Friday, 2 September 2016

रास रास ना आया,,,,,,,


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तेरा रास किसुन ना रास आया
हर शै का तोहे जब खास पाया.

तकै आइना मुंह जिस तिस का
ठहरा जो यकायक उदास पाया.

बना हूँ दीया एक मुफ़लिस का
बुझा जो हर साँझ उजास पाया.

रुके थे यारों एक लंबे सफ़र में
अटका हुआ जो हर सांस पाया.

बन कर रहजन लूटा है रहबर ने
गिनें कैसे क्या खोया क्या पाया.

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