शब्द सृजन : उदार
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भिन्न और समरूप
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ईर्ष्या है
चाँद को सूरज से
फ़सलों को जो बनाए रखता है वो
होती है प्रशंसा
उसके उदार होने की
करता है जो आलोकित कण कण को
बिना किसी पूर्वाग्रह के......
नहीं देख पाता किंतु चाँद
दंशता भी तो है सूरज
सुलगाता भी है
धधकाता भी है
पहुँचाता है अत्यधिक पीड़ा भी.....
ईर्ष्या है
सूरज को भी चाँद से
उगाता है तारों को जो,
मदद करता है पानी को
बने रहने में,
धकेलता और खिंचता है
लहरों को आगे और पीछे.....
नहीं देख पाता किंतु सूरज
लाता है चाँद
अंधापन साथ अपने,
कर लेता है गुम पूरी तरह
कभी कभी स्वयं को,
छोड़ देता है कमचोर
सितारों पर ज़िम्मा
अपने अधूरे काम को पूरा करने का.....
ईर्ष्या है चाँद को सूरज से
जलता है सूरज भी चाँद से
दोनों भिन्न है प्रत्यक्षत:
किंतु समरूप भी हैं पूर्णतः.....भिन्न
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भिन्न और समरूप
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ईर्ष्या है
चाँद को सूरज से
फ़सलों को जो बनाए रखता है वो
होती है प्रशंसा
उसके उदार होने की
करता है जो आलोकित कण कण को
बिना किसी पूर्वाग्रह के......
नहीं देख पाता किंतु चाँद
दंशता भी तो है सूरज
सुलगाता भी है
धधकाता भी है
पहुँचाता है अत्यधिक पीड़ा भी.....
ईर्ष्या है
सूरज को भी चाँद से
उगाता है तारों को जो,
मदद करता है पानी को
बने रहने में,
धकेलता और खिंचता है
लहरों को आगे और पीछे.....
नहीं देख पाता किंतु सूरज
लाता है चाँद
अंधापन साथ अपने,
कर लेता है गुम पूरी तरह
कभी कभी स्वयं को,
छोड़ देता है कमचोर
सितारों पर ज़िम्मा
अपने अधूरे काम को पूरा करने का.....
ईर्ष्या है चाँद को सूरज से
जलता है सूरज भी चाँद से
दोनों भिन्न है प्रत्यक्षत:
किंतु समरूप भी हैं पूर्णतः.....भिन्न
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