vinod's feels and words
Sunday, 14 February 2016
ख्वाब... : विजया
ख्वाब...
+ + + + +
जाग भी जाओ
जाना !
खोये रहोगे
ख़्वाब में
यूँ कब तक,
देखो ना
रह गयी है
तड़फती
दर्द के बिस्तर पर
बेहिसी..
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