Thursday 26 March 2020

मुझको ही गलना होगा,,,,



कर लूँगी में सिंगार  तुम्हारे तसव्वुर से
तेरा ख़याल ही अब मेरा गहना होगा,,,,

साथ अपना गर गवारा नहीं ज़माने को
छुप के अब दिल में ही अब रहना होगा,,,

वस्ल ओ हिज्र तो ख़याल है ज़ेहनी
दिल को अब इश्क़ में जलना होगा,,,

तू पत्थर है हिमाला कहलाता है तो क्या
मैं तो हूँ बर्फ़ मुझको ही गलना होगा,,,


दूहे...कोरोना टाइम



देह से सदा नाता रहा आज बिचारा देहतर
रूह की बातें होती रही जिस्म रहे थे बेहतर.

अक़्ल दिलायी विषाणु ने, विष्णु दिलाए याद
ब्रह्मा को स्मरण किया सुना फिर से शिव का नाद.

कुदरत से पंगा लिया और मन पनपाया बैर
बकरे की माँ तू ही बता कब तक मनाए खैर .


कगार पर : विजया


कगार पर...
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खड़े हैं इस पल हम
ज़िंदगी के कगार पर
मौत के भी कगार पर...

दिया है माहौल और वक़्त
इस क़हर ने हमको
बिना किसी आग्रह के
ख़ुद में झांकने के लिए
बहुत कुछ आसपास का
मापने जोखने के लिए
जानने समझने के लिए
औरों को और खुद को भी
 'जस का तस' देखने के लिए...

कर दें माफ़ हम ख़ुद को
ख़ुद को पहुँचाई चोटों के लिए
दबा कर दिल को
जो कुछ जीया हमने उसके लिए
किसी के भी लिए भी
कुछ भी नकारात्मक सोचा उसके लिए...

भूल पायें हम
किसी ने था दिल हमारा दुखाया
समझ और नासमझी में
हम को था सताया
भरमाया फुसलाया और बहलाया
फ़ायदा हमारी कोमलता का उठाया
समझ कर कमजोरी हमारी शालीनता को
अपना हर स्वार्थ सधाया
गलत समझा था हमको
हमारे सही इरादों पर
सवाल था उठाया...

चले गए तो
ना होगा कोई भी बौझा हम पर
बने रहे तो
होगा मुमकिन
बेहतर समझ के संग जीना हम पर...

Thursday 19 March 2020

शुक्रिया कोरोना !


शुक्रिया कोरोना !
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शुक्रिया कोरोना !
शुक्रिया तुम्हारा तहे दिल से...
जगाने के लिए 
देकर आवाज़ इंसानियत को 
सो गयी है जो
दिन में ही लगातार ख़्वाब देखते 
खो गयी है जो 
हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में,,,

शुक्रिया कोरोना !
खुलासा करने के लिए 
हमारी कमज़ोरियों का 
बताकर हम को 
के कितने ग़ैर महफ़ूज़ हैं हम 
तुम्हारी पोशीदा ताक़त के सामने,,,

शुक्रिया कोरोना !
हमें समझा देने के लिए 
के जुड़ी हुई है कायनात सारी नफ़स के रिश्ते से 
के बराबर है हम सारे 
तहत तुम्हारे आईनो क़ानून के 
दरकिनार उम्र, जिंन्स, नस्ल और मज़हब से,,,

शुक्रिया कोरोना !
याद कराने के लिए 
भूला दिए गए तिब्बी सूरमाओं को 
लड़ रहे जो जंग डट कर 
खड़े होकर अगली कतार में
हटकर हर दुनियावी ख़ुदगर्ज़ी से 
डालते हुए अपनी जान जोखिम में,,,

शुक्रिया कोरोना !
हमें बेशक़ीमती सबक़ सीखा देने के लिए 
के कर सकते हैं नाकामयाब तुम को 
ख़ुद पर क़ाबू करके 
के हरा सकते हैं हम तुम को 
एक जुट खड़े होकर 
मोहब्बत,तल्तफ, रहम और इंसानियत के 
परचम तले,,,

