Friday 8 August 2014

आओ लौट चलें : (अंकितजी)

आओ लौट चलें 

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तेरी आँखों में
ना शिकवे है
ना उम्मीदों  के शौले है
और ना ही 
जज़्बा-ए-मोहब्बत है.

आओ अब लौट चलें
उस मकाम पर
जहाँ तुझको भी सुकून
मुझे भी तस्कीन  है.

इस एक संग 
लौटने के दौर में
कुछ  ऐसा भी हो जाए
हम-तुम एक हो जाएँ
क्योंकि 
आज इसी मसले पर
दोनो हमयकीन है.

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