Sunday 14 February 2016

कांगसियो मोलावे.. : विजया

कांगसियो मोलावे..
('भंवर' शब्द का प्रयोग हुआ है-राजस्थानी में यह संबोधन पति/प्रेमी/लाडले/राजपूत युवा आदि के लिए होता है.वही आशय इस कविता में लिया है ...whirlpool से नहीं)
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म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे
ढलती उमर में बादीलो
सज बाजारां जावे ...
(मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है. ढलती हुई उम्र में भी सज धज के बाहर निकलता है.
जग री रीत निभावतां
गयी जवानी बीत
जाने कठे चली गयी
बा बाळपण री प्रीत.
(संसार की रीत नीत निबाहते यौवन के दिन बीत गए, ना जाने बचपन की प्रीत कहाँ गुम हो गयी.)
फेसबुक ने खोलखोल
सुंदरियां निरखावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(फेसबुक को खोल खोल कर सुंदरियों को निरखता है, मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
जद स्यूं आयो स्मार्टफोन
बातां रो होग्यो टोटो
चाय पीन्वता जीमता
चिपक्योडो रहवे ओ खोटो.
(जब से स्मार्ट फोन आया है आपसी बात दुर्लभ हो गयी है, चाय पीते खाते हुए यह मुआ फोन जैसे चिपका हुआ रहता है.)
गुड मोर्निंग गुड नाईट
मेसेज
जोरां गुड़कावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(गुड मोर्निंग गुड नाईट के मेसेज, whatsapp या फेसबुक पर,जोरों से देता रहता है, मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
बुण भावां ने बो सबदां मां
कबिता फूटरी कह देवे
हिन्वडे ने ज्यूँ छु ज्यावे
वो बात्यां इसड़ी रख देवे.
(भावों को शब्दों में बुन कर बहुत मनोरम कवितायें कहता है, ह्रदय को स्पर्श के दे ऐसी ऐसी बातें उनमें रख देता है.)
छोरी छापरी बुढलड़ल्यां
हरखे और बिं पर लुळ ज्यावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(चाहे जवान लडकियां हो या बुढियायें पढ़ पढ़ कर सुन सुन कर हर्षित होती है और उसकी तरफ झुक जाती है. मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
भोलो शम्भू प्रेम भरयो
जग-बुद्धि लगाया ताला
जोर ठ्ग्यो निचोड़ लियो
अपणा काईं पर हाला.
(इस भोले शम्भू के ह्रदय में प्रेम भरा रहता है..लेकिन दुनियावी बुद्धि पर इसके ताला पड़ा रहता है, इसको अपनों और परायों सभी ने ठगा और निचौड़ा है.)
चिड्क्ल्यां चुग फुर्र हुगी
अब बैठ्यो पछतावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(जब चिड़ियाँ खेत चुग गयी तो यह बैठ कर पछताता है.मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
कलम अड़े हर भूख लगे
जे कहणा होवे भेद
काज सरयां दुःख बिसरया
बेरी हुग्या बेद.
(जब इसकी कलम रुक जाती है किसी शब्द या भाव को सटीक लिखने में, या इसे जब भूख लगती है, या कोई खास बात शेयर करनी होती है तो मुझे पुकारता है...लेकिन उसके बाद राजस्थानी की यह कहावत कि काम पूरा हुआ और पीड़ा मिट गयी तो वैद्यराज हमारे दुश्मन smile emoticon )
जो भी होज्या साजनडो
रग रग में बस ज्यावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(जो भी हो मेरा यह साजन मेरी रग रग में व्याप्त है.मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)

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