like
Pearls from
A stifling oyster-
Ripe and Shiny
Minimalist and Elegant
Filled with the
Wisdom
And why dont we live by that,,,,,

Hurt you were with thoughts
Of being demeaned
When I  said-
The high tide is yet to strike
Though  certainly
You are
Riding the waves now,
Thrown away by the waves....

Tears in eyes
You were lying on the
Lonely beach,
Wiping your tears
Wishpered I  in your ears
"Move On...Move On !"

In deep agony
You were
As if I didn't hold your hands
To move and walk and
Left you alone
To fight with the world,
Though I have always been
Then and there
Now and here,,,,,

Have you undersood my concern that
You realize your essence by
Forgiving yourself
Shall Win the battle against yourself
And would be then
Signing the truce with world
Knowing the true meanings of
Rebellion
Revolution
Discipline
Freedom
Responsibility
Individuality
Love-ability
And
Livability,,,,

आनंद : विजया

शब्द सृजन : आनन्द
****************
आनंद.....
+++
क्या होता है आनन्द ?
आपके 'हेडफ़ोन्स' में सुनता मनचाहा संगीत ?
एक कोमल बालक का भोला सा चेहरा ?
अपनी अस्थियों में आया नया सामर्थ्य ?
जीवन में पहली बार हंस हँसकर ठहाके लगाना ?
नाटक में हमारी भूमिका की भरपूर प्रशंसा होना ?
किसी राह भटके अनजान को प्यार देना ?

मेरा तो सोच है
आनन्द ये सब हैं और इनमें से कोई भी नहीं
आनन्द तो प्राप्य है
छोटी सी छोटी बात में,
आनन्द तो है स्वयं के सत्व में,
केवल और केवल मात्र
स्व की अनुभूति में,
सच तो यह है कि
हम हो सकते हैं प्राप्त आनन्द को
हो कर विकसित
हो कर स्पष्ट
हो कर होशमंद
सहज स्वीकृता बन कर.....

भिन्न और समरूप : विजया

शब्द सृजन : उदार
***************

भिन्न और समरूप
+++++++++
ईर्ष्या है
चाँद को सूरज से
फ़सलों को जो बनाए रखता है वो
होती है प्रशंसा
उसके उदार होने की
करता है जो आलोकित कण कण को
बिना किसी पूर्वाग्रह के......

नहीं देख पाता किंतु चाँद
दंशता भी तो है सूरज
सुलगाता भी है
धधकाता भी है
पहुँचाता है अत्यधिक पीड़ा भी.....

ईर्ष्या है
सूरज को भी चाँद से
उगाता है तारों को जो,
मदद करता है पानी को
बने रहने में,
धकेलता और खिंचता है
लहरों को आगे और पीछे.....

नहीं देख पाता किंतु सूरज
लाता है चाँद
अंधापन साथ अपने,
कर लेता है गुम पूरी तरह
कभी कभी स्वयं को,
छोड़ देता है कमचोर
सितारों पर ज़िम्मा
अपने अधूरे काम को पूरा करने का.....

ईर्ष्या है चाँद को सूरज से
जलता है सूरज भी चाँद से
दोनों भिन्न है प्रत्यक्षत:
किंतु समरूप भी हैं पूर्णतः.....भिन्न 

बाग़ी : विजया

शब्द सृजन : बाग़ी
**************
बाग़ी
+++

ये आलम है
बाग़ी होने का मेरे
बिस्तर में सोई मैं
रख देती हूँ लटका कर
पाँव मेरा
पलंग के किनारे से
देने को चुनौती अंधेरों को
"आओ और पा लो ना मुझको.....😊

ठंडी हवा की कहानी : विजया

थीम सृजन
(ठंडी हवा की कहानी : धूप लगे सुहानी)
*******************************
आबो तस्नीम
+++++++
बहुत सताते हो
जब जब तुम
तेज़ ठंडी हवा बन
सामने से
चले आते हो,
मेरे चेहरे पर
मानो चपत सी लगाते हो,
हाँ रूहो जिस्म को सहलाते हो
ठहर कर चंद लम्हे
मुझे जी जान से
बहलाते हो
मगर चुपके से
दबे पाँव
ना जाने कहाँ
लौट जाते हो.....

बहुत भाते हो
जब जब धूप बन
तवानाई का सरमाया ले
पीछे से
चले आते हो,
शिद्दत से
मेरी पीठ को गरमाते हो
थपथपाते हो,
मेरे ज़र्रे ज़र्रे को
रब्बानी छुअन से
तपाते हो,
दे कर हसीं एहसास
दिली सुकूं के मगर
साँझ की तरह ढलते ढलते
छांव से हो जाते हो.....

जानते हुए तुम को भी
अहसासे अदम तहफ़्फ़ुज़ से
घबराया करती हूँ,
इस तज़ाद को
बेतज़ाद हो कर
तस्लीम कर लेती हूँ
और आबो तस्नीम से
ख़ुद के वजूद को
भर लेती हूँ
बाद रतजगों के
महसूस कर
तेरी वफ़ा को
तेरे आग़ोश की गिरफ़्त में
एक नया प्यार
जी लेती हूँ ....

(तवानाई=ऊर्जा, रब्बानी=दिव्य/divine, तज़ाद=प्रतिकूलता, तस्नीम=स्वर्ग का एक झरना, अदम तहफ़्फ़ुज़=असुरक्षा/insecurity)

(शुक्रिया साहेब का इस नज़्म को शेप देने में शरीक होने के लिए ❤😍)