Tuesday 27 September 2016

अवतार : शब्द का या अर्थ का


अवतार : शब्द का या अर्थ का
(अवतार सीरीज-२)
+ + + + + +
हास
परिहास
उपहास
अट्टाहास,
हास के
अवतार,
किन्तु
उपसर्गों ने
बदल दिए है
अर्थ हर रूप में,
नहीं जानती मैं
होते हैं
शब्दों के अर्थ या
अर्थों को रूप देने
हुआ करते हैं
शब्दों के अवतार ?
हो जाते हैं
किन्तु मनस्थितियां से
दिग्भ्रम और मतिभ्रम के अवतार,
मृदुल हास या परिहास
लगने लगता है उपहास,
देने लगती है
मैत्रीमय कोमल स्मिति
तीव्र व्यंग का आभास,
कह सकता है
मौन भी अनकहा
बता देती है
नयनों की उदासी
सब कुछ था जो सहा,
देने को सन्देश हर्ष का
आँख से आंसू बहा
पीर का नीर बन वही
दृग से झरता रहा,
अनुभूतियों के ये अवतार
कितने विरोधावासी है
अपने ही देश में रहते
बन कर ये प्रवासी है.

Monday 26 September 2016

प्राक्कथन अवतार सीरीज का : विजया



प्राक्कथन अवतार सीरीज का
★★★★★★★★★

जब यहाँ सब अपने हैं तो साफ साफ बता देने में क्या संकोच. ये 'सरजी' याने हमारे 'साहेब' हैं ना बड़े लाज़वाब, दिलदार, समझदार, वेल रेड, चिंतनशील मगर बड़े ही अजीब इंसान है.


तरह तरह के उपाय आजमाने के बाद भी मैं घर में बहुत से अजीबो गरीब नमूनों की आमद को एकदम बंद कर पाने में नाकामयाब रही हूँ, शुक्रिया सोसल मीडिया का कुछ भीड़ वहां डाइवर्ट हो गयी, फिर भी..

हाँ तो हमारे घर इन बुलाये बिन बुलाये मेहमानों में शुमार प्राणी हैं : महाज्ञानी टाइप्स दंभी और हाइली इम्प्रेक्टिकल प्रोफेसर्स जो भूल में या जानकर दूसरों की प्लेट से भी नाश्ता खा जाते हैं, रिपीट परफॉर्मेंस भी दे देते है ना सिर्फ चाय-काफी-शरबत-शिकंजी के लिए बल्कि गीले सूखे/ठन्डे गरम नाश्ते के सन्दर्भ में भी☺ युनिफॉर्मड(धोती अंगरखा) और टैटू (लंबा/आड़ा/यु-आई शेप तिलक) धारी पंडित जो दुनियां के परहेज़ की बात करते हैं और सब कुछ खा पी जाते है, डिटेल्स धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती है, ओशो, सद्गुरु, डबल श्री, के चेले/चेलियाँ जो खुद को अपने अपने गुरुओं के ज़िंदा भूत समझ कर, उनके अंदाज़ में बातें करते हैं, सिर पर काला टीका वाले दाढ़ी बढाए मूंछ मुंडे मुल्ला मौलवी जो ना जाने क्यों छोटी लेंथ का पाजामा पहनते हैं, ऐसे प्रोग्रेसिव जैन/सनातनी/आर्यसमाजी/क्रिस्तान/मुसलमान बन्दे जिनका प्रगतिवादी और उदारवादी दृष्टिकोण हमारे अपार्टमेंट के दरवाजे में घुसते समय शुरू होता है और निकलने के साथ ख़त्म हो जाता है- हाँ खाने पीने के साथ परवान चढ़ता है, कुछ चमचे/चमची टाइप्स नर नारी जो साहेब के ऐसे गुणों का बखान करते नहीं थकते जो मैं अपने कई दशकों के साथ के बावज़ूद भी नहीं जान पायी, अभुगतनीय क़र्ज़ लेने वाले ज़रूरतमंद जो हम से अच्छी गाड़ियों में आते हैं, मेडिकल मसलों पर सलाह करने वाली पब्लिक , बच्चों की पढ़ाई और कैरियर काउन्सलिंग के लिए भी मुफ़्त सलहार्थी, बाप बेटे- भाई भाई - मोटियार लुगाई के झगड़ों के पंचायतोत्सुक इत्यादि इत्यादि. हालांकि जैसा कि मैंने पहले भी कहा, जब से मोबाइल/व्हाट्सऐप/ वीचैट/फेसबुक का प्रचलन बढ़ा है ऐसी ही कुछ ट्रैफिक वहां भी डाइवर्ट हो गयी है. अरे भूल ही गयी, इन सब के बीच रेगिस्तान में निखलिस्तान की तरह कुछ अच्छे लोग भी कभी कभी दिखाई देते हैं लेकिन बहुत कम. मज़े की बात, हमारे साहेबजी सब को बड़े प्यार से बड़े धैर्य से झेलते हैं☺सब कुछ जानते समझते हुए भी.....ज्ञानी अवधानी जो हैं.....उनकी खुद की बोली मनोविज्ञान की तकनीकी भाषा में हमारे साहबजी इम्प्रेसनेबल है.

