प्रकृति और पर्यावरण
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हमारी संसकृति
ने प्रकृति को
प्रभु का ही रूप माना है
हमने जल, वायु, वृक्ष,
धारा, गगन, अग्नि
सभी को पूजा है
और पूजतें है.
वेद मंत्रों में
पृथ्वी शांति,
अंतरिक्ष शांति
का गुंजन होता है,
हर पूजा में हरियाली और ताज़गी का
समावेश होता है
हवन अग्नि की सहयता से
वातावरण शुद्धि का आवाहन है.
शास्त्रीय एवं लोक संगीत
ध्वनि प्रदूषण का सजीव जवाब है.
फिर हम शायद पाश्चात्य चकाचौंध
और हमारी स्वार्थपरता से ग्रसित सोचों के
कारण हमारी परम्पराओं को
भूल बैठे है.
और
पर्यावरण और प्रकृति के
पर्यावरण और प्रकृति के
विरुद्ध अनजाने में
खड़े हो गए है
और
खड़े हो गए है
और
दैनंदिन प्रदूषण में
अपना
अपना
मौन योगदान दे रहें है.
आओ पुन: अपनी परम्पराओं को
आज के सन्दर्भ में देखें
आज के सन्दर्भ में देखें
और ऐसा ना करें
जो पर्यावरण-संतुलन को
नष्ट करता है.
जो पर्यावरण-संतुलन को
नष्ट करता है.
और करें ऐसा
जो प्रकृति को
प्रसन्न कर
जो प्रकृति को
प्रसन्न कर
पर्यावरण को
उल्लासित और
उल्लासित और
जीवंत करता है.
'ग्लोबल वॉरमिंग' का
दैत्य अट्टहास कर रहा है
दैत्य अट्टहास कर रहा है
उस-से लड़ने
प्रभु का अवतार
प्रभु का अवतार
हमारी मनोभावनाओं में
होना है.............
और
हमें पहल कर
हमें पहल कर
मानवता को
उस 'जालिम'
उस 'जालिम'
से कायनात को
बचाना है.
बचाना है.
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