Tuesday 5 August 2014

प्रसन्नता और सुख:धम्मपद से--(नायेदाजी)

प्रसन्नता और सुख: धम्मपद  से---

प्रेरक सूत्र :आरोग्य परम्मा लाभा, संतुष्टि परमां धनम,
विसससा परमा ज्ञाती, निब्बनाम परमां सुखाम.
---------------गौतम बुध.
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सू-स्वास्थ्य ही
सर्वोत्तम
संपत्ति है

संतोष है
श्रेष्ठ
संग्रह (कोष)
संपत्ति .............

श्रेष्ठ
सखा
स-विश्वास जनित है

सर्वाविजयी आनंद है
सहज निर्वाण निष्पत्ति ...........



(देह जीवन यात्रा की नौका है उसे संतुलित आहार, व्यायाम, विहार एवं औषधि द्वारा 'फिट & फाइन' रखना है.प्रकृति के विपरीत आचरण करने एवं दुश्चिंताएँ करने से हम अस्वस्थ होते है. प्राप्त जीवन को स्वीकार कर प्रसन्न रहने का नाम ही संतोष है. दूसरों पर विश्वास करना उन्हे ज़िम्मेदार बनता है....हम उनका हृदय भी इस-से जीत सकतें है और अपना अनावश्यक बोझ हल्का कर सकतें है.
मुक्ति या निर्वाण है बस:वैचारिक शुद्धता -- शारीरिक स्वस्थता द्वारा राग-द्वेष से उपर उठना .)

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