Sunday, 14 February 2016

अनकहे को सुन ले.... : विजया

अनकहे को सुन ले....
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कैसे कहूँ मेरा हमदम कितना करीब है
हर लम्हे मेरा साया वो ऐसा हबीब है.

हर राह और मोड़ पर वो साथ देनेवला
वो है मेरी ज़िन्दगी में ये मेरा नसीब है.

वो परिंदा है अर्श का मैं फर्श पर टिकी हूँ
अल्लाह की पनाह में क्या कोई गरीब है.

रूह में वही बसा है मेरा वुज़ूद भी वही है
दिलोजिस्म की यह दूरी कितनी अजीब है.

अनकहे को सुन ले पढ़ ले वोअनलिखे को
बिन कहे भी सब कह दे वो ऐसा अदीब है. 

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