Sunday 10 February 2019

नई शुरुआत : विजया

थीम सृजन : वन उपवन में छाया बसंत
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नई शुरुआत....
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कितना सहज है तुम्हारे लिए
सब कुछ
ख़ुद ब ख़ुद होने देना
जब तक कि
सब कुछ उतर ना जाय...

क्या है यह
गिरा देना सब कुछ कुदरतन
बिना किसी परवाह के ?
क्या है यह
ढाँप लेना ख़ुद को
एक ख़ाली ख़ाली
ठंडी सी पट्टी से ?

सीखाओ ना मुझे भी
जाने देना पुरातन को,
बना लेना जगह
नए रंगों के ख़ातिर,
काट फेंकना
जो भी बढ़ जाता है
ज़रूरत से ज़्यादा....

बताओ ना
क्या किया करते हो अफ़सोस
हर उस पत्ते के लिए
जो हो जाता है जुदा तुम से,
वक़्त के साथ
बहुत  कुछ बदल जाने का भी,
या तुम करते हो 'रेलिश'
हल्का हो जाने में
क्यों कि इस तरह हो जाते हो तुम
और नज़दीक
अपनी मंज़िले मकसूद के....

बता भी दो
क्या करते हो महसूस तुम
ख़ाली ख़ाली ख़ुद को
उस रूत में
जब होती है ये कायनात
महरूम दमकते हुए रंगों से
या तुम देख पाते हो ऐसे में
और ज़्यादा बेहतर
ख़ुद के असल अक्स को,
बदल पाते हो ख़ुद को
और बेहतरी के लिए...

अच्छा एक आख़री सवाल
क्या किया करते हो तुम याद
उन लमहों को
जब हुआ करते थे तुम
भरे पूरे ख़ुद  में
बिलकुल ही जुदा
आवाज़ों,गुहारों और रंगों से
यहाँ तक कि अपने इस वजूद से,
या उठा रहे हो लुत्फ़ तुम
अपने अकेलेपन का
हो कर तैय्यारी में
अपनी अगली शुरुआत की
बसंत के इंतज़ार में.....

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