स्वयं : धम्मपद से
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जो स्वयं है
स्वामी
स्वयं का.
नहीं है कोई
अन्य
स्वामी
उसका.
परित्याग कर
अहंकार का
बनता है जो
श्रेष्ठ
स्वयं.
प्राप्य होती
उसको
आत्मविजय
स्वयं के ही
प्रयासों से.
(एक बात तो स्पष्ट है कि 'स्वयं' और 'अहंकार' दो अलग अलग तथ्य है. व्यक्ति स्वयं ही अपना बेहतरीन दोस्त बन सकता है और स्वयं ही अपना बद-तर दुश्मन.
अपनी खुशी और गम का भी ज़िम्मेदार इंसान खुद ही होता है, दूसरों को तो झूठा
इल्ज़ाम दिया जाता है. सारा खेल हमारी मनोदशा का है. आत्मवाद>आत्मावलोकन>ज्ञान>मुक्ति (निर्वाण)........सब कुछ स्वयं द्वारा...स्वयं को जागृत कर.
caution :'स्वयं को.' ना कि 'अहंकार' को. बुद्धं शरणं गच्छामि ! )
Atta Hi Attano Natho, Kohi Natho Paro Siya,
Atta Na Hi Sudantena, Naatham Labhati Dullabham.
------------Gautam Budh
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