Tuesday 27 September 2016

अवतार : शब्द का या अर्थ का


अवतार : शब्द का या अर्थ का
(अवतार सीरीज-२)
+ + + + + +
हास
परिहास
उपहास
अट्टाहास,
हास के
अवतार,
किन्तु
उपसर्गों ने
बदल दिए है
अर्थ हर रूप में,
नहीं जानती मैं
होते हैं
शब्दों के अर्थ या
अर्थों को रूप देने
हुआ करते हैं
शब्दों के अवतार ?
हो जाते हैं
किन्तु मनस्थितियां से
दिग्भ्रम और मतिभ्रम के अवतार,
मृदुल हास या परिहास
लगने लगता है उपहास,
देने लगती है
मैत्रीमय कोमल स्मिति
तीव्र व्यंग का आभास,
कह सकता है
मौन भी अनकहा
बता देती है
नयनों की उदासी
सब कुछ था जो सहा,
देने को सन्देश हर्ष का
आँख से आंसू बहा
पीर का नीर बन वही
दृग से झरता रहा,
अनुभूतियों के ये अवतार
कितने विरोधावासी है
अपने ही देश में रहते
बन कर ये प्रवासी है.

Monday 26 September 2016

प्राक्कथन अवतार सीरीज का : विजया



प्राक्कथन अवतार सीरीज का
★★★★★★★★★

जब यहाँ सब अपने हैं तो साफ साफ बता देने में क्या संकोच. ये 'सरजी' याने हमारे 'साहेब' हैं ना बड़े लाज़वाब, दिलदार, समझदार, वेल रेड, चिंतनशील मगर बड़े ही अजीब इंसान है.


तरह तरह के उपाय आजमाने के बाद भी मैं घर में बहुत से अजीबो गरीब नमूनों की आमद को एकदम बंद कर पाने में नाकामयाब रही हूँ, शुक्रिया सोसल मीडिया का कुछ भीड़ वहां डाइवर्ट हो गयी, फिर भी..

हाँ तो हमारे घर इन बुलाये बिन बुलाये मेहमानों में शुमार प्राणी हैं : महाज्ञानी टाइप्स दंभी और हाइली इम्प्रेक्टिकल प्रोफेसर्स जो भूल में या जानकर दूसरों की प्लेट से भी नाश्ता खा जाते हैं, रिपीट परफॉर्मेंस भी दे देते है ना सिर्फ चाय-काफी-शरबत-शिकंजी के लिए बल्कि गीले सूखे/ठन्डे गरम नाश्ते के सन्दर्भ में भी☺ युनिफॉर्मड(धोती अंगरखा) और टैटू (लंबा/आड़ा/यु-आई शेप तिलक) धारी पंडित जो दुनियां के परहेज़ की बात करते हैं और सब कुछ खा पी जाते है, डिटेल्स धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती है, ओशो, सद्गुरु, डबल श्री, के चेले/चेलियाँ जो खुद को अपने अपने गुरुओं के ज़िंदा भूत समझ कर, उनके अंदाज़ में बातें करते हैं, सिर पर काला टीका वाले दाढ़ी बढाए मूंछ मुंडे मुल्ला मौलवी जो ना जाने क्यों छोटी लेंथ का पाजामा पहनते हैं, ऐसे प्रोग्रेसिव जैन/सनातनी/आर्यसमाजी/क्रिस्तान/मुसलमान बन्दे जिनका प्रगतिवादी और उदारवादी दृष्टिकोण हमारे अपार्टमेंट के दरवाजे में घुसते समय शुरू होता है और निकलने के साथ ख़त्म हो जाता है- हाँ खाने पीने के साथ परवान चढ़ता है, कुछ चमचे/चमची टाइप्स नर नारी जो साहेब के ऐसे गुणों का बखान करते नहीं थकते जो मैं अपने कई दशकों के साथ के बावज़ूद भी नहीं जान पायी, अभुगतनीय क़र्ज़ लेने वाले ज़रूरतमंद जो हम से अच्छी गाड़ियों में आते हैं, मेडिकल मसलों पर सलाह करने वाली पब्लिक , बच्चों की पढ़ाई और कैरियर काउन्सलिंग के लिए भी मुफ़्त सलहार्थी, बाप बेटे- भाई भाई - मोटियार लुगाई के झगड़ों के पंचायतोत्सुक इत्यादि इत्यादि. हालांकि जैसा कि मैंने पहले भी कहा, जब से मोबाइल/व्हाट्सऐप/ वीचैट/फेसबुक का प्रचलन बढ़ा है ऐसी ही कुछ ट्रैफिक वहां भी डाइवर्ट हो गयी है. अरे भूल ही गयी, इन सब के बीच रेगिस्तान में निखलिस्तान की तरह कुछ अच्छे लोग भी कभी कभी दिखाई देते हैं लेकिन बहुत कम. मज़े की बात, हमारे साहेबजी सब को बड़े प्यार से बड़े धैर्य से झेलते हैं☺सब कुछ जानते समझते हुए भी.....ज्ञानी अवधानी जो हैं.....उनकी खुद की बोली मनोविज्ञान की तकनीकी भाषा में हमारे साहबजी इम्प्रेसनेबल है.

अभी पिछले दिनों की बात है, एक सज्जन हमारे यहाँ आये और अवतारों पर बड़ी लम्बी चर्चा हमारे ड्राइंग रूम में हुई....चाय के कई रूप जैसे दूधवाली, पतली, तुलसी ऑर्गेनिक, ग्रीन टी....काली भूरी कॉफी....टी केक....बिस्किट...सन्देश समोसा....बर्फी कलाकंद पकौड़े.....चिप्स आदि अवतार उनकी गिनती में हालांकि नहीं थे,मगर बदस्तुर अवतरित हुए और विलीन भी हो गए☺ खैर उस दिन गीता के 'यदा यदा' के साथ ये पत्नीभक्त तुलसीदास जी की यह चौपाई भी गूंजी थी :

जब जब होहिं धर्म की हानि।
बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।
तब तब प्रभु धरि मनुज शरीरा।
हरहिं शोक मम सज्जन पीरा।।

बुद्ध के रीइनकार्नेशन, ईसा के रीसरेक्शन, साईँ बाबा,राधा माँ, कृपालु महाराज और ना जाने क्या क्या शब्द बम फूटे थे उस दिन. ऐसे मैं मुझे भी कई अवतार दिखे, ट्विटर, फेसबुक, मीडिया, राजनीती इत्यादि में. दिल कर रहा है मैं भी एक सीरीज लिख दूँ और नाम दूँ 'अवतार सीरीज'...…...क्या ख़याल है आप सब का ?

