Sunday 10 August 2014

भाव चिंतन और कृति : (नायेदाजी)

भाव चिंतन और  कृति

मैं अक्सर कहा करतीं हूँ और यही मेरा तजुर्बा भी है कि जज़्बात  अगर दिल-ओ-ज़ेहन  में
हो तो शायरी के लिए लफ्ज़,पेंटिंग  के लिए सब्जेक्ट और रंग  ,नृत्य के लिए स्टेप्स, संगीत
के लिए सुर-झंकार.......और ऐसा ही बहुत  कुछ  कुदरती तौर पर घटित हो जाता है. मेरी यह नज़्म इसी जज़्बे को आप से बाँट-ने के मकसद से, मैंने  लिखने की कोशिश की है.

This is based on a dialogue between the famous painter Vincent Van Gogh and the studio CEO Brigadier Gauguin. The Brigadier is of the view that the painter should go on painting and should not have any theories. And Vincent Van Gogh utters how he feels about. A powerful delivery of sentiments and thoughts.

I came across this powerful version of Van Gogh while reading Irving Stone's "LUST FOR LIFE', a biographical novel describing the life of the dutch painter who was simply inimitable..........who stood alone........who shined alone in the sky full of stars.......सब से अलग ......अपने एक  अनूठे अंदाज़ में.

एक  फलसफाना रचना है, अर्ज़ है बाराए नवाजिश थोड़ा  बर्दाश्त करें इसके साथ, हो सकता है हम सब भी शायर हैं और यह हमारी सी बात हो......और यही एहसास लुत्फ़ दे जाए.

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भाव चिंतन और कृति
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जब मैं  करता हूँ 
सूर्य को अंकित
चाहना होती मेरी
जन-जन को हो 
जीवंत आभास
भीषण घुर्नायाम सूर्य का
जो दे रहा हो लगातार
प्रकाश एवं ऊष्मा की
अति शक्तिवान
तरंगो का.

जब मैं करता हूँ 
खेतों का चित्रण
चाहना होती मेरी
जन-जन को हो 
सांस लेता सा विश्वास 
अन्न  में 
निहित अणुओं के
चरम प्रस्फुटन  का
एवं गूँजायमान
विखंडन का.

जब मैं करता 
सेब का अंकन
चाहना होती मेरी
प्रत्येक को हो 
प्राणपूर्ण एहसास
सेब  में सराबोर रस का
उस के त्वचा की ओर  
अग्रसर होने का
बीजों की मर्मसपर्शी 
प्रयास-शीलता का
जो स-पल्लवन की ओर 
अभियानित हो.

द्राक्ष उद्यान का दृश्य

अंगूर जो फलित और प्रसफुटित हो रहे हैं 
और छोड़  रहें है रस भरी फुहार
तुम्हारी नासिकाओं में.
यहाँ अध्ययन करो
इस दर्रे का
चाहना होती मेरी
हर एक करे महसूस
उस विशाल तीव्र  प्रवाहमान  जलराशि को
जिसने इस  की भित्तिकाओं  को
हा डाला विच्छिन्न. 

जब में करता मानव चित्र का अंकन
चाहना होती मेरी
जन-जन को हो यह जीवंत आभास
मानव जीवन के समग्र  प्रवाह का
मनुज के हर अवलोकन
एवं उत्पीड़न का,
खेतों का जो उपजाते अन्न को
और करतें निष्कासित  उस जलनिधि को
जो तीव्रगति  से है लहराती
उस दर्रे में,
अंगूर के रस एवं मानव जीवन का
जो प्रवाहित है
समरूप से.

जीवन की एकरूपता ही
लय-ताल  का एकत्व  है.
एक  सुर-ताल जिस पर
हम सब कर रहें है नृत्य
हम सब: मानव, सेब ,दर्रे
घर, गाड़ी,खेत, घोड़े
और सर्वशक्तिमान सूर्या.

जो तत्व  तुम में है
वही होगा कल अंगूर में
क्योंकि तुम और अंगूर
हो एक ....एक ....एक .

जब मैं  करता कृषक को अंकित
खेत में अत्यंत ही स्वेदित
चाहना होती मेरी
सब को हो यह जिंदा सा एहसास
कृषक का
खेतों में वेगित प्रवाहमान 
समतुल्या समरूप अन्न के
एवं मृदा का
जो हो रही हो प्रवाहित
तदनुरूप कृषक में. 

जीवन को जानना

उत्कट चाहना होती मेरी
उन्हें  आत्मिक अनुभव करने का
सूर्य के तीव्र संवहन का
कृषक में,
खेत में,
अन्न में,
हल में,
एवं घोड़ों में.

जब तुम्हे होगा अंत:स्थल  में
आभास....
सर्व-व्यापक सर्वतोमुखी लय -ताल का
जिस पर चलयमान है
पृथ्वी का सर्वस्व,
तुम करोगे आरंभ
जानना जीवन को
बस वहीं से
बस वहीं से.

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