किस्सा पुदीना पंडित उर्फ़ साजिश मुल्ला नसरुद्दीन की..
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हम सभी तो तरह तरह के मुलम्मे चढ़ाये घूमते हैं और दूसरों को इम्प्रेस करने की होड़ में बेतरह लगे रहते हैं. बाजारीकरण और उदारीकरण ने जहां हरेक पर सम्पन्नता और अभिजात्य का मुलम्मा चढ़ा दिया है, वहीँ एक नये मुलम्मे की भी बहुत धूम है. यह मुलम्मा है ज्ञान, ध्यान, भक्ति, समाज सेवा, मानव सेवा, पर्यावरण की पर्वाह इत्यादि को औढ़ कर थोड़ा अलग दिखने का. शुक्रिया नये नये धर्मगुरुओं, वक्ताओं और ऍनजीओज का, जिनके कारण मुलम्माबाज़ों की यह नयी फसल लहलहाने लगी है. खुरचने से इस मुलम्मे की परत उतर जाती है और असलियत झाँकने लगती है. आज के किस्से का फोकस इसी बात पर है.
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हम सभी तो तरह तरह के मुलम्मे चढ़ाये घूमते हैं और दूसरों को इम्प्रेस करने की होड़ में बेतरह लगे रहते हैं. बाजारीकरण और उदारीकरण ने जहां हरेक पर सम्पन्नता और अभिजात्य का मुलम्मा चढ़ा दिया है, वहीँ एक नये मुलम्मे की भी बहुत धूम है. यह मुलम्मा है ज्ञान, ध्यान, भक्ति, समाज सेवा, मानव सेवा, पर्यावरण की पर्वाह इत्यादि को औढ़ कर थोड़ा अलग दिखने का. शुक्रिया नये नये धर्मगुरुओं, वक्ताओं और ऍनजीओज का, जिनके कारण मुलम्माबाज़ों की यह नयी फसल लहलहाने लगी है. खुरचने से इस मुलम्मे की परत उतर जाती है और असलियत झाँकने लगती है. आज के किस्से का फोकस इसी बात पर है.
हमारे गाँव के नंदू पंडित ह़र समय साफ सुथरे और मुस्कुराते रहने वाली शख्सियत को ओढे घूमते थे. श्रद्धा भक्ति, प्रभुकृपा, सहजता-सरलता की बातें ह़रदम करते थे. कहा करते थे भाई हम पर तो संवारिये की इतनी कृपा है कि हमें कभी भी गुस्सा नहीं आता..अरे कृष्ण के भक्त हैं, गीता नहीं पढ़ी हमने तो क्योंकि हम ज्ञान व्यान नहीं जानते लेकिन भक्ति ने हमें गीता का ज्ञान पिला दिया है...हमें ह़र पल कान्हा अपनी बांसुरी की संगीतमय तान सुना कर कहते हैं--नंदू कभी गुस्सा नहीं. भक्ति की बातें करते करते नन्दू प्रेम की बाते करने लगते थे...आत्मिक प्रेम से शारीरिक प्रेम की यात्रा अल्प समय में निपटाने में नन्दू माहिर थे. अपनी चिकनी चुपड़ी बातों के कारण नन्दू स्त्रियों में बहुत पोपुलर हो गए थे. तरह तरह के संबोधन मृदुभाषी नन्दू के हथियार थे, बूढ़े को दद्दू, अधेड़ को चचा, बराबर वालों को भाई/बन्धु/दोस्त, नन्हों को मुनुआ, इसी तरह स्त्रियों को मैय्या, माता, दीदी, बहना और जहां वर्तमान अथवा भविष्य में कुछ और उम्मीद हो वहां रिश्ते से नहीं पुकारते...वहां मीठे मीठे नाम देकर बतलाते ..मजाल कि सामनेवाला या सामनेवाली फ्लेट ना हो जाये.
बड़े लचीले थे हमारे नन्दू पंडित, अवसर देख कर व्यवहार का रंग बदलने में होशियार. पहले विनम्रता और भक्तिभाव से किसी के ह्रदय में जूतों सहित उतर जाते थे लेकिन बाज वक़्त गुस्सा, नाराज़गी, झगडा...और जब जब झाड पड़ती तुरत माफ़ी मांग कर हमारे नन्दू पंडित रो झींक कर मुआमला रफा दफा कर देते थे .बहुत बड़े मेनेज मासटर थे हमारे नन्दू पंडित.
मुल्ला नसरुदीन को पंडित की बढती हुई पोपुलरीटी, खास कर महिलाओं में, नहीं बर्दाश्त होती थी. खुराफाती मुल्ला ने सोचा कि नन्दू की शख्सियत पर जो मुलम्मा चढ़ा है उसे अगर खुरच दिया जाय तो बात बन सकती है. और मुल्ला ने अपनी कोंसपेरिसी को अंजाम दे दिया.
