Tuesday, 5 August 2014

अब मुस्कुराइए : (अंकितजी)

अब मुस्कुराइए 
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गम-ए-हयात में खुद को ना मिटाइये,
औढ़े से अंधेरों से बाहिर तो आईये.

गुरुर के फसानों से वाकिफ है आप भी,
बस सादगी से यह जिंदगी रंगीं बनाईये.

नाला-ए-मुर्गे सहर को मोहताज़ कब सूरज,
कुदरत की हकीक़त से ना नज़रें चुराइए.

रंजिशों को दिल में रखे हुए दफ़न,
इस जिंदगी को खुद की लहद ना बनाईये.

गया कल कब आया है दुबारा लौट कर
आज ही सच है,हसीं महफ़िल सजाईये.

खोला कीजे दरीचे अपने घर के भी कभी,
मौसम बड़ा दिलकश है, टुक लुत्फ़ उठाईये.

हंसने से बनते हैं माहौल खुशगवार
उदासी के ड्रामे हो लिये अब मुस्कुराईये।

(गम-ए-हयात=Sorrow of life. गुरूर=pride नाला-ए-मुर्गे सहर=voice
of the bird that sings in morning.(मुर्गे की बांग) रंजिश=distress,dejection, enemity.
दरीचे=window. लहद=grave)

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