Tuesday 5 August 2014

छोटा-बड़ा : (अंकितजी)

छोटा-बड़ा
# # # #
हुआ था
फसाद.
पहाड़ था
गुस्साया,
अपनी बुलंदी पर
इतराया,
कह डाला था
गिलहरी को:
'एक अदना खुदपरस्त'.

गिलहरी ने
दिया था
जवाब
अहिस्ता से :
"बेशक !
आप हो बड़े बहुत,
मगर,
होती है जरुरत
हर शै और मौसम की,
बरस को बनाने में
और
जहाँ को बसाने में....

और
मैं नहीं सोचती,
है कोई तौहीन,
अदना होने में,
गर मैं नहीं
आप जैसी बड़ी ..तो,
नहीं है छोटे आप भी
मानिंद मेरे,
और नहीं है
आप फुर्तीले मुझ से...

मैं नहीं कर रही
इंकार
करते है
आप मुहैया
मुझको
पगडण्डी
एक सुन्दर सी...

लियाकत और ताकत में,
होते हैं फर्क,
खुदा ने बनाया है
सब को
एकसी मोहब्बत
और
करम से,
दी है सभी को
माकूल जगहें,
औसफ
और
औकातें.....

हाँ मैं
पीठ पर अपनी
दे नहीं सकती
जंगलात को
मक़ाम,
मगर
आप भी तो
नहीं तोड़ सकते
एक नन्ही सी बादाम....


फसाद=fight.
खुद-परस्त=prig.
अदना=petty
शै=object,thing,aricle।
जहान=universe।
तौहीन=insult।
मानिंद=same as.
औसफ=qualities,attributes.
औकात =status,dignity.
माकूल=just,appropriate।
मक़ाम=place,house.
लियाकत=capability,eligibility.


(This poem is inspired by the poem 'FABLE' by Ralph Waldo Emerson (1802-83),
an American poet and philosopher, who believed that nature is a manifestation of spirit.)

No comments:

Post a Comment