अभी पिछले दिनों की बात है, एक सज्जन हमारे यहाँ आये और अवतारों पर बड़ी लम्बी चर्चा हमारे ड्राइंग रूम में हुई....चाय के कई रूप जैसे दूधवाली, पतली, तुलसी ऑर्गेनिक, ग्रीन टी....काली भूरी कॉफी....टी केक....बिस्किट...सन्देश समोसा....बर्फी कलाकंद पकौड़े.....चिप्स आदि अवतार उनकी गिनती में हालांकि नहीं थे,मगर बदस्तुर अवतरित हुए और विलीन भी हो गए☺ खैर उस दिन गीता के 'यदा यदा' के साथ ये पत्नीभक्त तुलसीदास जी की यह चौपाई भी गूंजी थी :

जब जब होहिं धर्म की हानि।
बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।
तब तब प्रभु धरि मनुज शरीरा।
हरहिं शोक मम सज्जन पीरा।।

बुद्ध के रीइनकार्नेशन, ईसा के रीसरेक्शन, साईँ बाबा,राधा माँ, कृपालु महाराज और ना जाने क्या क्या शब्द बम फूटे थे उस दिन. ऐसे मैं मुझे भी कई अवतार दिखे, ट्विटर, फेसबुक, मीडिया, राजनीती इत्यादि में. दिल कर रहा है मैं भी एक सीरीज लिख दूँ और नाम दूँ 'अवतार सीरीज'...…...क्या ख़याल है आप सब का ?

सखी वो क्यों लेगा अवतार.. : विजया



सखी वो क्यों लेगा अवतार..
(अवतार सीरीज- १)
+ + + + + + +
धर्म ध्वजायें गगन चूम रही
संतों की नित धूम मच रही
धर्ममय भया सकल संसार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.


मंदिर भव्य नित्य बन रहे
मस्ज़िद के मीनार तन रहे
गिरजों की गुंजरित घंटिया
गुरूद्वारों में सबद गुंजार,
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

चंदे दान के दौर गरम है
धन धर्म एक ये कहाँ भरम है
धन बरसे रौं रौं मन हरसे
भये हरित; ज्यों बसंत बहार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

श्रवण कांवड़ अत्यंत पुरानी
मात पिता की नयी कहानी
आईटेनरी है वर्ल्ड टूर की
ना रही तीरथों की दरकार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

रावण राम ढूंढते यारों
कहते प्रभुजी हम कूँ मारो
खीसा ढीला करो रघुवंशी
ना मारो तीर अब दो या चार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

रासलीलायें हर रजनी को
राधे पुकारे हर सजनी को
गोपियन की लीलाएं न्यारी
डिस्को होवत जमना पार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

सज्जन सब,ये जग जानत है
पहुंचे संसद सब मानत है
मंचों पर सम्मान है इनका
क्या तू नहीं जाने हे करतार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

कैस्सेट सीडी भएल पुराने
आईपॉड पर भजन सुहाने
घर घर गूंजे नाम प्रभुजी का
सुने क्या तू हे पालनहार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

भागवत कथाये अति आयोजित
कीर्तन जागरण नित प्रायोजित
मिल्लत तक़रीर के नए मौसम है
बोले तात-भ्रात-भगिनी बारम्बार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

योग ध्यान शिविर बढे है
चैनल लाइव चलन चढ़े है
चोगा-लंगोट-जटा और दाढ़ी
ज्योतिष तंत्र मन्त्र व्यापार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

