Tuesday, 5 August 2014

दो आत्माएं हो रही है एक... :(अंकितजी)

दो आत्माएं हो रही है एक... 
# # #
मुझे स्पर्श करो
अपनी काया से
दर्शावो क्या है
तुम्हारे मन में
मुझे महसूस करने दो
तुम्हारे मौन सोचों को
जो
बह रहे हैं
युग-युगांतर से
उन कालातीत रहस्यों को
जो अव्यक्त हैं,
तप्त देहों में छुपे
उद्वेगों को
ऐन्द्रिक उत्तेजना के
अंतिम छोर पर
चंद्रालोकित
तरल स्वपन को
श्वास की गति से
परिचालित ध्वनि को
रेशम से विचारों को
और
उष्ण सिसकियों को.....

दो आलिंगनबद्ध जिस्म
निर्वसन चांदनी में
एक प्राचीन नृत्य
एक उद्वेग्मय कथानक
मन जुड़े हैं
मस्तिष्क जुड़े हैं
भाव बह रहे हैं
एहसास
सुकोमल प्रकाश में
खिल रहे हैं....

ऐसे घटित
हो रहा है प्रेम
दो आत्माएं
हो रही है एक...

No comments:

Post a Comment