सखी वो क्यों लेगा अवतार.. : विजया



सखी वो क्यों लेगा अवतार..
(अवतार सीरीज- १)
+ + + + + + +
धर्म ध्वजायें गगन चूम रही
संतों की नित धूम मच रही
धर्ममय भया सकल संसार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.


मंदिर भव्य नित्य बन रहे
मस्ज़िद के मीनार तन रहे
गिरजों की गुंजरित घंटिया
गुरूद्वारों में सबद गुंजार,
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

चंदे दान के दौर गरम है
धन धर्म एक ये कहाँ भरम है
धन बरसे रौं रौं मन हरसे
भये हरित; ज्यों बसंत बहार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

श्रवण कांवड़ अत्यंत पुरानी
मात पिता की नयी कहानी
आईटेनरी है वर्ल्ड टूर की
ना रही तीरथों की दरकार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

रावण राम ढूंढते यारों
कहते प्रभुजी हम कूँ मारो
खीसा ढीला करो रघुवंशी
ना मारो तीर अब दो या चार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

रासलीलायें हर रजनी को
राधे पुकारे हर सजनी को
गोपियन की लीलाएं न्यारी
डिस्को होवत जमना पार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

सज्जन सब,ये जग जानत है
पहुंचे संसद सब मानत है
मंचों पर सम्मान है इनका
क्या तू नहीं जाने हे करतार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

कैस्सेट सीडी भएल पुराने
आईपॉड पर भजन सुहाने
घर घर गूंजे नाम प्रभुजी का
सुने क्या तू हे पालनहार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

भागवत कथाये अति आयोजित
कीर्तन जागरण नित प्रायोजित
मिल्लत तक़रीर के नए मौसम है
बोले तात-भ्रात-भगिनी बारम्बार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

योग ध्यान शिविर बढे है
चैनल लाइव चलन चढ़े है
चोगा-लंगोट-जटा और दाढ़ी
ज्योतिष तंत्र मन्त्र व्यापार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

शान्ति शान्ति सर्वत्र समायी
हम पंचशील के हैं अनुयायी
विश्व गुरु भारत फिर स्थापित
माने सब आर्यावर्त मनुहार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

अभ्युत्थान भक्तों का देखो
जितनी लंबी चौड़ी फेंको
दुष्ट दुर्बल चुनाव है हारे
भयी अपनी ही सरकार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

नहीं प्रभु है धर्मस्य ग्लानि
बढे नहीं असुर अज्ञानी
क्यों तुम व्यर्थ में कष्ट उठाओ
सैज कूँ बिलसो नाग पसार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

राजस्थानी दूहा : विजया


+ + + + + + +
जस अपजस रे खेल में जीवण हुयो बदीत,
खाली हाथ चिता चढ्या नहीं हार नहीं जीत.

होळा चालो साजणा ह'र चालो पंथ बुहार,
जे गड ज्यासी कांकरो हु ज्यासी निसतार.

मिनकी आई चाणचुकी उन्दर लगायी दौड़
मार झप्पटो धर लियो जोड़ लग्यो ना तोड़.

बाप कमाई बिलस रिया टाबर बण पळगोड
मोज मलीदा कर रिया जियां ऐ स्यामी मोड.

अबड़ो गेलो प्रेम रो मिलजुल चाल्या साथ
मोड़ चोराहा है घणा छोड ना दीज्यो हाथ.

आलीजा जीव जळावो सा.... : विजया


+ + + + + + +
म्हारे जीवड़े म्हांली पीड़
सजनसा निजर घुमाओ सा,
म्हारे हिये उठै हब्बीड़
भंवरसा ध्यान दिरावो सा ।। स्थायी ।।

जब थे देखो मूळक ने
सै कळियां ज्यूँ खिल ज्याय
मीठा बचना झूमज्या
वे थाँस्यूं हिलमिल ज्याय,
इयां क्यूँ जीव जळावो सा ।। म्हारे ।।

पंछी मांड्यो पिंजरों सा
भरम रोट लटकाय
फंसग्यो माणस सान्तरो सा
ज्ञान घणो बघराय
घणा ना पाठ पढ़ावो सा ।। म्हारे ।।

नशो धतूरो आकरो सा
हर भाषा बुलवाय
चेप शहद रो मोकळो सा
सबदां स्यूं चिपकाय
इब सिरजण रीत निभावो सा ।। म्हारे।।

बिजळयां चिमके जोर की सा
घन बरस् घिणघोर
सोग (शोक) मिट्यो घस कलम ने सा
जोर मचावे शोर
थे सम्भळो, लेर् न जावो सा ।। म्हारे ।।

ओसो मोसो बोलियो सा
बात बात री तोड़
कूद फांद कर पड़ गया सा
मिटग्या सगळा झोड़
ध्यान निज मांय धरावो सा ।।म्हारे ।।

रामा थांरै बाग़ में सा
लामी बधी खिजूर
ल्याळ पड़न्ता नहीं समे सा
आदत स्यूं मज़बूर
जी टाण्डो बेग लदावो सा ।।म्हारे ।।

धुंध का आभास है....: विजया


+ + + + + + +
धुंध का आभास है
और दृष्टि का प्रयास है
देख पायें यदि उसे
जो घटता अनायास है.

