Sunday 19 June 2016

निहानी : विजया

निहानी.....

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लफ़्ज़ों को जीनेवाले तुम
बात निहानी क्या जानो,
दिन को लंबा करने वाले
तुम रात सुहानी क्या जानो.

हर लम्हे पैसा हा पैसा
तुम बात रूहानी क्या जानो
प्यार ही प्यार से भरी है जो
वो मेरी कहानी क्या जानो.

साहिल पर बैठे रहते हो
मौजों की रवानी क्या जानो
नंगे जिस्मों के आशिक़ हो
तुम चुनरी धानी क्या जानो.

हर सांस में खुदगर्ज़ी है असीर
फ़िज़ा मस्तानी क्या जानो
रिश्तों रिवाजों में गाफिल हो
तुम मीरा दीवानी क्या जानो.

फ़क़ीर लकीर के बने हो तुम
दिल की मनमानी क्या जानो
जन्मों की प्यास दबाये हो
आँखों का पानी क्या जानो.

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