नन्दू पंडित चौपाल पर बैठे अपने चन्दन लिपे ललाट की 'एक्जिबिसन कम सेल' का आयोजन कर रहे थे कि पंडित के पड़ोसी का लाडला 'पप्पू' आ गया, और कहने लगा. "पंडित चचा, पंडित चचा आप से एक चीज चाहिए...पुदीना... मेरी अम्मा ने मंगाया है." पंडित को अचम्भा हुआ और अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ कहने लगा, "बेटा पप्पू, हम से ज्योतिष, पूजापाठ, भजनभाव की बात पूछो...यह पुदीना तो सब्ज़ीवाले के यहाँ मिलेगा." पप्पू गया ही था कि गप्पू आ गया, लगा अनुरोध करने, " पंडित चचा पंडित चचा..आप से एक चीज मंगाई है मेरी माँ ने....पुदीना." जब रीपीट बात देखी तो पंडित की मुस्कान गायब, माथे पर हल्की स़ी त्यौरी...बोला, " क्या हो गया है तुम्हारी माँ और तुझ को..अरे मेरे पास पुदीना नहीं..भागो."
इतने में मुल्ला के मोहल्ले का 'घसीटा' आ गया, "सलाम नन्दू चचाजान, अम्मी ने भेजा है और कहा है कि आप से पुदीना ले आऊं." पंडित आपे से बहार हो गया था, जोर जोर से बकने लगा, "जा अपने अब्बा से ला पुदीना, नन्दू पंडित के पास नहीं है पुदीना जाकर अपनी अम्मी से कह दैय्यो."
पंडित अपना झोला और धोती को संभाले वहां से रवाना हो गया.
कुछ दूर ही गया था कि 'नन्हकी' मिल गयी...टूटे दुधिया दांतों वाली 'नन्हकी' ने अपनी तुतलाती जुबान में बोला, " लंदू चा ,लंदू चा.मेली दीदी ने कहा है कि आप से पुदीना ले आऊं, दीजिये ना चा." पंडित नन्हकी को मारने को दौड़ा. अब तो साहब पंडित जहां से भी गुजरता उस से 'पुदीना' माँगा जाता....पंडित ज्योंही 'पुदीना' सुनता आपे से बाहर हो जाता. दो एक दिन में ना केवल गाँव में बल्कि आसपास के इलाके में नन्दू पंडित 'पुदीना पंडित' के रूप में फेमस हो गया था. बच्चे तो बच्चे अब तो बड़े भी उसे 'पुदीना' 'पुदीना' कह कर चिढाने लगे थे.
मुल्ला ने देखा कि अब मुआमला पक गया है...अब ब्रह्मास्त्र छोड़ने का मौका आ गया है...
हमारे गाँव में एक 'कल्लू' पहलवान होता था...बदन हठा-कठा मगर ऊपर का माला खाली याने जिस्म के मुआमले में हीरो लेकिन जेहन के व्यू पॉइंट से जीरो. एक दिन कल्लू गाता गुनगुनाता जा रहा था, "हमें तो लूट लिया....हुस्नवालों ने" कि उसे फरीद्वा ने रोक लिया, "सलाम पहलवान चाचा, वो मेरी आपा ने नन्दू पंडित के पास भेजा था मुझे 'पुदीना' लाने मगर पंडित नहीं देता है.
पहलवान की नज़र फरीद्वा की आपा नसीबन पर बड़ी शिद्दत से थी और पंडित के उसके साथ बढ़ते होब-नोब से खफा था वो. दिमाग का डिब्बा खाली ही था पहलवान का..और ऊपर से प्रोजेक्टेड माशूका की चाहत 'पुदीना'....और उसकी छोटे भाई का उसे अप्प्रोच करना. पहलवान ने कहा, " देखें कैसे नहीं देता पंडत का बच्चा पुदीना, चलो मेरे साथ." कल्लू आस्तीने समेटते हुए बोला.
"आप ही ला दीजिये ना भाईजान (संबोधन में ऐसे चेंजेज चात्कारिक प्रभाव रखते हैं), मैं तो डरता हूँ पंडित से. आपा से कह दूंगा कि भाईजान डाईरेक्ट ही आपको पुदीना पहूंचा दे जायेंगे."
भाईजान का संबोधन सुनकर पहलवान फूल कर कुप्पा. वह अपनी मस्तानी चाल से जोश के साथ पंडित की जानिब चल दिया , कल्लू मियाँ इतने मोटिवेटेड थे कि यह सोचने कि जेहमत नहीं ली कि पंडित के पास पुदीना कहाँ मिलेगा और नसीबन को पुदीने कि ज़रुरत क्यों कर होगी.
"ऐ पंडत, पुदीना दो..." और आस्तीन चढ़ा कर अपना तकियाकलाम दाग़ बैठे कल्लू पहलवान, "हौंसला है तो लड़ कर देखो."
पंडत को ऐसा गुस्सा आया, ऐसा कि अपने पोथी पन्नों से भरा भारी सा झोला पहलवान के मुंह पर दे मारा. और उसके बाद पहलवान ने जो किया उसका तसव्वुर आप कर लीजिये.
.......लूटे पिटे नंदू पंडित को देख, मुल्ला नसरुद्दीन मुस्कुरा रहा था.
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