कार्य कारण के सम्बन्ध
क्या हो जाते सदैव है
मिलना और बिछुड़ जाना
कोई गणित है या दैव है,
सहज कहते हैं किन्तु
जीना तो सप्रयास है
देख पायें यदि उसे
जो घटता अनायास है.

मनुज की प्रतिज्ञाएँ
कहाँ पर्यन्त फलित है
चिंतन मनन ठोसता
स्वतः ही गलित है,
नहीं कुछ सुनिश्चित
स्फुट सा कयास है
देख पायें यदि उसे
जो घटता अनायास है.

प्रदर्शन का आकर्षण
अति गहन प्रभाव है
अवश की मीमांसा में
विवेक का अभाव है,
शूल की चुभन प्रिय
या पुष्प की सुवास है
देख पायें यदि उसे
जो घटता अनायास है.

जानकर अनजान बन
जीना अब स्वीकार है
कौन जाने कहाँ कितने
रिश्तों के प्रकार है
नदी के प्रवाह मध्य
द्वीप पर निवास है
धुंध का आभास है
और दृष्टि का प्रयास है.

इंतज़ार की लज़्ज़त क्या कहिये.....


# # # ## ## # #
पलकों से बुहारे काँटों को
ऐसी हो खिदमत क्या कहिये.

चाक है जेब ओ दिल दरिया
वल्लाह ये ग़ुरबत क्या कहिये.

आकाश से गिर खजूरांअटके
हाय री किस्मत क्या कहिये.

दिल से खुशबाश ,महबूब हँसे
ऐसी कोई जन्नत क्या कहिये.

औरों को गिरा दे नज़रों से
वो झूठी अज़्मत क्या कहिये.

सहरा में खिला दे फूलों को
रब की ये रहमत क्या कहिये.

महशर में मिले, हम मिल तो गए
इंतज़ार की लज़्ज़त क्या कहिये.

छुप छुप के निकलते हैं घर से
शोहरत की ये वहशत क्या कहिये.

(चाक=फटी हुई, ग़ुरबत=गरीबी,खुशबाश=खुश रहने वाला, अज़्मत=प्रतिष्ठा, सहरा=मरुस्थल, रहमत=कृपा, महशर=महाप्रलय, शोहरत=प्रसिद्धि, वहशत=भय.
वहशत के और अर्थ जंगलीपन या पागलपन भी होते हैं लेकिन यहाँ भय के अर्थ में ही लिया गया है.)

Friday 2 September 2016

उपहास

######
बन जाये
जब
जेहन की सजावट
ओस में भीगी
नर्म घास,
दिल की गहराईयो में
जड़ जमाये
बूटों का
होने लगे
उपहास,,,,

उग आई घास : विजया (राजस्थानी ओठा पर आधारित)

+ + + + +
भला हुआ
विधाता मेरे !
जन्मे जामनदास,
बोया था
बाजरा मैंने
(लेकिन)
उग आई घास...

सहअस्तित्व अधूरे सपनों का.... : विजया






★★★★★★★★
माना यह जीवन अपना छोटी एक कहानी है
एहसास है पीड़ा का शिफ़ा मैंने कहाँ जानी है.

जीवन को बना ना पाये गुलज़ार हम सही में
कांटे कुछ बुहारे ये हकीकत ना अनजानी है.

सहअस्तित्व अधूरे सपनों का बना साथ अपना
जीने की प्रत्येक विद्या हमने तुम्ही से जानी है.

(बाहम अधूरे सपनों का बना है साथ अपना
जीने की हर वज़अ हमने तुम्ही से जानी है.)

ना टिका ठहर कर कोई दरियाऐ ज़िन्दगी में
है वेग तीव्र, लहर चंचल बहता हुआ पानी है.

मिला कर खुद को ही तुझमें पाया वुज़ूद मैंने
सब कुछ बसा है तुझमें बाकी सभी फानी है.

दिखावा : विजया


++++++++++

देखें है बहुतेरे
जो संतोष का
दिखावा करते हैं
बात बेबात का वो
पछतावा करते हैं,
डूबे रहते हैं
हर पल खुदनुमाई में
मगर औरों को
जान पाने का
बड़ा दावा करते हैं.

किस किस का हम हिसाब करें ? : विजया


+ + + + + +
हवा और सांस
पानी और प्यास
सूरज और प्रकाश

ऐसे में कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

चाँद सितारे रात
बादल और बरसात
पर्वत और प्रपात

ऐसे में कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

आँख और अश्क
इश्क़ और रश्क
भीगे और खुश्क

ऐसे में कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

धुप और छाँव
मंज़िल और पाँव
मरहम और घाव

ऐसे मैं कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

ख़ुशी और गम
करम और सितम
जियादह और कम

ऐसे में कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

साँसे गिनते रहना यूँ अंदाज़ नहीं है जीने का
पीना तन्हा तन्हा छुपके शऊर नहीं है पीने का
चन्द सिक्के गिन दे देना मोल नहीं पसीने का

ऐसे मैं कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

रास रास ना आया,,,,,,,


# # # # # # #
तेरा रास किसुन ना रास आया
हर शै का तोहे जब खास पाया.

तकै आइना मुंह जिस तिस का
ठहरा जो यकायक उदास पाया.

बना हूँ दीया एक मुफ़लिस का
बुझा जो हर साँझ उजास पाया.

रुके थे यारों एक लंबे सफ़र में
अटका हुआ जो हर सांस पाया.

बन कर रहजन लूटा है रहबर ने
गिनें कैसे क्या खोया क्या पाया.

