Tuesday 5 August 2014

बात नयी अंदाज़ पुराना : (नायेदाजी)

बात नयी अंदाज़ पुराना 
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कृष्ण है स्वयं में एक  धर्म,
समझना है हम सब को यह मर्म.

गीता मनन की है एक  धार्मिक दृष्टि,
दस्तावेज  है अनमोल विषय समाजी सृष्टि.

गाएँ है श्याम सुंदर के मधुर तराने
फ़ैयाज़,गुलाम,रसूलन,अख़्तर नाम ना अनजाने 

'वाजिद अली शाह' लिखित नाटक ‘किस्सा राधे-कन्हैया का
अभिनय जिसमें करते थे खुद नवाब  बंसी-बजईया का.

सैय्यद इब्राहीम  ‘रसखान ’ की कवित्त  है बड़ी  निराली,
मानुस और पशु बस बसें गोकुल ही, बात कह डाली.

उड़ीसा  में आज भी जब लगे जगन्नाथ से प्रीत,
कवि 'शालबेग' के मुखरित होते  हैं तब गीत.

कृष्ण आधारित कलाकृत्यों का होता जब-जब मूल्यांकन,
याद किया जाता है 'मेवाड़ी  साहिबदीन' का भागवत चित्रण.

अकबर पूजता था कृष्ण को होता था नित्या भक्ति संगान ,
“श्याम-घनश्याम उमड़-घूमड़ आयो” ‘तानसेन’ की तान 

रीतिकाल के कवियों ने किया कृष्ण  रस-वर्णन अमोल,
आलम-शेख और मूबरिक की रस-रचनाएँ  थी मुँह-बोल.

आओ  पर्व  जन्माष्टमी का मिल जुल, गीता गा कर मनाएँ,
किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े क्यों है हम, आतंकवाद भगाएँ.

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