Friday 15 February 2019

दरिया में बहते बहते,,,,,,

स्वांत: सुखाय
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दरिया में बहते बहते,,,,,,
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ऐ मेरे दोस्त
पतझड़ के सूखे पत्ते !
सुन लो ना आज
कुछ दिल मन की बातें,,,,

मेरे यार पतझड़ के सूखे पत्ते !
गिर जाना तुम्हारा
अंधकार में भटकते हुए
फिर बिछ जाना बीच राह
होता है सचमुच
प्रतीक परिवर्तन का
देते हुए
एक चेतावनी आने वाले
ठिठुराहट भरे दिनों की,,,,

जानते हो क्या तुम भोले !
हो कर आकर्षित
तुम्हारी ओर
बहुतेरे आशान्वित हृदय
पाते हैं मार्गदर्शन नेतृत्व और साथ
करने को यात्रा
एक अज्ञात किंतु बहुत ही
आनन्दमय लोक की,,,,

यह भी एक सच है
कुछ लोग
भरे हुए उदासी और दुख से,
करते हैं जद्दो जहद
रखने को साथ तुम को
निरुदेश्य भटकाने को
मगर खिसक जाते हो तुम झटक कर
दूर दूर उन से
नहीं खोते तुम अपना वेग ,ऊर्जा और क्षमता
कुछ बेहतर के लिए
दौड़-भाग करने को,,,,,,

जानता हूँ मैं ऐ दोस्त !
होता है कितना दुखद
तुम्हारे लिए
पलट कर लौट आना
अपनी यात्रा से
मगर लगता है मुझे सुखद
तुम्हारा किसी से भी
मुँह नहीं छुपाना
करना सामना
हर शै  का
बावजूद चोटों और ज़ख़्मों के
जो मिले होते हैं तुम को
वक़्त के दरिया में बहते बहते,,,,,,

एक बात तो है मेरे दोस्त !
जीना शिद्दत से
भरपूर ज़िंदगी को
हुआ करता है सुंदर हमेशा
चाहे बिताए जाते हों दिन
निहायत ख़स्ता हाल में,
सच कहता हूँ
मेरे प्यारे पतझड़ के पत्ते !
तुम ही तो हो संदेशवाहक
मेरी इसी
अबोली बात के,,,,,

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