ऐसो निठुर बलम हमार.... : विजया



+ + + + + + +
समझ समझ के नाहीं समझे
ऐसो निठुर बलम हमार
का करें का ना करें री सखी
लटकत मोय पे एहि तरिवार ।। ऐसो ।।

भोर भये जब अंखिया खोले
हमका गुड मॉर्निंग ना बोले
ओन करे समसुंगजी के
ज्यूँ सौतन को इंतज़ार ।। ऐसो ।।

फेसबुक वॉटसअप में रमत है
वर्चुअल सनसार के ही जीवत है
नित नूंवो सनियास रचत वो
भयो मनुस जीवन निस्सार ।। ऐसो ।।

सखियन संग ज्यूँ रास रचावत
नित कुं खोवत नित कुं पावत
सबद खिलाड़ी रह्यो सदा सूं
है निगुन सगुन कलकार ।। ऐसो ।।

बनो मेरो सैंया बैग पाइपर
आकरसन अदभुत है साइबर
शहद है वो मदुमख्खी अनगिन
चहुँ दिसी महिमा अपरमपार ।। ऐसो ।।

हिरदे वांके परेम भरो है
सिक्को मेरो बहोत खरो है
भोळो शम्भू फ़क़ीर की फ़ित्रत
म्हारो जीवण है भरतार ।। ऐसो ।।

आत्ममुग्धता ....... :विजया



+ + + + + +
याद दिलाती है
सेल्फी-कल्चर
आत्ममुग्धता की,
वो यूनानी पौराणिक कथा का
नायक नार्सिस जो
हो गया था आशिक
खुद के ही रूप का
देखकर अपना ही अक्स
पानी में,
देखता रहता था
होकर मुग्ध स्वयं को
पल प्रतिपल
होकर बेसुध कि
और भी बहुत कुछ है
दुनिया में.......
आज भी दिखेंगे
आसपास ऐसे 'आत्ममुग्ध'
जिन्हें भ्रम है
खुद के रूप रंग
ज्ञान और विद्वता
उदारता और व्यावहारिकता
चाल और चरित्र का,
कि 'हम' सा कोई नहीं
लाज्ज़हीनता
स्वार्थपरता
असंवेदना
क्रूरता
असहजता को जिये जाते हैं
ऐसे लोग,
दिखाकर नीचा दूसरों को
अस्वीकार कर स्वयं की त्रुटियो को
अहंकार मद में चूर
करते हैं
येनकेन प्रकारेण
बुलंद परचम अपना,
बिना नींव के ये कंगूरे
बन कर सूखी डाल किसी पेड़ की
झुकते नहीं
टूट जाते हैं
और हो जाते हैं विलुप्त
स्मृतियों से.....

अनछुए शब्द...

# # # # # #
अनछुए शब्द
ठीक ही तो कहा तुम ने
नामुमकिन है छू लेना इन को
बावजूद लाख कोशिशों के,
मौन औढे ये
अदृश्य से निराकार
दे देते हैं भ्रम
आकार का
अपने चिंतन से जुड़े
किसी प्रकार का
कभी आलिंगन
कभी प्रहार का
कभी मेल
कभी तकरार का,
बहम है यह भी कि
देते हैं ये रूप
मन के भावों को
दिल में लगे
गहन या सतही घावो को
भंवर में डूबी या साहिल पर पहुंची
बिना पाल की नावों को,
हम ही हैं
जो करते रहते हैं
इस्तेमाल इनका
मगर ये हैं कि
खिसक लेते हैं
मुठ्ठी की रेत की तरह
जिसे बांधे रख पाना
होता है
एक खुशफ़हमी जैसा,
देखो ना
जब जब हुये दुष्प्रयास
किसी भी बुद्ध्पुरुष की
देशनाओं को आकार देने का
खिसक लिए थे ये
छोड़कर हम सब को
करने नाना व्याख्याएं
वेदों की
उपनिषदों की
गीता की
आगम की
धम्मपद की
बाईबिल की
कुरआन की
और तो और
हमारे संविधान की....

Sunday 19 June 2016

बंद आँखों के अक्स

छोटे छोटे एहसास
=============
# # # #
बंद आँखों के अक्स
आँख खुलते ही
जुदा हो जाते हैं,
इतराकर वो जालिम
बनके पत्थर
खुदा हो जाते हैं.....

अनछुए शब्द,,,,,,

अनछुए शब्द,,,,,,

# # # # # #
अनछुए शब्द
ठीक ही तो कहा तुम ने
नामुमकिन है छू लेना इन को
बावजूद लाख कोशिशों के,
मौन औढे ये
अदृश्य से निराकार
दे देते हैं भ्रम
आकार का
अपने चिंतन से जुड़े
किसी प्रकार का
कभी आलिंगन
कभी प्रहार का
कभी मेल
कभी तकरार का,
बहम है यह भी कि
देते हैं ये रूप
मन के भावों को
दिल में लगे
गहन या सतही घावो को
भंवर में डूबी या साहिल पर पहुंची
बिना पाल की नावों को,
हम ही हैं
जो करते रहते हैं
इस्तेमाल इनका
मगर ये हैं कि
खिसक लेते हैं
मुठ्ठी की रेत की तरह
जिसे बांधे रख पाना
होता है
एक खुशफ़हमी जैसा,
देखो ना
जब जब हुये दुष्प्रयास
किसी भी बुद्ध्पुरुष की
देशनाओं को आकार देने का
खिसक लिए थे ये
छोड़कर हम सब को
करने नाना व्याख्याएं
वेदों की
उपनिषदों की
गीता की
आगम की
धम्मपद की
बाईबिल की
कुरआन की
और तो और
हमारे संविधान की....

नफरत : विजया

नफरत
+ + + + + + +

सिक्का एक
पहलू दो
प्यार और नफरत...

जुड़ना भी
उड़ना भी
प्यार और नफरत...

वेग भी
आवेग भी
प्यार और नफरत...

आलाप भी
प्रलाप भी
प्यार और नफरत...

भाव भी
विभाव भी
प्यार और नफरत...

अनुसृजन भी
विसर्जन भी
प्यार और नफरत...

साथ भी
जुदा भी
प्यार और नफरत...

आक्षांस देशान्तर
अन्तर्दशा प्रत्यंतर
प्यार और नफरत...

निहानी : विजया

निहानी.....

+ + + + + +
लफ़्ज़ों को जीनेवाले तुम
बात निहानी क्या जानो,
दिन को लंबा करने वाले
तुम रात सुहानी क्या जानो.

