Friday, 8 August 2014

कल आज आौर कल : (नायेदाजी)

कल आज आौर कल 


एक तरह से ये रचना अंकित जी  और मेरी सांझा रचना है. प्राक्कथन  के रूप में अंकित जी  के कुछ  छंदों को पेश कर रही हूँ :


समय सूत्र तो एक है,नाम दिए है भिन्न.
कल -आज-कल भेद में, सूत्र  हुआ विछिन्न  .

विगत दिवस ही आद्य  है,आद्य  ही होय भविष्य .
वही प्राणी एक  गुरु है, वही होत  है शिष्य ..

देखन की सीमाएँ है,दृष्टव्य  सीमांत,
ज्ञान चक्षु जब खुल जाए,दिखन लगे अनंत..

समय रहस्य को जाने,माने ना कोई पंथ .
दे स्वीकृति अस्तित्व को, वो सच्चा निरग्रंथ .

~~~~~~~~~~~~~~

समय एक  की स्ट्रिंग है जिसके तीन हिस्सों कल, आज और कल की बात हम करतें है, कभी उसे भूत, वर्तमान और भविष्य  में बाँट कर देखतें है......क्योंकि हमारी सीमाएँ है. प्रेम के बारे में भी ऐसा ही कुछ  क्रम चलता है, जिसे विकास  की प्रक्रिया भी कह सकते हैं .......अलग अलग समय पर अलग अलग रंग. आइए तीन रूपों में इसे देखें

कल (विगत)
# # # # 
अशांत तृष्णा,
नयी साध,
नये यत्न,
डोले चेतन,
पाने की आकांक्षा,
खोने का भय,
अनहोनी अपेक्षाएँ,
अपूरित का विस्मय,
मिलन की प्रतीक्षा,
बिछोह  की उपेक्षा,
उद्वेलित तन मन ,
नयनों में आशा,
चिंतन में प्रत्याशा,
देह का बहु  चिंतन,
सत्विक्य मंचन,
घटित स्वल्प,
कृतत्व अधिक,
युगल संग-ब्रह्माण्ड  पृथक,
कल्पना का प्रवाह,
अंग अंग उत्साह,
संबंधों की परिभाषाएं ,
नित्य नयी भाषाएँ ,
हर बात नितांत पर,
हर निर्णय अंत पर,
ऐसा ही कुछ  था,
विगत कल का,
प्रेम......


आज (अभी अभी ) 
# # # # 
शांत तृष्णा,
संयत साध,
अप्रयत्न ,
साथ होने की आकांक्षा,
सीमित अपेक्षाएँ,
अपूरित की स्वीकृति,
मिलन-बिछोह  समतुल्यता ,
वास्तविक को मान्यता,
संतुलित चिंतन,
विवेकशील मन ,
देह को गौणता ,
अध्यात्म को प्राथमिकता,
घटित अधिक ,
कृतित्व  स्वल्प,
ब्रह्माण्ड  संग युगल,
सहानुभूति प्रबल,
धरा पर विचरण,
उच्चता  का अवलोकन,
परस्पर समझ,
शांत स्थिर जीवन,
संबंधों का यथोप्युक्त मूल्यांकन,
जीवन में सह-अस्तित्व का अंकन,
वही गमक,
वही ललक,
कुछ  ऐसा है,
आज  का,
प्रेम.....


कल (आगत)
# # # #
संबंधों का अनावरण,
स्वत्व का तिरोहण  ,
अस्तित्व से संयोग,
मिथ्यात्व  से वियोग,
नश्वरता का आभास,
नैसर्गिकता हर स्वास,
सहजता ही जीवन,
करुणा का प्राबल्य,
मैत्री का कैवल्य,
चिंतन हो स्वच्छन्द,
मौन की यात्रा का आनंद,
गंतव्य का विस्मरण ,
अहम का आरोहण,
काल चक्र  को स्वीकृति,
मौलिक स्वीकार्य-तज्य  अनुकृति,
शीतल अनुभूति,
स्वाभाविक प्रस्तुति,
प्रभु से एकत्व ,
स्वयं का स्वयं-
पर स्वामित्व ,
कुछ ऐसा ही होगा,
भावी कल का,
प्रेम.....

No comments:

Post a Comment