शान्ति शान्ति सर्वत्र समायी
हम पंचशील के हैं अनुयायी
विश्व गुरु भारत फिर स्थापित
माने सब आर्यावर्त मनुहार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

अभ्युत्थान भक्तों का देखो
जितनी लंबी चौड़ी फेंको
दुष्ट दुर्बल चुनाव है हारे
भयी अपनी ही सरकार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

नहीं प्रभु है धर्मस्य ग्लानि
बढे नहीं असुर अज्ञानी
क्यों तुम व्यर्थ में कष्ट उठाओ
सैज कूँ बिलसो नाग पसार
सखी वो क्यों लेगा अवतार.

राजस्थानी दूहा : विजया


+ + + + + + +
जस अपजस रे खेल में जीवण हुयो बदीत,
खाली हाथ चिता चढ्या नहीं हार नहीं जीत.

होळा चालो साजणा ह'र चालो पंथ बुहार,
जे गड ज्यासी कांकरो हु ज्यासी निसतार.

मिनकी आई चाणचुकी उन्दर लगायी दौड़
मार झप्पटो धर लियो जोड़ लग्यो ना तोड़.

बाप कमाई बिलस रिया टाबर बण पळगोड
मोज मलीदा कर रिया जियां ऐ स्यामी मोड.

अबड़ो गेलो प्रेम रो मिलजुल चाल्या साथ
मोड़ चोराहा है घणा छोड ना दीज्यो हाथ.

आलीजा जीव जळावो सा.... : विजया


+ + + + + + +
म्हारे जीवड़े म्हांली पीड़
सजनसा निजर घुमाओ सा,
म्हारे हिये उठै हब्बीड़
भंवरसा ध्यान दिरावो सा ।। स्थायी ।।

जब थे देखो मूळक ने
सै कळियां ज्यूँ खिल ज्याय
मीठा बचना झूमज्या
वे थाँस्यूं हिलमिल ज्याय,
इयां क्यूँ जीव जळावो सा ।। म्हारे ।।

पंछी मांड्यो पिंजरों सा
भरम रोट लटकाय
फंसग्यो माणस सान्तरो सा
ज्ञान घणो बघराय
घणा ना पाठ पढ़ावो सा ।। म्हारे ।।

नशो धतूरो आकरो सा
हर भाषा बुलवाय
चेप शहद रो मोकळो सा
सबदां स्यूं चिपकाय
इब सिरजण रीत निभावो सा ।। म्हारे।।

बिजळयां चिमके जोर की सा
घन बरस् घिणघोर
सोग (शोक) मिट्यो घस कलम ने सा
जोर मचावे शोर
थे सम्भळो, लेर् न जावो सा ।। म्हारे ।।

ओसो मोसो बोलियो सा
बात बात री तोड़
कूद फांद कर पड़ गया सा
मिटग्या सगळा झोड़
ध्यान निज मांय धरावो सा ।।म्हारे ।।

रामा थांरै बाग़ में सा
लामी बधी खिजूर
ल्याळ पड़न्ता नहीं समे सा
आदत स्यूं मज़बूर
जी टाण्डो बेग लदावो सा ।।म्हारे ।।

धुंध का आभास है....: विजया


+ + + + + + +
धुंध का आभास है
और दृष्टि का प्रयास है
देख पायें यदि उसे
जो घटता अनायास है.

कार्य कारण के सम्बन्ध
क्या हो जाते सदैव है
मिलना और बिछुड़ जाना
कोई गणित है या दैव है,
सहज कहते हैं किन्तु
जीना तो सप्रयास है
देख पायें यदि उसे
जो घटता अनायास है.

मनुज की प्रतिज्ञाएँ
कहाँ पर्यन्त फलित है
चिंतन मनन ठोसता
स्वतः ही गलित है,
नहीं कुछ सुनिश्चित
स्फुट सा कयास है
देख पायें यदि उसे
जो घटता अनायास है.

प्रदर्शन का आकर्षण
अति गहन प्रभाव है
अवश की मीमांसा में
विवेक का अभाव है,
शूल की चुभन प्रिय
या पुष्प की सुवास है
देख पायें यदि उसे
जो घटता अनायास है.

जानकर अनजान बन
जीना अब स्वीकार है
कौन जाने कहाँ कितने
रिश्तों के प्रकार है
नदी के प्रवाह मध्य
द्वीप पर निवास है
धुंध का आभास है
और दृष्टि का प्रयास है.