(ग़ैर महफ़ूज़=असुरक्षित, जिन्स=लिंग, नस्ल=race, मज़हब=धर्म सम्प्रदाय, तिब्बी=मेडिकल, सूरमाओं योद्धाओं, जंग=युद्ध, तल्तफ=करुणा, रहम=दया, परचम=झंडा)

Friday 13 March 2020

Love is Just Love,,,,




Love is Just Love,,,
############
Love is just love,
Not this and that
Only strength
Not weakness
Neither opportunity
Nor the Threat !

Love of passion
Love of emotion
Love of body
Love of soul
Love of heart
Love of head
Love of convenience
Love of conviction
Love of commitment
Love of Time-Pass
Love of class or mass
Love of need
Love of Greed
And so on....
Many a forms and colors of Love
We present and propagate
For describing our deeds
For joining dots and beads
For catering to our taste buds
For getting  boosts and thuds,,,

Wandering we are aimless
Searching for
What we know exist not,
Moving confused without any objective
Pursuing some hollow purposes, served not,
Camouflaging and dyeing the lust
By talking repetitively of fake love,
Living Loveless
and
Dying Loveless too !

(I read a sonnet by Pablo Neruda which I have already shared in a seperate post in the forum.This 'Neruda'  became inspiration for writing this sonnet)




Sharing a sonnet by Pablo Neruda :
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Love,,
####
I don't love you as if you were the salt-rose, topaz
or arrow of carnations that propagate fire:
I love you as certain dark things are loved,
secretly, between the shadow and the soul.
I love you as the plant that doesn't bloom and carries
hidden within itself the light of those flowers,
and thanks to your love, darkly in my body
lives the dense fragrance that rises from the earth.

I love you without knowing how, or when, or from where,
I love you simply, without problems or pride:
I love you in this way because I don't know any other way of loving

but this, in which there is no I or you,
so intimate that your hand upon my chest is my hand,
so intimate that when I fall asleep it is your eyes that close.

Tuesday 10 March 2020

खेलो ना मौ संग होली : विजया




खेलो ना मौ संग होरी !
++++++++++++
प्रीतम !
सदियों से मनाए हैं तुमने
रंगोत्सव संग मेरे
मैं ही तो रही हूँ तुम्हारी
राधा, लैला, हीर,
सीरी, मरवण, रबिया,
आज हूँ मैं सम्मुख तिहारे
लिए हुए हृदय में
तुम्हारे ही रंग सारे
खेलो ना मौ संग होरी !

तुम बिन कहाँ है
बोल मेरे गीतों के,
तुम्हीं तो हो
चंचल शीतल सुगंधित
रंग मेरे जीवन के
क्यों रहते हो इतने उतावले तुम
कितना कठिन होता है
तुम्हें अभिशांत कर रोकना...
बना दो ना मेरे सपनों को सुरंगा
खेलो ना मौ संग होरी !

कोमल उदार और स्नेहिल
होते हो तुम सदा मेरे लिए
बरसाते हो छुप छुप कर
रंग फुहारें मुझ पर
पुकारती रहती हूँ मैं निरंतर
ओ प्रीतम !
ओ मेरे साजन !
आओ ना मेरे रंगरसिया
लगा दो ना
कुछ और रंग अपने प्रेम के मुझ पर
खेलो ना मौ संग होरी !

सागर का हर किनारा
वन का हर बूटा
आसमान का हर पखेरू
सभी पर तो छाया है रंग तुम्हारा
ले पा रही हूँ तुम्हारी ख़ुशबू सब जगह
देख नहीं पा रही हूँ क्योंकर
मूल स्वरूप तुम्हारा,
चाहती हूँ मैं पिघल जाना
तेरे रंगों में
चाहती हूँ रंग जाना
तेरे ही रंगों में
खेलो ना मौ संग होरी !

