यह इश्क क्या बीमारी है
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(यह ज़ज्बात एक ऐसी भारतीय नारी के है जो बहुत सी विपरीत अवस्थाओं के बावजूद भी
पतिवर्ता धर्म को अपना Ideal मानते हुए उस इंसान से ताजिंदगी जुड़ी रही जिसने उसके होते कभी भी उसकी कद्र ना जानी. वो इस दुनिया से चली गयी तब उस इंसान को एहसास हुआ
वो क्या थी और उस नारी की उसकी जिंदगी में क्या अहमियत थी? बरबस उस पठार दिल इंसान की आँखो से आँसुओं की झड़ी बह निकलती है...उसे एहसास होता है कि वो उस दिवंगता से बहुत प्रेम करता था मगर वो प्रेम उसके ऐशो-आराम , मौज-मस्ती और ईगो से बाद की सीट लिए हुए था.........पछतावा मगर अब क्या ?
मेरा मकसद उस स्वर्गीय नारी को उसके बलिदान और वफ़ादारी के लिए ग्लोरीफाई करना कतई नहीं है, वो एक अलग ही मसला है और इस वक़्त उस डिटेल में नहीं जाना है......................मगर जैसा देखा महसूस किया लिखा गया है इस रचना में बस.)
माना की इस जिस्म में जान तुम्हारी है
सब कुछ है तिरा रूह तो हमारी है.
इशारों पे तेरे नाचते रहे ताज़िन्दगी
माजी को छोड़ो अब यह घड़ी हमारी है.
ज़ुबान रही है बंद होंठ सिले हुए से है
कैसा है यह मुनसिफ़ कैसी यह रुआबकारी है.
जा रहें है हम आज दुनिया से बिछड़
यही है बस खिज़ा यही फस्ल-ए-ललकारी है.
कातिल हो तुम साबित हुआ तफ़तीश-ओ-गवाही से
हुई ना सज़ा तुम को यह कैसी तरफ़दारी है.
किस्सा-ए-बर्बादी मेरा साया हुआ हर बार
छुपाते हो फिर भी यह कैसी पर्दादारी है.
क्यों गमजदा हो हम ना रहे दुनिया में
गोया कितनी रातें हमने तन्हा गुज़री है.
खुदमुख्तार हो गये आज मर के हम
अब क्यों हंसते हो कैसी यह अश्कबारी है.
ना मालूम था मर्ज और दवा क्या है
ए चारागर बता यह इश्क क्या बीमारी है.
___________________________________________
जिस्म=body /देह
रूह=soul / आत्मा
इशारे=indications / संकेत
खुदमुख्तार =independent/ स्वतंत्र
अश्कबारी =flow of tears/अश्रुधारा
मुनसिफ़=judge/ न्यायाधीश
रुआबकारी =hearing (कोर्ट की सुनवाई)
फस्ल-ए-ललकारी=wave of flowers/ फूलों की लहर
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(यह ज़ज्बात एक ऐसी भारतीय नारी के है जो बहुत सी विपरीत अवस्थाओं के बावजूद भी
पतिवर्ता धर्म को अपना Ideal मानते हुए उस इंसान से ताजिंदगी जुड़ी रही जिसने उसके होते कभी भी उसकी कद्र ना जानी. वो इस दुनिया से चली गयी तब उस इंसान को एहसास हुआ
वो क्या थी और उस नारी की उसकी जिंदगी में क्या अहमियत थी? बरबस उस पठार दिल इंसान की आँखो से आँसुओं की झड़ी बह निकलती है...उसे एहसास होता है कि वो उस दिवंगता से बहुत प्रेम करता था मगर वो प्रेम उसके ऐशो-आराम , मौज-मस्ती और ईगो से बाद की सीट लिए हुए था.........पछतावा मगर अब क्या ?
मेरा मकसद उस स्वर्गीय नारी को उसके बलिदान और वफ़ादारी के लिए ग्लोरीफाई करना कतई नहीं है, वो एक अलग ही मसला है और इस वक़्त उस डिटेल में नहीं जाना है......................मगर जैसा देखा महसूस किया लिखा गया है इस रचना में बस.)
माना की इस जिस्म में जान तुम्हारी है
सब कुछ है तिरा रूह तो हमारी है.
इशारों पे तेरे नाचते रहे ताज़िन्दगी
माजी को छोड़ो अब यह घड़ी हमारी है.
ज़ुबान रही है बंद होंठ सिले हुए से है
कैसा है यह मुनसिफ़ कैसी यह रुआबकारी है.
जा रहें है हम आज दुनिया से बिछड़
यही है बस खिज़ा यही फस्ल-ए-ललकारी है.
कातिल हो तुम साबित हुआ तफ़तीश-ओ-गवाही से
हुई ना सज़ा तुम को यह कैसी तरफ़दारी है.
किस्सा-ए-बर्बादी मेरा साया हुआ हर बार
छुपाते हो फिर भी यह कैसी पर्दादारी है.
क्यों गमजदा हो हम ना रहे दुनिया में
गोया कितनी रातें हमने तन्हा गुज़री है.
खुदमुख्तार हो गये आज मर के हम
अब क्यों हंसते हो कैसी यह अश्कबारी है.
ना मालूम था मर्ज और दवा क्या है
ए चारागर बता यह इश्क क्या बीमारी है.
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जिस्म=body /देह
रूह=soul / आत्मा
इशारे=indications / संकेत
खुदमुख्तार =independent/ स्वतंत्र
अश्कबारी =flow of tears/अश्रुधारा
मुनसिफ़=judge/ न्यायाधीश
रुआबकारी =hearing (कोर्ट की सुनवाई)
फस्ल-ए-ललकारी=wave of flowers/ फूलों की लहर
मर्ज़=disease/ रोग
चारागर =medico/doctor/ चिकित्सक
चारागर =medico/doctor/ चिकित्सक
तरफ़दारी=favaourism/ पक्षपात
गमजदा=sad/ दुखी
माजी=past/ विगत
ताज़िन्दगी =whole life / पूरे जीवन
खिज़ा =autum / पत्तझड
खिज़ा =autum / पत्तझड
कातिल=murderer/ हत्यारा
साबित=proove / सिद्ध
तफ्तीश = investigation / जांच
साया =publish/ प्रकाशित
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