इंतज़ार की लज़्ज़त क्या कहिये.....


# # # ## ## # #
पलकों से बुहारे काँटों को
ऐसी हो खिदमत क्या कहिये.

चाक है जेब ओ दिल दरिया
वल्लाह ये ग़ुरबत क्या कहिये.

आकाश से गिर खजूरांअटके
हाय री किस्मत क्या कहिये.

दिल से खुशबाश ,महबूब हँसे
ऐसी कोई जन्नत क्या कहिये.

औरों को गिरा दे नज़रों से
वो झूठी अज़्मत क्या कहिये.

सहरा में खिला दे फूलों को
रब की ये रहमत क्या कहिये.

महशर में मिले, हम मिल तो गए
इंतज़ार की लज़्ज़त क्या कहिये.

छुप छुप के निकलते हैं घर से
शोहरत की ये वहशत क्या कहिये.

(चाक=फटी हुई, ग़ुरबत=गरीबी,खुशबाश=खुश रहने वाला, अज़्मत=प्रतिष्ठा, सहरा=मरुस्थल, रहमत=कृपा, महशर=महाप्रलय, शोहरत=प्रसिद्धि, वहशत=भय.
वहशत के और अर्थ जंगलीपन या पागलपन भी होते हैं लेकिन यहाँ भय के अर्थ में ही लिया गया है.)

Friday 2 September 2016

उपहास

######
बन जाये
जब
जेहन की सजावट
ओस में भीगी
नर्म घास,
दिल की गहराईयो में
जड़ जमाये
बूटों का
होने लगे
उपहास,,,,

उग आई घास : विजया (राजस्थानी ओठा पर आधारित)

+ + + + +
भला हुआ
विधाता मेरे !
जन्मे जामनदास,
बोया था
बाजरा मैंने
(लेकिन)
उग आई घास...

सहअस्तित्व अधूरे सपनों का.... : विजया






★★★★★★★★
माना यह जीवन अपना छोटी एक कहानी है
एहसास है पीड़ा का शिफ़ा मैंने कहाँ जानी है.

जीवन को बना ना पाये गुलज़ार हम सही में
कांटे कुछ बुहारे ये हकीकत ना अनजानी है.

सहअस्तित्व अधूरे सपनों का बना साथ अपना
जीने की प्रत्येक विद्या हमने तुम्ही से जानी है.

(बाहम अधूरे सपनों का बना है साथ अपना
जीने की हर वज़अ हमने तुम्ही से जानी है.)

ना टिका ठहर कर कोई दरियाऐ ज़िन्दगी में
है वेग तीव्र, लहर चंचल बहता हुआ पानी है.

मिला कर खुद को ही तुझमें पाया वुज़ूद मैंने
सब कुछ बसा है तुझमें बाकी सभी फानी है.

दिखावा : विजया


++++++++++

देखें है बहुतेरे
जो संतोष का
दिखावा करते हैं
बात बेबात का वो
पछतावा करते हैं,
डूबे रहते हैं
हर पल खुदनुमाई में
मगर औरों को
जान पाने का
बड़ा दावा करते हैं.

किस किस का हम हिसाब करें ? : विजया


+ + + + + +
हवा और सांस
पानी और प्यास
सूरज और प्रकाश

ऐसे में कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

चाँद सितारे रात
बादल और बरसात
पर्वत और प्रपात

ऐसे में कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

आँख और अश्क
इश्क़ और रश्क
भीगे और खुश्क

ऐसे में कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

धुप और छाँव
मंज़िल और पाँव
मरहम और घाव

ऐसे मैं कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

ख़ुशी और गम
करम और सितम
जियादह और कम

ऐसे में कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

साँसे गिनते रहना यूँ अंदाज़ नहीं है जीने का
पीना तन्हा तन्हा छुपके शऊर नहीं है पीने का
चन्द सिक्के गिन दे देना मोल नहीं पसीने का

ऐसे मैं कोई बताये हमें
किस किस का हम हिसाब करें ?

रास रास ना आया,,,,,,,


# # # # # # #
तेरा रास किसुन ना रास आया
हर शै का तोहे जब खास पाया.

तकै आइना मुंह जिस तिस का
ठहरा जो यकायक उदास पाया.

