Tuesday, 12 August 2014

गुफ्तगू जो अशआर बन गयी ...


गुफ्तगू जो अशआर  बन गयी 
(हरेक coupltet की पहली और दूसरी लाइन आपसी डायलाग है)

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मेरी तस्वीर में भी तुम नज़र आते हो मुझे,
ज़र्रे-ज़र्रे में यूँ छिप कर के सताते हो मुझे. 

सताता नहीं ,प्यार मैं करता हूँ  तुझको, 
इन दिनों हर तस्वीर में देखा करता हूँ तुझको. 

धड़क जाता है दिल यक ब यक तेरी ऐसी बातों से, 
छुपा लेती हूँ मैं शरमा  के मुख फिर अपने हाथों से.

नशा सा छा  जाता है मुझ पर ए पगली तेरी बातों से, 
थाम लेता हूँ वुजूद तेरा मैं अपने इन हाथों से. 

काश तुझ तक ले जाये मुझको यह सीधी लकीर, 
पास नहीं तुम इस पल मेरे, यह कैसी तकदीर.

बड़े अरमान से लाये थे चद्दर गुलाबी,
मिल बैठे हैं हम दो ,बिगड़े हुए शराबी. 

ओढा के चद्दर गुलाबी ,तू समा  गयी है मुझमें, 
सौगात मुझे ये ज़िंदगी यूँ थमा गयी है तुझमें.

तुझे मालूम है क्या हो तुम मेरी ज़िंदगी में, 
जन्मों से हो शुमार तुम मेरी बन्दगी में.

रों रों से हो के गुज़रे ,रूह में यूँ घुल गए तुम,
नहीं चाह अब कोई भी मुझको जो मिल गए तुम. 

यह ना तेरा किया है और ना मेरा किया है, 
जो भी जिया है हम ने ,उसका ही दिया है. 

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