Friday, 8 August 2014

स्वीकृति समग्रता और मुक्ति-एक चिंतन : (नायेदाजी)

स्वीकृति  समग्रता और  मुक्ति-एक  चिंतन

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भय से पलायन,
भय से संघर्ष,
भय का आलिंगन,
होता है उसे,
सिंचित कर,
अंकुर,कोंपल,पौधा और,
वृक्ष बना देना,
एक  जंगल बना देना.

भय को जान,
लेकर उसका संज्ञान,
कर उसे सहज स्वीकार,
पूछें स्वयं से,
भय है कहाँ ?
उत्तर होगा : कहीं नहीं.
यही है जीवन का तथ्य ,
यही है उसको जानना,
यही है उसको मानना.

भय से कैसा भागना ?
भाग के कैसा बचना ?
कहाँ जाना कहाँ छुपना  ?
जीवन में भय है,
असुरक्षा है,
मृत्यु है,
ऐसा है,
एक सहज सत्य होगा,
ऐसा ही जान लेना,
ऐसा ही मान लेना.

सहज स्वीकृति ,
सब समस्याओं  का हल है,
मृत्यु स्वीकृत है,
मृत्यु कहाँ ?
असुरक्षा स्वीकृत है,
असुरक्षा कहाँ ?
भय स्वीकृत है,
भय कहाँ ?
भेद इतना ही है,
बस इसे जान लेना,
इसे मान लेना.

जीवन तथ्यों को मान लेना,
भय को सहज स्वीकार करना,
जीवन को अंगीकार कर ,
दे देना सहज स्वीकृति,
यही है जीवन की समग्रता,
और नकारात्मकता से मुक्ति.

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