Friday 8 August 2014

मेरा नसीब है : (अंकितजी)

मेरा नसीब है 

क्यूँ खोजते हैं साँसे हम दफीनों में
तुम मिल ना सके मुझ को ये मेरा नसीब हैं .

तेरे दरीचों  से अब भी आती है सदाएं मुझ को
क्या हुआ शबिस्तां  में तिरे  मेरा रकीब हैं .

क्यो करें सूरत-ए-हाल की तनकीद हरदम 
रिश्तों के सफ़र-ए-रंज की इब्तिदा अजीब हैं .

ख्वाबों में भी सोचते  हैं सिर्फ़ तुझको
दीवाना हूँ बेकल कहते मुझको मेरे हबीब हैं .

अजनबी भी जानते है हाले  दिल मेरा
वो चुप क्यूँ हैं जो मेरे दिल के करीब है.

मुबारिक हो दुनिया की लालो-गौहर तुझ को
हम जैसों की किस्मत में शायद कोई सलीब है.

नविश्त-ए-दीवार को पढ़ नहीं सकते
क्यों कहे जाते है की 'सरूर'* एक अदीब है.



(*मैं  'सरूर' नाम से भी कहता हूँ.)

दफीनों =grave yards/कब्र
शबिस्तां =बेडरूम 
तनकीद =क्रिटिसाइज़/आलोचना  
बेकल=restless/आकुल व्याकुल 
हबीब =फ्रेंड्स/दोस्त  
लालो-गौहर =लाल और मोती 
सफ़र-ए-रंज=दुखों की यात्रा 
इब्तिदा =begining/शुरुआत  
नविश्त-ए-दीवार=writting on wall.
अदीब=लिटररी पर्सन/साहित्यकार 

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