हर लम्हे पैसा हा पैसा
तुम बात रूहानी क्या जानो
प्यार ही प्यार से भरी है जो
वो मेरी कहानी क्या जानो.

साहिल पर बैठे रहते हो
मौजों की रवानी क्या जानो
नंगे जिस्मों के आशिक़ हो
तुम चुनरी धानी क्या जानो.

हर सांस में खुदगर्ज़ी है असीर
फ़िज़ा मस्तानी क्या जानो
रिश्तों रिवाजों में गाफिल हो
तुम मीरा दीवानी क्या जानो.

फ़क़ीर लकीर के बने हो तुम
दिल की मनमानी क्या जानो
जन्मों की प्यास दबाये हो
आँखों का पानी क्या जानो.

नए हिज्जे

नए हिज्जे

# # # #
डुबो कर कलम
दवाते दिल में
लिख दूँ
तिरे सफ़ा-ए-जबीं पर
गहरी इबारत
उतार चढाव लिए
बेल बूटेदार
खूबसूरत उर्दू में,
शुरू हो 'अलिफ़' से
और ना रुके
'ये' पर पहुँच कर भी,
बस निहारता रहूँ तुम्हे
एकटक नज़रों से
लिखने को
कुछ नए हिज्जे
जो समझ सकें
सिर्फ मैं  और तू .....

Sunday 15 May 2016

मुळको थे म्हारा साजना....(राजस्थानी) : विजया

मुळको थे म्हारा साजना....(राजस्थानी)

+ + + + + + +
घट ने मरघट क्यूं क़रयो रे
क्यूं मारयो हरख उल्लास
मुळको थे म्हारा साजना ।।स्थायी।।

जीणे खातर मिली जिनगी
मरण जीयो क्यूं जाय
हंसी ख़ुशी बिताल्यो दिनड़ा
रात काळी क्यूं आय

छोड़ उदासी रहवो थे हँसता
ओ जीणे रो मंतर खास
मुळको थे म्हारा साजना.....।।१।।

उलटी पुलटी बात्यां सोच्यां
उलटो ही हुँवतो जाय
बीजो जे बंवलियो भाया
आम कठे स्यूं पाय

पार पड़ी रे पीथीया ! जाया जीवण दास
बायी तो ही बाजरी सा उग आयगी घास
मुळको थे म्हारा साजना.....।।२।।

संगत चोखी बैठ भायला
दूध पीयो के चाय
गलत लोकां रो साथ भायला
खुद ही ने तो खाय

आरे म्हारा सपनम पाट
म्हे तने चाटूं तू म्हने चाट
मुळको जी म्हारा साजना.....।।३।।

अगला शब्द : उल्लास

मुळको= मुस्कुराओ, साजना= यहाँ सज्जनों को संबोधित करने के लिए प्रयोग हुआ है, भायला=मित्र, बंवलियो=बबूल, बीजो=बीज बोना, बायी=बोयी,

पुरूषमन व्याकुल सदा...

पुरूषमन व्याकुल सदा...

(पुरूष मन अधिकांशतः इस उहापोह में घूमता रहताहै जब तक अवेयरनेस और क्लैरिटी के बिंदु को क्रमशः छूं ना पाए...कुछ ऐसा ही नारी मन में होता होगा रचना अपेक्षित है,,,,,इसे विशुद्ध मनोविज्ञान के रूप में लिया जाय, जिसे जस का तस पेश करने की कोशिश है.)
########
असमंजस निशिदिव
अनुकूलन अतीव
प्रश्न किन्तु सजीव
पुरूषमन व्याकुल सदा,,,,,

सहगामिनी अनुगामिनी
शिथिल या सौदामिनी
अनुयायिनी या मानिनी
अभिशांत या कलहासिनी
विलग या अभिसारिणी
मूक या मृदुभाषिणी,
चित्र विभिन्न
शंकित मन
सुस्पष्टता घटित यदा कदा,,,,,,

प्रतिरोधिनी या वाहिनी
योगिनी या वियोगिनी
सामान्य हो या विलक्षिणी
राधिका या रुक्मिणी
अथवा मीरा सम समर्पिणी
विकल्प अनेक सोचे प्रत्येक
चित्त में बसाए कामिनी
अंतर्दर्शन जब हो विलुप्त
प्रत्याख्यात ग्रहण प्रत्युत
बाह्य दृष्टि सर्वदा,,,,,,,

सौतन री चुगली... : विजया

सौतन री चुगली...

