Sunday, 10 August 2014

विजय : धम्मपद से : (नायेदाजी)

विजय : धम्मपद से

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विजय
सहस्र जनों पर है
श्रेष्ठ

विजय
सहस्र समरों की है
श्रेष्ठतर

विजय
स्वयं पर है
श्रेष्ठतम

विजय
निज आत्मा पर है
सर्वोपरि
श्रेष्ठतम

(अंतर्विजय  के मायने है: अपने मस्तिष्क, चेतना, कामना और  आवश्यकताओं पर विजय. स्वच्छन्द कामनाओं की पूर्ति आरंभ में 'स्वरगीय जैसा लगने वाला' सुख देती है किंतु उसकी निष्पत्ति देती है नारकीय पीड़ा. स्वच्छन्द कामनाओं को सजगता से टालना शुरू में कष्टदायक सा लगने पर भी आनंदपूर्ण परिणाम देता है........दरअसल हुमें आवश्यकताओं और  स्वच्छन्द कामनाओं को अपने सन्दर्भ में देखना होता है...और थोड़ा ठहर कर माकूल फ़ैसला लेना होता है. हुमें अपनी 'प्रायोरिटीज' का ख़याल हमारी गतिविधियों को संपादित करने के मुअतल्लिक करना होता है. एक आंतरिक विजय बेहतर है हज़ारों बाहरी विजयों से )

Inspiring Sutra from Dhammpad : 

Yo Sahassam Sahassena, Sangaame Manuse jine,
Ekamacha Jeyyam Attaanaanaam, Sa Ve Sangaama Juttamo.
--------------Gautam Buddh



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