Sunday, 10 August 2014

चित्त : धम्मपद से (नायेदाजी)

चित्त : धम्मपद से 

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मानव चित्त
अत्यंत
चंचल और
अस्थिर.
नियंत्रण इसका
अति-कठिन.

करे
संशोधन
निज चित्त का
निज मन का
बुद्धिमान  मनु.

और करे
सीधा उसको,
जैसे करे
एक तीरन्दाज़
अपने तीर को.

( निरंतर अभ्यास, एकाग्रता, सकारात्मक दृष्टि, विचार शक्ति द्वारा अपने चित्त को स्पष्ट एवम स्थिर रखने के लिए प्रयास करने होंगे.. विवेक और  भावना को मिला कर--- विचार एवं अनुभूति से किया गया कार्य श्रेयस्कर होता है.

बुद्ध ने कहा है कि  चित्त/मन/ mind मायवी है..एक जादूगर जैसा. यह रचता है बीमारियों को और रच भी सकता है उनकी चिकित्सा को.सभी प्रकार के ‘illusions’-सौंदर्या और  कुरुपता, सफलता और असफलता, धनाढ्यता और निर्धनता …सभी यह चित्त रचता रहता है. और हमें  रखता है यह चित्त ‘hypnotize’ किए हुए. इस हिप्नोसिस की अवस्था से बाहिर आना होता है हमें  समझ के चित्त को/माइंड को/मन को... उसको देखते हुए, उसकी माया को साक्षी भाव से निरखते हुए.)

Inspiring Sutra from Dhammpad :

Pandhanam Chapalam Chittam,Durakkham Dunnivarayam,
Ujum Karoti Medhaavi, Usukaarova Tejnam.
-------------------Gautam Budh

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