रातों को तुम्हारी मद्दम आवाज़ें
रंग देती है नील मेरे हृदय को
दिन में तुम्हारी उपस्थिति
रंग देती है लाल मेरी आत्मा को
तुम्हारी लुकाछिपी वाली हँसी
गूंजा देती है संगीत चहुँ ओर,
आओ मनाएँ यह रंगोत्सव संग संग
खो क्यों गए हो
छल की इस झूठी भीड़ में
आ जाओ ना फिर से सम्मुख मेरे
लगा दो ना
कुछ और रंग अपने प्रेम के मुझ पर
खेलो ना मौ संग होरी !

देखे थे मैं ने रंग...



देखे थे मैं ने रंग,,,,
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जब मैं ने
बना ली थी अपनी आँखें
खोला था उनको होले से,
देखा था मैंने
रंगों को पिघलते
साँचों में ढलते
दूसरे रंगों के क़रीब आते
एक दूजे से चिपकते
चिपटते सटते लिपटते ,,,

देखे थे मैं ने रंग जो
त्वचा में सोख जाते हैं
जैसे त्वचा हो कोई बेढ़ब सा काठ
कुछ वैसे रंग भी जो
छलक कर फिसल कर
बिखर जाते हैं
त्वचा हो जैसे कोई घुटा हुआ शीशा,,,

देखे थे मैं ने रंग जो
जीवन की तरह जम से जाते हैं
मौत में मिल जाते हैं
एकजुट हो जाते हैं
जंग खा जाते हैं
उबल जाते हैं,,,

देखे थे मैं ने रंग जो
नहीं पढ़ने देते नक़्शों को,
उमड़ घुमड़ आते हैं,
उथल जाते हैं
अतिक्रमण से होकर,
अति प्रेम दर्शाते हैं
मनोमस्तिष्क की सीमाओं से परे जाकर,,,

देखे थे मैं ने रंग जो
रेत में भी ख़ूब खेल लेते हैं
एक साथ पी लेते हैं
पानी भी, कोकटेल भी...खून भी,
बोर हो जाते हैं
सेक्स हो जाते हैं
धरती चीर कर उभर आते हैं
लुक छुप कर छू लेने के बाद
ना जाने कहाँ ग़ायब हो जाते हैं,,,

देख लिए हैं मैं ने रंग जो
हर बार हार जाते हैं
हर हाल में हताश रहते हैं
हवा के, सहारे के,
आसरे के, पनाह के, अनजाने उद्धारक के
इंतज़ार में होते हैं,,,

देखे थे मैं ने रंग जो
अजीब से ठंडाते हुए
जैसे विज्ञान में
कार्य और कारण के रिश्ते,
फ़र फ़र फहराते हुए
जैसे कोई परचम आकाश में,
लगातार ऊँचाईयों पर चढ़ते हुए
जैसे हो पर्वतारोही कोई,
सब को परास्त करते हुए
जैसे हो योद्धा कोई,
छूट कर आगे बढते हुए
जैसे प्यार से ज़बरन पकड़ा बच्चा हो कोई
क़दम क़दम बढ़ाते हुए
जैसे परेड में केडेट कोई,,,

देखे हैं मैं ने  रंग
वस्तुओं के बीच फँसे चिपके
वो ही जो भर देते हैं
ख़ाली जगहों को
नज़र और नज़रियों को
चाय की ख़ाली प्यालियों को,,,

देखा है मैं ने
रंगों को सफ़ेद झूठ बोलते हुए,
सफ़ेद साफ़ और पाक नहीं
मगर बहुत ख़ुश दिखते हैं वे अपने लिए,
दुखों द्वन्दों दुविधाओं पर
आवरण बने हैं वे रंग
ख़ुद को ही धोखा देते
कहकहे लगाते रंग,,,

देखा है मैं ने
बेगाने थे रंग
एहसासों के लिए
महसूसा है फिर
कुछ भी हों चाहे
नहीं है रंग यहाँ कोई भी
हम जैसों के लिए,,,