Sunday 10 August 2014

मृत्यु : धम्मपद से (नायेदाजी)

मृत्यु : धम्मपद से

# # # #
चरवाहा
लिए हाथ
लकुट को
चले निज
गोवं के
पार्श्व में.

करता है
प्रहार
गोपलाल
लकुटी से जब
हो समय
उसका.

मृत्यु
करे
अनुसरण
मनुज का.
करे
प्रहार
उपयुक्त
समय पर.

(ग्वाला ग़लती करने वाली गाय को तो लकुट मारता ही है, कभी कभी अपनी उपस्थिति का आभास कराने के लिए भी वह प्रहार करता है. यह प्रहार कभी भी घटित हो सकता है. मृत्यु भी इसी प्रकार हमारे पीछे रहती है....और किसी भी समय अपनी उपस्थिति का अनुभव करा सकती है. हुमें इस लिए चाहिए :  ( १ ) श्रेष्ठ मृत्यु के लिए बेहतर जीवन मूल्यों का योगदान करते हुए श्रेष्ठ जीवन बिताना.( २ ) किसी भी कार्य ,उत्तरदायित्व या फ़ैसले को अधूरा ना छोड़ने का प्रयास करना. ( ३ ) होल्सम सकारात्मक जीवन बिताना.-----यह थोथा  ज्ञान नहीं, ऐसा होना संभव है, हम प्रयास नहीं करते......इसमें आंशिक सफलताएँ पूर्ण सफलता की ओर अग्रसर करती है.,...और  हमारा  'आखरी सफ़र' 'अंतिम यात्रा' या 'विदाई'---पुरसुकून जीवन की तरहा ही पुरसुकून होता/होती है..........मृत्यु हमारी-'हम हँसे जग रोये.' जैसी होती है-------जीवन के समय ही हमारा  अपना, स्वय और  संसार का आकलन और समायोजन, हमें शांति दे पाता है)

Inspiring sutra from Dhammpad : 

Yadhaa Dandena Gopaalo, Gavo Paacheti Gocharam,
Evem Jaraa Cha Machhucha, Aayum Paachenti Paaninam.
----------------Gautam Buddh
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