Sunday 10 August 2014

क्रोध : धम्मपद से : नायेदाजी

क्रोध : धम्मपद से

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क्रोध जीता जाए

अक्रोध से,और

शालीनता से

उग्रता.

कृपादान विजित हो

कृपणवृति पर, और

असत्य पर

सत्यता.


( क्रोध का प्रत्यत्तर  शांति की भावना है.........क्रोध को विजित करने हेतु साक्षी भाव अपनाना होता है.........'reaction' जनित 'action' को स्थगित कर 'cooling' टाइम देना होता है.

मन जब शांत होता है तभी सही निर्णय हम ले सकतें है. क्रोध के पल में निर्णय या क्रियानवन को 24 घंटे टाल कर देखिए...फ़र्क महसूस होगा. कभी कभी नेगेटिव/reactinary लोगों से खुद की शांति को बचाने के लिए क्रोध का अभिनय करना पड़ता है...मगर मन शांत रहे तो अभिनय अभिनय ही रहता है अन्यथा 'फुफकारना'' भी अनायास अनजाने  में 'काटना' बन जाता है......'anger' एक  बहुत ही तीव्र  'एनर्जी' है इसको रचनात्मकता की ओर मोड़ कर हम लाभ उठा सकतें है....पुन: हम 'विट्नेसिंग' को अपना कर क्रोध प्रवृति में परिवर्तन ला सकतें है. )

Inspiring Sutra from Dhammpad :

Akkodhena Jine Kodham, Asadum Saadhuna Jine,
Jine Kadariyam Daanena, Sacchena Aleeka Vaadinam.
-----------------Gautam Budh

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