++++++++++
गहरी नींद
ठंडी ठरियोड़ी रात
रुत रो कीं लेनो देनो कोणी हो
करियो धरियो हो
चुपचाप श्यान्त रहण हाले
नुवें मॉडल रे एयर कंडीशन रो
जीको मारवाड़ी लुगाई ज्यूँ
मांय मांय बोलतो रहवे
पण बाहरने बोलो रहवे,
कंवलो मेमोरी फोम रो
स्प्रिन्गदार गिदरो
चायनीज़ साटण री चादर
लीले नाईट लैंप रो उजास
सुयोड़ी ही जाणे रंग मेहल में....
खुलगी चाणचुकी
म्हारी आन्खड़ली
कांई देखूं हूँ
म्हारा जोड़ी दार
हिन्व्ड़े रा हार
छैल भंवरसा
हथेली में आई फोन लियां
मुलक रिया हां
मन ही मन,
मोबाइल री स्क्रीन माथे
यूँ निरख रिया हां
जियान टाबर केडबरी ने देखे
निजरां स्यूं ललचावे
के गर्ल फ्रेंड ड्यूटी फ्री शॉप में
विलायती रंग रोगन री जिन्स्याँ
देखने इतरावे....
लाग्योड़ा हां सजनसा
हथाई में
व्हाटसप के फेसबुक पर,
पंजाब सिंध गुजरात मराठा
द्रविड़ उत्कल बंग री भायल्यां स्यूं,
राजपूताने री संस्कृति री
लच्छेदार बात्यां कर कर ने
रीझ्या रह्या हां
भारत और बिलायत में फैली
रंग रगीली
छैल छबीली
कामणगारी पदमणयां ने
और सबदां री जादूगरणयां
कबूतरयां (कवियत्रियाँ)
म्हारे भोले शम्भू रे
गहरे हीये में पेंसिल हील सेती
उतरयाँ जावे ही...
म्हाने चेत आया
म्हारा डिस्टेंट रिलेशनशिप रा दिन रात
पढने रे नांव
फेर चाकरी रे नांव
ए दिसवारां फिरता
हर म्हे मरवण सी
मरुधर में ऊँचे डागले
चान री शीतल च्याननी में
धोला उजला बिछावणा माथे
पसवाड़ा फेरती
दिन में डाकिये री अडीक में
गढ़ री ड्योढ़ीयाँ झांकती
टेलेफोन रो हूणों अणहूणों एक हो
बात बस दाता जीसा स्यूं बिण री कोई
छटे छमास हो ज्याती,
चूड़ीबाजे माथे
सुपनो, पीन्पली, पिनिहारी
कुरज्यां, सुण ने दिन बदित हुन्वता
ओल्युं हर अडीक रो
अबडो समन्ध निभावन्ता
ना जाणे कितरो टेम
हंस ने हर रो ने गुजारियो....
म्हारा भी 'अच्छा दिन' आय पुग्या
म्हारो चौबीस घंटा रो साथ
डोकरी री किरपा स्यूं
साकार हुग्यो
एक ज्यान दो डील री बात
साँची साबत हुगी
म्हारा माथे रा बोरला
म्हारा नौलखा हार
म्हारा ढोला लसकरिया
म्हारे सांसा रा सिरताज
म्हांरे सागे रहण लाग्यो
मिलजुल सुणता
अल्लारखी बाई रो
पधारो म्हारे देश के
देशानी री चिरज्यां
के म्हारे जाट धरम भाई को
भेंट करियोड़ो तेजो,
सुणता सुणाता
गान्वतां बजातां
चोखा दिन रात लग गया हां
बदीत हुणा के
सौत बणने आय पुग्यो
औ स्मार्ट फोन
म्हारी तो यारां सिली सिली रात सी
ज्यूँ जळण लागगी,
कोयला भई ना राख...
अगला शब्द : राख
(कुछ फोंट्स को key board की सीमाओं के कारण सही रुप से नहीं प्रस्तुत कर पायी हूँ..पाठकगण कृपया निज विवेक से राजस्थानी उच्चारण में पढ़ें.)

Friday 26 February 2016

तवज्जो,,,,,,,,,

तवज्जो,,,,,,,

# # # # #
जानना समझना है
गर किसी की
तबिअत को                       ( प्रकृति /nature)
उठा लो जोखिम
खेल
तवज्जो                              (attentiion) (विशेष ध्यान)
और
तगाफ़ुल का                      (neglect) (उपेक्षा)
खेलने का ,
देख लो
रुख बदल बदल कर
उन सब को
जो करते थे दावे
तवानाई                              (strength/power) (शक्ति)
तवालत                              (prolongation) (दीर्घता)
तवाज़ुन                              (balance) (संतुलन)
तवातुर के,                          (eternity) (निरंतरता)
खुलने दो
तह-ब-तह                           (layers)(परतें)
तसन्नो के                            (artificiality) (कृत्रिमपन)
तवह्हुमात,                         (illusions) (भ्रम)
तहनशीं में                          (sediment) (तलछटी)
पाओगे
जूनून ए तसल्लुत,                 (domination) (आधिपत्य
लिए हुए
सोच तशकीक के                 (doubt) (संदेह)
जो हो चुके हैं
तहलील                              (dissolve) (विलयन)
तहोबाला होकर                   (disarranged)(अस्तव्यस्त)
उनके
तलव्वुन मिज़ाज़ में,              (instable)(अस्थिर)
बेज़रूरत साबित होंगी
सारी तरकीबें                       (strategies) (रण नीतियां)
तरदीद                                (refutation) (खंडन)
तरतीब                                (arrangement (क्रमबद्ध)
तलाफी और                         (compensation)(क्षतिपूर्ति)
तवक्को की,                            (expectation)(अपेक्षा)
छोड़ कर
तफ्तीश                                 (search) (जांच पड़ताल)
लौट  आना
जानिब खुद के
होगा हासिल
तरब                                    (joy)(हर्ष)
ताज़ा तरश्शुह और                (drizzle) (फुहार)
तग़ैयुर के                              (transformation) (परिवर्तन)
तरन्नुम का,,,,,,                          (lyrical sound) (संगीत)

Sunday 14 February 2016

जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी : विजया और विनोद

जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी
#########
थांरी रख्या करे देशाणी ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
म्हाने सुख आयो जद थे आया
थे तो सिरदयां में धूप सुहाणी ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
थांरो उणीयारो महाराणी सो
थांने जलम दियो छत्राणी ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
चटक मटक चोखा चोखा
थांरै नखरां री बात नीराली ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
थे मूळको जद जग मूळकज्या
थांरी बात घणी मन भायी ओ राज
जुग जुग् जीयो म्हारी लाडलड़ी.
नख शिख तक थे सज्या रहवो
थांरा शौक जबर रजवाड़ी ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
दिल थांरो काचो कोमळ घणो
ज्यूँ कनक बाई री जाई ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
(आज हमारी बेटी नीरा का जन्मदिन है ३ नवम्बर, २०१५)
तर्ज़ : घूमर रमबा म्हे जा स्यां ।

जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,

जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,
#######
ऊष्मा को मैं था तरस गया
जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,,,

मैं तपता एक मरु थल था
झुलसा तन, मन विकल था
रुत बदली, बदला मौसम
आयेे थे बन सुखद फुहार तुम,,,,,,,

रजनी दिवस घटी वो पल
थिरता थोड़ी ,लंबी हलचल
समय के उड़ने का शिकवा
आये थे बन सुखद बयार तुम,,,,,,

बेचैन चाह बनी राहत
पल छिन थी तेरी आहट
बंद दर पर दे दे कर दस्तक
आये थे बन सुर झंकार तुम,,,,,,

शीतकम्पित हृदय हो रहा
अंतस का सम्बल खो रहा
गिरे परदे छंटे कुहासा यह
हो प्रकट सूरज साकार तुम ..