बना हूँ दीया एक मुफ़लिस का
बुझा जो हर साँझ उजास पाया.

रुके थे यारों एक लंबे सफ़र में
अटका हुआ जो हर सांस पाया.

बन कर रहजन लूटा है रहबर ने
गिनें कैसे क्या खोया क्या पाया.

ऐसो निठुर बलम हमार.... : विजया



+ + + + + + +
समझ समझ के नाहीं समझे
ऐसो निठुर बलम हमार
का करें का ना करें री सखी
लटकत मोय पे एहि तरिवार ।। ऐसो ।।

भोर भये जब अंखिया खोले
हमका गुड मॉर्निंग ना बोले
ओन करे समसुंगजी के
ज्यूँ सौतन को इंतज़ार ।। ऐसो ।।

फेसबुक वॉटसअप में रमत है
वर्चुअल सनसार के ही जीवत है
नित नूंवो सनियास रचत वो
भयो मनुस जीवन निस्सार ।। ऐसो ।।

सखियन संग ज्यूँ रास रचावत
नित कुं खोवत नित कुं पावत
सबद खिलाड़ी रह्यो सदा सूं
है निगुन सगुन कलकार ।। ऐसो ।।

बनो मेरो सैंया बैग पाइपर
आकरसन अदभुत है साइबर
शहद है वो मदुमख्खी अनगिन
चहुँ दिसी महिमा अपरमपार ।। ऐसो ।।

हिरदे वांके परेम भरो है
सिक्को मेरो बहोत खरो है
भोळो शम्भू फ़क़ीर की फ़ित्रत
म्हारो जीवण है भरतार ।। ऐसो ।।

आत्ममुग्धता ....... :विजया



+ + + + + +
याद दिलाती है
सेल्फी-कल्चर
आत्ममुग्धता की,
वो यूनानी पौराणिक कथा का
नायक नार्सिस जो
हो गया था आशिक
खुद के ही रूप का
देखकर अपना ही अक्स
पानी में,
देखता रहता था
होकर मुग्ध स्वयं को
पल प्रतिपल
होकर बेसुध कि
और भी बहुत कुछ है
दुनिया में.......
आज भी दिखेंगे
आसपास ऐसे 'आत्ममुग्ध'
जिन्हें भ्रम है
खुद के रूप रंग
ज्ञान और विद्वता
उदारता और व्यावहारिकता
चाल और चरित्र का,
कि 'हम' सा कोई नहीं
लाज्ज़हीनता
स्वार्थपरता
असंवेदना
क्रूरता
असहजता को जिये जाते हैं
ऐसे लोग,
दिखाकर नीचा दूसरों को
अस्वीकार कर स्वयं की त्रुटियो को
अहंकार मद में चूर
करते हैं
येनकेन प्रकारेण
बुलंद परचम अपना,
बिना नींव के ये कंगूरे
बन कर सूखी डाल किसी पेड़ की
झुकते नहीं
टूट जाते हैं
और हो जाते हैं विलुप्त
स्मृतियों से.....

अनछुए शब्द...

# # # # # #
अनछुए शब्द
ठीक ही तो कहा तुम ने
नामुमकिन है छू लेना इन को
बावजूद लाख कोशिशों के,
मौन औढे ये
अदृश्य से निराकार
दे देते हैं भ्रम
आकार का
अपने चिंतन से जुड़े
किसी प्रकार का
कभी आलिंगन
कभी प्रहार का
कभी मेल
कभी तकरार का,
बहम है यह भी कि
देते हैं ये रूप
मन के भावों को
दिल में लगे
गहन या सतही घावो को
भंवर में डूबी या साहिल पर पहुंची
बिना पाल की नावों को,
हम ही हैं
जो करते रहते हैं
इस्तेमाल इनका
मगर ये हैं कि
खिसक लेते हैं
मुठ्ठी की रेत की तरह
जिसे बांधे रख पाना
होता है
एक खुशफ़हमी जैसा,
देखो ना
जब जब हुये दुष्प्रयास
किसी भी बुद्ध्पुरुष की
देशनाओं को आकार देने का
खिसक लिए थे ये
छोड़कर हम सब को
करने नाना व्याख्याएं
वेदों की
उपनिषदों की
गीता की
आगम की
धम्मपद की
बाईबिल की
कुरआन की
और तो और
हमारे संविधान की....