रिश्तों के रखाव में : राधा और किसन
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रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
अभाव क्यों ?
राधा ने
किसुन से
नेह लगाया था,
कान्हा ने
उस पावन प्रेम को
हृदाय से
निभाया था,
किसी ने दोनो को
मंडप तले
नहीं बिठाया था,
सप्तपदी के
सामाजिक नियमों से
दोनों को
नहीं बँधाया था,
पूर्ण पुरुष ने
पूर्ण-नारी को
आत्मवत
अपनाया था,
किसन में थी
विलीन राधा
और
राधा में भी
किसना समाया था,
भक्तियुग के
कवियों ने
इसी प्रेम को
अपने गीतों में
गुनगुनाया था..
नहीं थकते हम
जपते हुए नाम
राधे श्याम का,
क्या भूला जा
सकता है वह
मंज़र बृजधाम का
जहाँ रास हुआ था
ब्रजकिशोरी और
सुंदरश्याम का,
हर मंदिर में
होता है दर्शन
प्रेमी-युगल
पूर्णवृतुल
राधेशयाम का,
वृंदावन के संग
सुमरीन करते हैं
हम बरसाना नाम का.
चंदन तिलक
श्री राधा है
विश्वपति
सालिगराम का.
पाया था
समरूप प्रभु के
राधिका आराधिका ने,
गूँजायमान है सर्वत्र
मधुर उच्चारण
राधे राधे,
बिन राधे
कृष्ण है आधे.
फिर भी सच्चे प्रेमियों के
प्रगाढ़ पवित्र प्रेम से
समाज का दुर्भाव क्यो ?
रिश्तों के रखाव में
सहजता का अभाव क्यों ?
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