Thursday 7 August 2014

एक सवाल : तीन जवाब (चार कवितायें) : (नायेदाजी और अंकितजी )

एक सवाल  : तीन  जवाब ---नायेदाजी  और  अंकितजी 

कफस: नायेदा 

# # # 
कफस
में
बंद तो
कर दिया
पंछी को.
मगर
उसे जिंदा
रखने
कहाँ से
लाओगे
आसमान  ?

(कफस=पिंजरा)

आज़ादी की शम्मा : अंकित

# # # 
कभी कभी
कोई परिंदा
फँसता है
कफस में
लालच से
कमज़ोरी से
ठहर जाने से.

आसमान को
चाहने वाले 
बस देखते हैं 
आसमान को,
बस चाहते हैं 
आसमान को,
बस सोचते 
आसमान को.
उड़ते हुए भी
ठहरे हुए भी.

तुम
शायद
आसमान  के सिवा 
कुछ  और पाने की
लालसा में,
या जद्दो ज़ेहद से हार
हताश हो कर
थम से गये थे
तभी तो मिला था
यह सोने का
पिंजरा ................

हाँ
तुम जैसे
बदकिस्मती  के शिकार
पंछी  को
लौटाने 
ज़रूर आएँगे
तुम्हारे हम-ख़याल
तुम्हारे हम-उड़ान.
औ फिर मिलेगा तुम को
खुला खुला आसमान .

बदल सकता है
सय्याद का भी दिल
हर दिल में खुदा
बसता है.
तुम पुकारना उसको
ताकि उसकी रूह में
सोया खुदा जागे
कफस का दर खुले
तुम्हे हो हासिल
फिर वही आसमान.

बस.......
खुद को
संभाले रखना
हर रात की होती है
सहर.
करना है
थोड़ा इंतेज़ार
जलाए हुए
आज़ादी की शमा................


परिंदे ! आसमान तुम्हारा है: अंकित

# # # #
परिंदे !
कफस का वज़ूद
दफ़न है
तेरे ज़ेहन  में.
खुली आँखों  से
देख
कफस कहाँ ?

ज़मानों  की आदत ने
दिए है तुम्हे
भरम कफस होने के
हकीक़त है नहीं जो
महज
तसव्वुर  है तुम्हारा.

आसमान बिखरा है
तेरे इर्द-गिर्द
यह बात और है
तू
भूल गया है उड़ना.

परिंदे !
तेरी पांखें  है
सलामत
तेरा जिस्म है
तंदुरुस्त
बस खोलकर
मन की आँखों को
बुला ले अपने
खोए हुए जोश को
भुलाए गये होश को.
और जगा कर जमीर को
नाम लेकर
परवरदिगार का 
उड़ जा और
उड़ता जा
सारा जहाँ तुम्हारा है
आसमान तुम्हारा है............

पंछी ! क्षमा करना....अंकित 
# # # # 
(नायेदाजी के एक  नन्हे से सवाल का जवाब देने की दो नाकामयाब कोशिशें कर चुका हूँ. इस कलम से निकली रचनाएँ:1)आज़ादी की शम्मा 2) परिंदे!आअसमान तुम्हारा है......आप लोगों का स्नेह हासिल कर सकी मगर जिनका सवाल था उन्हे जवाब कुछ  जमे नहीं..........शायद यह कोशिश उन्हे भा जाए....क्योंकि इस बार दिल से लिखी है दिमाग़ से नहीं)
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पंछी  !
क्षमा करना
मैंने  तुम्हारे सवाल को
जान कर अनदेखा किया.
अपने शब्द-जाल  में
कभी तुम्हारी नीयत
पर सवाल उठाया
कभी तुम्हारी लियाक़त को
ललकारा
कभी तुम्हारी ताक़त का
हवाला दिया
कभी तुम्हारे हबीबों की
बातें की
आइडीयलिज़म की हद  तक जा कर
सय्याद  के बदलने की
उमीद भी जगाई
बातों बातों में तुम्हे
सारा जहाँ और सारा आसमान भी
सौंप दिया.
शायद धर्म,फ़र्ज़ और खुदा का भी
हवाला दे डाला
क्या करूँ मर्द जो ठहरा
बस ऐसी बातें करना
मेरी फ़ितरत बन चुकी है
नारी को बहलाने यही सभी तो
करता रहा हूँ.
जड़ों को अनदेखा कर
पत्तों को इतराता  रहा हूँ.
वह  नहीं करता
जो करना होता है मुझे
बस इधर उधर की बातों में
उलझाता  हूँ तुझे.

मगर आज
पकड़ा गया........
सब कुछ  कहा मगर
कफस के नज़दीक ना गया.
डर  था तुम्हारी
आँखों में आँखें डाल
नहीं  बतिया सकूँगा.
लाख कोशिशों के बाद भी
तुम को पटिया ना सकूँगा.

आज वोही कर रहा हूँ
जो मुझे करना है
खोल रहा हूँ कफस का दरवाजा,
ताकि वो पिंजर
बन जाए खुले दरवाज़ों का
एक  मंदिर.
जिसे तुम शान से कह सको
आशियाना या घर.
खुले दरवाजे से आसमान
देखो आ गया है तुम्हारे
बिल्कुल करीब बिल्कुल करीब !

ए  मधुर गीत गाने वाले 
परिंदे !
एक  नयी तान  छेड़ 
अब  तेरा आसमान
तेरे इर्द गिर्द है
बिखरा........................
अब  तेरी मौज है
तू क्या करे ?
ठहरे
गाये 
उड़े
या सांझ ढले लौट आए
अपने आशियाने को.............

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