शाश्वत है प्रेम मेरा....
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शाश्वत है प्रेम मेरा, दिन की हो क्या अपेक्षा
रूत हो चाहे कोई, सम गहन इसकी प्रेक्षा.....
करूँ प्रेम तुम से मैं यूं धूप के दिनों में
आलोकित हो धरा जब जाजवल्य सूर्य से,
करूँ प्रेम सर्वदा तुम से 'वर्षाकाले' निशिदिन
बरसते हों जब मोती मनोरम गगन से,
करूँ प्रेम तुम से प्रत्येक प्रात: मैं
रश्मियाँ हो रही हो जब विकीर्ण वातायन से,
करूँ प्रेम तुम से में रजनी के सानिध्य में
मगन हो समस्त तारे जब शशांक की लोरी से.....
मैं करूँ प्यार तुम से ऊष्ण ग्रीष्म की ऋतु में
धमकाती जब पाँव लहरें जलधि के सूने तट पर,
करूँ प्यार तुम से मैं रे मादक रितु बसंत में
स्वागत क़ोंपलों का करे पाखी उन्मुक्त गा कर,
करूँ प्यार तुम को प्रियतम पतझड़ की झड़ झड़ी में
डोलते हो विभ्रु* पत्र** जब पृथ्वी को चूम चूम कर,
करूँ प्यार तुम को साथी सुशीतल रितु शिशिर में
जब छाये आनन्द अनूठा चाय की प्यालियों पर.....
*भूरे रंग के **पत्ते
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