संग एक शाम का
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अंजुमन में
लरज़ती
तेरी आवाज़ ने
बरसा दी
मुझ पर
खुशियों की बारिश
वरना
मेरी आग के लिए
तो शबनम की
एक बूँद काफ़ी है.
आग तो
बुझ गयी
ए मेरे हमनशीं
तिश्नगी
दिल की
मगर
अब भी बाकी है.
हम जानते है
तेरी महफ़िल में
मय, सागर और रिंद
बे-मुआफी है-(मगर)
इस तन्हा जिंदगी को
तुम्हारे संग की
एक शाम काफ़ी है.
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