ऊष्मा को मैं था तरस गया
जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,

शल्क=परत, पपड़ी

Scribblings : Maturity

Scribblings  : Maturity
# # ## # # #
Maturity
The inner integrity
That happens only
When we stop making
Others responsible
For our
sufferings,
Let us realize
Whatever is happening
It is our doing
It is our creation,,,,,,
Maturity is not
Hypocrisy
Crookedness
Manipulation,
It's Innocence
Innocence reclaimed
Becoming the child again
The child who is incorruptible
As he has attained the
Consciousness,
Fully alert he is
Aware of all the
Beauty and splandor of
Existence
Now he lives in present
Firm and fair he is
With all the gentleness
With all the sweetness of nectar
With the glow of confidence
Nothing superficial
No manipulation
Whatever is
That is
'As it is' from inner and outer
With the spontaneity
Here and now,,,,,

पाताल : विजया

पाताल
+ + + + +
जो ना समझे
जग की चाल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...

मधुर वचन से
मन को घेरे,
उष्ण स्पर्श के
तन पर डेरे,
नाचे मानुष
नौ नौ ताल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...

थोथी सब की
बातें सुन के
पाप पुन्य की
चादर बुन के
भूल जाए जो
स्थिति काल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...
झूठी बडाई को
पाकर के जो
पुलाव् खयाली
खाकर के जो,
बन जाए
बौड़म वाचाल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...
सावधानी हटी
घटी दुर्घटना,
जाना दिल्ली
उतरे पटना,
हो जावे यूँ
हाल बेहाल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...

ख्वाब... : विजया

ख्वाब...
+ + + + +

जाग भी जाओ
जाना !
खोये रहोगे
ख़्वाब में
यूँ कब तक,
देखो ना
रह गयी है
तड़फती
दर्द के बिस्तर पर
बेहिसी..

अनकहे को सुन ले.... : विजया

अनकहे को सुन ले....
+ + + + + + +

कैसे कहूँ मेरा हमदम कितना करीब है
हर लम्हे मेरा साया वो ऐसा हबीब है.

हर राह और मोड़ पर वो साथ देनेवला
वो है मेरी ज़िन्दगी में ये मेरा नसीब है.

वो परिंदा है अर्श का मैं फर्श पर टिकी हूँ
अल्लाह की पनाह में क्या कोई गरीब है.

रूह में वही बसा है मेरा वुज़ूद भी वही है
दिलोजिस्म की यह दूरी कितनी अजीब है.

अनकहे को सुन ले पढ़ ले वोअनलिखे को
बिन कहे भी सब कह दे वो ऐसा अदीब है. 

मानव आत्ममुग्ध : विजया

मानव आत्ममुग्ध 
+ + + + +
अल्पतम
अम्ल
शांत हो या विक्षुब्ध
छिन्न विच्छिन्न हो
उष्ण दुग्ध
स्वल्प युक्ति
चिंतन अवरुद्ध
तत्गति प्राप्य
मानव
आत्ममुग्ध
बाह्य तप्त
अंतः दग्ध
निमिष जीवी
मानव
आत्ममुग्ध....

कुछ अस्फुट सा.. : विजया

कुछ अस्फुट सा..
+ + + + + +

(१)
दीपशिखा
प्रज्वल्लित रहती
बाती लेकिन
जल जाती है,
भक्ति उत्सव में
ना जाने
कितनीबातें
टल जाती है...
(२)
हर रजनी को
दीप जला
श्रेय लिया
सब करने का,
सोचों कितनों को
इस क्रम में
दुर्भाग्य मिला है
मरने का..
(३)
एक अंगी
चिंतन को लेकर
पाँव बढ़ाये
जाते हो,
जीवन के इस
सहज सफ़र में
अकेला स्वयं को
पाते हो...
(४)
भिन्न मिले यदि
कहीं तुम्हे तो
फरियाते
गरियाते हो,
अपने से
ऊँचा पाकर तुम
शावक सम
मिमियाते हो..
(५)
दंभ जिसे हो
ज्ञान का अपना
सब से बड़ा
अज्ञानी है,
गूगल समय में
सुन लो स्पष्ट
स्मृतियाँ सब
बेमानी है...
(६)
शब्द जाल
बुन बुन कर तुम
उलझाने को ही
उत्सुक हो,
रूप बदल
स्वरुप बदल
लाभ क्षणिक के
इच्छुक हो..
(७)
अर्थ पहुँच ना
पाए जब तक
शब्द
प्रलाप कहलाते हैं,
स्वसंवाद
घटित हो भ्रमवश
निज को ही
बहलाते हैं..
(८)
जीवन की
इस आप धापी में
किसको फुर्सत है
रोने की,
प्रतिस्पर्द्धा के
इस युग में
किसकी कुव्वत
कुछ खोने की..

कुछ दोहे : विजया

कुछ दोहे
+ + + + + + + + +

-१-
अक्षर मिल कर शब्द बने अर्थ घटित अनेक !
अहम् जो आया मध्य में दूषित भया प्रत्येक !!
-२-
आँख फोड़ अँधा हुआ उसे बचाए कौन !
बिना ज्ञान ज्ञानी भया उसे बुझाये कौन !!
-३-
अंतिम रेखा खींच कर जड़ कर लिए विचार !
चिंतन धारा रुक गयी निकले कैसे सार !!
-४-
बनूँ नियंता औरन का मैं ना करूँ बर्दाश्त !
पीछे पीछे सब चलो मैं न किसी के साथ !!
-५-
परिभाषा घड ली तुम ने करने खुद को सिद्ध
मार झपट्टा छीन रहे ज्यों मरघट के गिद्ध !!
-६-
सखियाँ यूँ चर्चा करे कान्हा चतुर सुजान !
सभी संग नर्तन करे धर हिय सबके प्रान !!

