जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,
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ऊष्मा को मैं था तरस गया
जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,,,
मैं तपता एक मरु थल था
झुलसा तन, मन विकल था
रुत बदली, बदला मौसम
आयेे थे बन सुखद फुहार तुम,,,,,,,
रजनी दिवस घटी वो पल
थिरता थोड़ी ,लंबी हलचल
समय के उड़ने का शिकवा
आये थे बन सुखद बयार तुम,,,,,,
बेचैन चाह बनी राहत
पल छिन थी तेरी आहट
बंद दर पर दे दे कर दस्तक
आये थे बन सुर झंकार तुम,,,,,,
शीतकम्पित हृदय हो रहा
अंतस का सम्बल खो रहा
गिरे परदे छंटे कुहासा यह
हो प्रकट सूरज साकार तुम ..
ऊष्मा को मैं था तरस गया
जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,
शल्क=परत, पपड़ी
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ऊष्मा को मैं था तरस गया
जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,,,
मैं तपता एक मरु थल था
झुलसा तन, मन विकल था
रुत बदली, बदला मौसम
आयेे थे बन सुखद फुहार तुम,,,,,,,
रजनी दिवस घटी वो पल
थिरता थोड़ी ,लंबी हलचल
समय के उड़ने का शिकवा
आये थे बन सुखद बयार तुम,,,,,,
बेचैन चाह बनी राहत
पल छिन थी तेरी आहट
बंद दर पर दे दे कर दस्तक
आये थे बन सुर झंकार तुम,,,,,,
शीतकम्पित हृदय हो रहा
अंतस का सम्बल खो रहा
गिरे परदे छंटे कुहासा यह
हो प्रकट सूरज साकार तुम ..
ऊष्मा को मैं था तरस गया
जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,
शल्क=परत, पपड़ी
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