Tuesday 5 August 2014

'सत्य' : (नायेदाजी)

'सत्य' 
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'सत्य'
अनाच्छादित
प्रकाशित
आच्छादित
धुन्धलित,
मधुर है
श्रवण में,
विकट है
वहन में....

उसका है
अप्सरा से भी
अधिक
सौंदर्य
एवम्
स्वरसंगत से
अधिक
माधुर्य.....

होता है सच
हिम से
कहीं अधिक
सुकोमल
सुकुमार,
प्रस्तर से भी
अधिक
जिद्दी
कठोर....

तड़ित कि भांति
उसकी
तीव्र दृष्टि
असत के
अंधेरों को
भेदे,
सूर्य-देव तुल्य
शक्ति उसकी
सबल मिथ्या को
पराजय दे....
किया जिसने भी उसकी
हत्या का
षडयंत्र
हुआ विनष्ट वोह
अजेय कोप
उसके से
तदनंतर....

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