कांगसियो मोलावे.. : विजया

कांगसियो मोलावे..
('भंवर' शब्द का प्रयोग हुआ है-राजस्थानी में यह संबोधन पति/प्रेमी/लाडले/राजपूत युवा आदि के लिए होता है.वही आशय इस कविता में लिया है ...whirlpool से नहीं)
* * * * * * * * 

म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे
ढलती उमर में बादीलो
सज बाजारां जावे ...
(मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है. ढलती हुई उम्र में भी सज धज के बाहर निकलता है.
जग री रीत निभावतां
गयी जवानी बीत
जाने कठे चली गयी
बा बाळपण री प्रीत.
(संसार की रीत नीत निबाहते यौवन के दिन बीत गए, ना जाने बचपन की प्रीत कहाँ गुम हो गयी.)
फेसबुक ने खोलखोल
सुंदरियां निरखावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(फेसबुक को खोल खोल कर सुंदरियों को निरखता है, मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
जद स्यूं आयो स्मार्टफोन
बातां रो होग्यो टोटो
चाय पीन्वता जीमता
चिपक्योडो रहवे ओ खोटो.
(जब से स्मार्ट फोन आया है आपसी बात दुर्लभ हो गयी है, चाय पीते खाते हुए यह मुआ फोन जैसे चिपका हुआ रहता है.)
गुड मोर्निंग गुड नाईट
मेसेज
जोरां गुड़कावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(गुड मोर्निंग गुड नाईट के मेसेज, whatsapp या फेसबुक पर,जोरों से देता रहता है, मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
बुण भावां ने बो सबदां मां
कबिता फूटरी कह देवे
हिन्वडे ने ज्यूँ छु ज्यावे
वो बात्यां इसड़ी रख देवे.
(भावों को शब्दों में बुन कर बहुत मनोरम कवितायें कहता है, ह्रदय को स्पर्श के दे ऐसी ऐसी बातें उनमें रख देता है.)
छोरी छापरी बुढलड़ल्यां
हरखे और बिं पर लुळ ज्यावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(चाहे जवान लडकियां हो या बुढियायें पढ़ पढ़ कर सुन सुन कर हर्षित होती है और उसकी तरफ झुक जाती है. मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
भोलो शम्भू प्रेम भरयो
जग-बुद्धि लगाया ताला
जोर ठ्ग्यो निचोड़ लियो
अपणा काईं पर हाला.
(इस भोले शम्भू के ह्रदय में प्रेम भरा रहता है..लेकिन दुनियावी बुद्धि पर इसके ताला पड़ा रहता है, इसको अपनों और परायों सभी ने ठगा और निचौड़ा है.)
चिड्क्ल्यां चुग फुर्र हुगी
अब बैठ्यो पछतावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(जब चिड़ियाँ खेत चुग गयी तो यह बैठ कर पछताता है.मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
कलम अड़े हर भूख लगे
जे कहणा होवे भेद
काज सरयां दुःख बिसरया
बेरी हुग्या बेद.
(जब इसकी कलम रुक जाती है किसी शब्द या भाव को सटीक लिखने में, या इसे जब भूख लगती है, या कोई खास बात शेयर करनी होती है तो मुझे पुकारता है...लेकिन उसके बाद राजस्थानी की यह कहावत कि काम पूरा हुआ और पीड़ा मिट गयी तो वैद्यराज हमारे दुश्मन smile emoticon )
जो भी होज्या साजनडो
रग रग में बस ज्यावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(जो भी हो मेरा यह साजन मेरी रग रग में व्याप्त है.मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)

मर्म समझ कर मैं चली.. : विजया


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मर्म समझ कर मैं चली भ्रम हो गयो संग
स्वान भी पीछे हो लिए भंगित अंग उपंग !! १ !!

आखर की माया रची बहुत बनाए शब्द
चोट पड़ी जब जोर से हो गए हैं निस्तब्ध !!२!!

ज्ञान जो उपजे ह्रदय में बाकी सब बकवास
धूम-बदरिया से करे ज्यों बारिश की आस !!३!!

रग रग मेरी दुखती छुअन जगाये पीर
मीठे मीठे बेन भी देत करेजवा चीर !!४!!

भेख बनाया मोकरा ज्यों नाटक में भांड
टेढो मेड़ो डोल रह्यो ज्यूँ गलियन को सांड !!५!!

दर्द मेरो ही दर्द है पर की पीर पाखण्ड
मेरो सब कुछ सांच है औरन करे अफंड !! ६!!

कारज कारन जोड़ तो इसी जन्म की बात
जैसा कर वैसा ही भर चले साथ ही साथ !!७!!

हम हम हैं हम तुम नहीं... : विजया


+ + + + + 

आँख मेरी पुरनम नहीं
मैं खुश हूँ कोई गम नहीं.

मिलनी है मंजिल मुझको
मेरी राह में पेचोखम नहीं.

सुकून मेरा छीन ले मुझसे
किसी शै में ऐसा दम नहीं.

है पाकीज़गी मौज़ू दिल का
आबे गंगा या जमज़म नही.

रहता है खुदा दिलों में ही
घर उसका दैरो हरम नहीं.

घबराया क्यूँ आईने से तू
ज़िन्दगानी कोई रम नहीं.

कर ना बर्बाद रोशनाई तू
यहाँ जाहिलों का ज़म नहीं.

लिखने को लिख दे कुछ भी
दिल ना छुए वो कलम नहीं.

गवारा नहीं बनावट हमको
हम हम हैं हम तुम नहीं.

अगला शब्द : जाहिल
__________________________________
मायने :
पुरनम=आंसू भरी, पेचोखम=मोड़ और घुमाव,मौजू=विषय,
आब=पानी, जमजम=मक्का का पवित्र कुंआ,
दैरो हरम=मंदिर मस्जिद, रम=डर के मारे भागना,
रोशनाई=स्याही, ज़म=मीटिंग/गेदरिंग जैसे अपना यह ग्रुप
गवारा=रुचकर