हर बात अब रूहानी है
जब से हुए तुम मुर्शिद मेरे
जाना कि वजूद की बातें सब बेमानी है.
तुझ से ही मैं हूँ, मुझ से ही तू है
बाकी सब झूठे फसाने और अधूरी कहानी है.
तोहमतें देते है सब बरहम होकर
मंज़िल-ए-मौऊद की हक़ीकत जिन्हे अनजानी है.
खुदगर्जी हो या दरियादिली किसी की
मग्लूब-ए-गुमां है सब कुछ , दाद-ओ-इल्ज़ाम सब फानी है .
अंधेरे- उजाले, हिज्र -ओ-वस्ल , नेकी-अजाब सब एक है मुझ पे
ख्वाब-ए-फर्दा बे-सिम्त बातें है, यह सब आनी जानी है.
मकतल का डर चला गया है अब मुझ से
मसलूब हूँ तो क्या, मुनसिफ़ की शक्ल मेरी पहचानी है.
गम-ओ-खुशी से बेपरवाह हो गया हूँ मैं
बस जुनून-ए-इश्क ही अब मेरी जिंदगानी है.
हिसार-ए-जात से जब से निकाला है मुझे तुम ने
हर सोच में मेरी है मोहब्बत, हर बात अब रूहानी है.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मुर्शिद =गाइड/मार्गदर्शक. वजूद=अस्तित्व, तोहमतें =दोष, बरहम =परेशान, मंज़िल-ए-मौऊद=डिसाइडेड डेस्टिनेशन-निश्चित लक्ष्य, हिसार-ए-जात=अस्तित्व की घेराबंदी, खुदगर्जी =स्वार्थपरता /सेल्फिशनेस
दरियादिली =उदारता, मग्लूब-ए-गुमां=भ्रम से हारे हुए, इलज़ाम=आरोप
दाद=प्रशंसा, मकतल=वधस्थल, मसलूब=फाँसी पर चढ़ाया जाने वाला
हिज्र =विरह, वस्ल =मिलन, नेकी=पुण्य, अजाब =पाप, ख्वाब-ए-फर्दा =आने वाली रात का सपना, बे-सिम्त=दिशाहीन रूहानी=आत्मा से सम्बंधित
No comments:
Post a Comment