Friday 8 February 2019

बाग़ी : विजया

शब्द सृजन : बाग़ी
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बाग़ी
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ये आलम है
बाग़ी होने का मेरे
बिस्तर में सोई मैं
रख देती हूँ लटका कर
पाँव मेरा
पलंग के किनारे से
देने को चुनौती अंधेरों को
"आओ और पा लो ना मुझको.....😊

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